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बुधवार, 24 अगस्त 2011

विद्युत सब स्टेशन से कॉपर वायर चोरी : तीन ट्रांसफार्मरों से निकाले तार


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि. के डीडवाना रोड़ स्थित 33 केवीए ग्रीड सब स्टेशन से 20 व 21 की दरमियानी रात्रि तीन ट्रांसफार्मरों में से तांबे के तारों की कॉईलें अज्ञात चोर चुराकर ले गए।
विद्युत निगम के कनिष्ठï अभियंता ऋषिकेश मीणा ने पुलिस को रिपोर्ट देकर बताया कि जोधा सर्विस सेन्टर के सामने स्थित 33 केवीए जीएसएस में 20 अगस्त की रात्रि 12 बजे से 21 अगस्त की रात्रि 4 बजे के बीच के समय में अज्ञात चोरों ने ट्रांसफार्मरों से कॉपर की कॉईलें निकालकर चोरी कर ली। उन्होंने बताया कि इस सब स्टेशन पर चौकीदार की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन वहां मोती खां व ईश्वरदास दो लाईनमैन रात्रिकालीन ड्ïयुटी पर थे। उन्होंने रात को करीब 2 बजे कुछ आवाजें भी सुनी परन्तु उन्हें साधारण समझकर उस पर ध्यान नहीं दिया। पुलिस मामला दर्ज कर लिया है, थानाधिकारी दरजाराम मेघवाल ने स्वयं मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया, जांच जारी है।

राखी बांधने गई थी, आज तक नहीं लौटी------ घर से गायब तीन बच्चों की मां


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। अपने घर से राखी बांधने के बहाने से रक्षाबंधन के दिन गई महिला दस दिन बीत जाने के बावजूद न तो अपने पीहर पहुंची और न ही वापस अपने घर लौटी। करीब दस दिनों तक गायब रहने के बाद उसके ससुर ने पुलिस में गुमसुदगी की रिपोर्ट दर्जर्
करवाई है। रिपोर्ट के अनुसार ग्राम खानपुर से तीन बच्चों की मां भगवती (33 वर्ष) पत्नी रामूराम ऊर्फ रामेश्वरलाल जाट अपने पति व तीन बच्चों को छोड़कर रक्षा बंधन को अपने पीहर ग्राम हरासर तहसील रतनगढ़ जाने का कहकर निकली थी, जो आज तक अपने पीहर नहीं पहुंची। ससुराल पक्ष ने इंतजार करने के बाद उसका सभी जगह पता किया और अब रिपोर्ट दर्ज करवाई। मामले की जांच सहायक उपनिरीक्षक रामनिवास मीणा कर रहे हैं। जांच अधिकारी रामनिवास मीणा ने बताया कि गुमशुदा महिला के मोबाईल की कॉल डिटेल व सिच्युएशन के आधार उसका पता लगाया जा रहा है।

फर्जी संस्था व कूट रचना के आरोप खारिज मैढ स्वर्णकार समाज के पदाधिकारियों के बीच मुकदमा निर्णित-----


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। सामाजिक संस्था की सम्पति को हथियाने के लिए फर्जी संस्था का गठन करके कतिपय कागजातों में कांट-छांट व कूट रचना करने के एक चर्चित मामले में अदालत द्वारा लिए गए प्रसंज्ञान के खिलाफ की गई निगरानी को स्वीकार करते हुए अपर सेशन न्यायाधीश सूर्यप्रकाश काकड़ा ने विचारण अदालत द्वारा लिए गए प्रसंज्ञान को अपास्त कर दिने के आदेश जारी किए हैं। मालचंद डांवर वगैरह बनाम मैढ स्वर्णकार समाज सभा के मामले में मंत्री पुखराज सोनी ने आरोप लगाए थे कि सन 1946 से स्थापित व रजिस्टर्ड संस्था मैढ स्वर्णकार समाज सभा के पास खुद का भवन, बरतन, बिस्तर , नकद राशि आदि सामान मौजूद था। परन्तु आरोपियों मालचंद डांवर, मुरलीधर सोनी, ओमप्रकाश डांवर, हेमराज जांगलवा, बजरंग लाल सिठावत व लालचंद डांवर द्वारा बदनियति से सम्पति को हड़पने के लिए अपना कार्यकाल पूरा हो जाने के बावजूद संस्था के दस्तावेजातों, शील, मोहरों में कांट-छांट करके श्रीमैढ स्वर्णकार समाज सेवा समिति के नाम से एक फर्जी संस्था का गठन करके अपना कब्जा नहीं छोड़ा व उनका आपराधिक दुर्विनियोग करने एवं आपराधिक न्यासभंग करने के अवैध कार्यों द्वारा धारा 420, 120 बी, 406, 467, 469, 471, 494 भा.दं.सं. का अपराध किया है, जिसका प्रसंज्ञान लिया गया था। इसके विरोध में आरोपियों ने प्रसंज्ञान को प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त मानते हुए खारिज करने के लिए निगरानी प्रस्तुत की, इसमें अधीनस्थ न्यायालय द्वारा साक्ष्यों का सही विश£ंषण नहीं करने व कांट-छांट के बारे में विशेषज्ञों की राय नहीं लेने व दस्तावेजों की जांच नहीं कराए जाने को भूल बताया। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस सुनने व पत्रावली का अवलोकन करने पर पाया कि कांट-छांट का आरोप कूटरचना की श्रेणी में नहीं आता तथा सभा के स्थान पर समाज सेवा शब्द प्रस्थापित करने के पीछे किसी व्यक्ति या लोक को क्षति कारित होना स्पष्ट नहीं होता। अपर एवं सेशन न्यायाधीश काकड़ा ने प्रसंज्ञान लिए जाने को अविधिक एवं एवं अनुचित मानते हुए उसे अपास्त कर दिया।

कब मिटेगी बस स्टेंड की बदहाली------- गंदे पानी की समस्या से निजात पाने की कवायद------- जेसीबी से गैनाणी(खंदक) को गहरा बनाने की कवायद रही अधूरी

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। गंदे पानी की निकासी की कोई समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बस स्टेंड जैसा महत्वपूर्ण क्षेत्र बुरी तरह कीचड़ से सन चुक ने और इक_े पानी में झेकरा मिट्टी डाल दिए जाने व उस पर सें बसों की आवाजाही के कारण चारों तरफ फैले लाल कीचड़ ने बस स्टेंड को आवागमन के लायक नहीं छोड़ा। यात्रियों और मंगलपुरा, वार्ड सं. 16, 17, 18, 23, 5 आदि के नागरिकों के शहर में आने, बाजार जाने, करंट बालाजी मंदिर जाने, कोर्ट जाने और विद्यार्थियों को विभिन्न विद्यालयों को जाने के मुख्य मार्ग के इस प्रकार अवरूद्ध हो जाने से भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गत दिनों जिला कलेक्टर एस.एस. बिस्सा ने इस क्षेत्र का अवलोकन किया था और उनके निर्देशानुसार नगरपालिका ने झेकरा मिट्टी डलवाई थी, लेकिन उससे समस्या उल्टी अधिक बढ गई।
फिर याद किया खंदेड़े को
अब पानी की निकासी के लिए नगरपालिका पास के खंदेड़े को वापस खुदवाने का कार्य कर रही है। यहां जेसीबी मशीन लगी हुई है तथा नगरपालिका के ट्रेक्टर लगाकर सफाईकर्मी पूर्व में भरे गए कचरे को वापस उठा रहें हैं। पार्षद सुमित्रा आर्य अपने वार्ड में बनी इस समस्या के निवारण के लिए अधिकारियों से मदद लेकर खुद मौके पर खड़ी रह कर इस प्रमुख जन समस्या के निवारण के लिए प्रयास रत है। खंदेड़े में करीब 15 बीघा जमीन नगर के गंदे पानी की निकासी के लिए बरसों से लगातार काम आती रही है। कुछ समय पूर्व नगरपालिका के कचरा वाहनों द्वारा वहां कचरा डालकर उसके काफी हिस्से को पाट दिया गया था। जिसके बाद कुछ भूमाफिया लोगों ने वहां साफ मिट्टी की भराई करवाकर उसको कब्जा करने की चेष्टा की थी, जिसपर नागरिकों की सजगता और प्रशासन की त्वरित कार्रवाई से उसे खुर्द-बुर्द किया जाने से रोका गया था। बाद में तहसीलदार ने नगरपालिका को उक्त भूमि को तारबंदी या चहारदिवारी द्वारा घेर कर सुरक्षित करने व गंदे पानी का निकासी स्थान निश्चित करने को लिखा था। अब कहीं जाकर नगरपालिका ने इस ओर ध्यान दिया है।
यह जरूरी था
सुखदेव आश्रम, बस स्टेंड व मालियों के बास में बनी गंदे पानी की समस्या को स्थाई रूप से निपटाने के लिए यह आवश्यक था। नगर पालिका को खंदेड़े की अपनी जमीन पर चार दिवारी बनाकर उसे सुरक्षित करना चाहिए और इसे गैनाणी के रूप में काम में लेना चाहिए।
- सुमित्रा आर्य, पार्षद वार्ड सं. 16, लाडनूं।
निकाला जाएगा पानी की निकासी का हल
बस स्टेंड पर बनी पानी की निकासी का हल निकाला जाकर उसका सौंदर्यकरण किए जाने के प्रयास जारी है। खंदेड़े को वापस खुदवाकर उसे सुरक्षित किया जाएगा। -जस्साराम गोदारा, अधिशाषी अधिकारी, नगरपालिका, लाडनूं।

समाज की प्रगति के लिए शिक्षा जरूरी- शर्मा


ब्राह्मण समाज की सभा आयोजित

लाडनूं । राजस्थान ब्राह्मण महासभा के नवनियुक्त जिलाध्यक्ष जगदीश नारायण शर्मा ने यहां दाधीच भवन में आयोजित महासभा की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए समाज में शिक्षा की आवश्यकता बताई तथा कहा कि जिस समाज में शिक्षा की ज्योत प्रज्जवलित होती है वही समाज प्रगति कर सकता है, बिना शिक्षा के सामाजिक उन्नति संभव नहीं है। इस अवसर पर स्थानीय ब्राह्मण महासभा के कार्यकत्र्ताओं ने शर्मा का माल्यार्पण द्वारा सम्मान किया। महासभा की महिला महामंत्री श्रीमती अंजना शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि महिलाओं को अब घर की देहरी लांघनी पड़ेगी।सभा में ब्राह्मण महासभा के स्थानीय अध्यक्ष अनिल शर्मा,नरेन्द्र भोजक, राजु पारीक, चांदमल शर्मा, लूणकरण शर्मा, तपस्वी शर्मा, रामनिवास चोटिया, श्रीचंद पारीक, बजरंग दाधीच, हनुमान सूंठवाल, युवा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रामनिवास, चेतन शर्मा, नागरमल शर्मा आदि ने भी सभा को सम्बोधित करते हुए समस्त ब्राह्मण समाज को एकसूत्र में बांधे जाने एवं संगठन को मजबूती प्रदान करने की जरूरत बताई।

तीन सालों से बेटे के लिए भटकते बाप के आंसू तक सूखे ------------- पुलिस ने किया पूरी तरह नाउम्मीद


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। पिछले तीन साल से लगातार पुलिस, प्रशासन व अदालतों के चक्कर काटकर परेशान पिता की व्यथा को अब कोई सुनता तक नहीं है। हाल ही उसने फिर स्थानीय पुलिस को एक दरख्वास्त पेश करके अपने 25 वर्षीय बेटे की तलाश की मांग करते हुए गजानन्द व हरिराम पर अपने पुत्र को गायब करने, बंधक बनाकर छुपाने अथवा हत्या कर डालने का आरोप लगाया है, परन्तु पुलिस के रटे-रटाए जवाब कि कोर्ट के आदेशों से जांच जारी है, के अलावा कोई संतोषजनक जवाब उसको नहीं मिल पाया। फिर पुलिस अधीक्षक के सामने इा दुखी बाप ने एक दरख्वास्त पेश की, तथा पूर्ण विवरण बताते हुए पुलिस को निर्देशित करने के लिए निवेदन किया। जिस पर उन्होंने पुलिस थाना लाडनूं को तलाश को गंभीरता से लेने के आदेश दिए हैं।
करीब तीन साल से अधिक समय पूर्व स्थानीय निवासी नथमल प्रजापत के एकमात्र पुत्र भंवरलाल को सुजानगढ निवासी हरिराम प्रजापत ले गया था तथा अपने पिता गजानन्द के पास ठेकेदारी के काम में लगा दिया था, उसकी तनख्वाह के रूप में मेहनताने की राशि एवं उसके पुत्र का इसके बाद आज तक कोई पता नहीं लगा। इस सम्बंध में उसने पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज नहीं किए जाने पर जिला पुलिस अधीक्षक नागौर के समक्ष हाजिर होकर एक रिपोर्ट दी व अपनी व्यथा बताई। बाद में न्यायालय की शरण गया, जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में पुलिस को केवल खानापूर्ति करने के बजाए अपनी पूरी ड्यूटी निभाते हुए तलाश करके गुमसुदा भंवरलाल को बरामद किया जावे। व्यथित पिता नथमल ने पुलिस को दी गई अपनी रिपोर्ट में गजानन्द व हरिराम पर अपने पुत्र को गायब करने, बंधक बनाकर छुपाने अथवा हत्या कर डालने का आरोप लगाया है। पिछले तीन साल से आंखों में आंसू लिए स्थानीय पुलिस, समाजसेवी संस्थाओं, राजनेताओं, नागोर एसपी एवं हाईकोर्ट के वकीलों के पास घूम-घूम कर अब सूनी आंखों से गमगीन हो चुका है। वह हाथ ठेले पर सब्जी बेचकर अपना व अपने परिवार का पेट भरने वाला व्यक्ति पुरी तरह टूट चुका है तथा अपना धंधा भी नियमित नहीं कर पाता है।

प्रख्यात रामस्नेही संत स्वामी रामनिवास महाराज


गौ और राम की सेवा ही था जिनका जीवन लक्ष्य
लाडनूं में न मिली दो गज जमीन
गौशाला के दायित्व को लेकर लोगों में रोष

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। प्रख्यात रामस्नेही सम्प्रदाय के संत स्वामी रामनिवास महाराज को लाडनूं क्षेत्र में दो गज जमीन तक नहीं मिलने को लेकर लोगों में गहरा रोष देखा गया।
लाडनूं के दो संतो की साम्यता- तुलसी व रामनिवास

लाडनूं में दो संत विख्यात थे, एक तो आचार्य तुलसी व दूसरे स्वामी रामनिवास। दोनों विपरीत धाराओं- ब्राह्मण संस्कृति व श्रमण संस्कृति से सम्बद्ध थे। इसके बावजूद इन दोनों में जो समानता थी वो यह कि ये लाडनूं के प्रति असीम भावनात्मक आकर्षण रखते थे। आचार्य तुलसी ने पारमार्थिक शिक्षण संस्थान, वृद्ध साध्वी सेवा ककेन्द्र व जैन विश्व भारती एवं जैविभा विश्वविद्यालय जैसे अवदान लाडनूं के लिए दिए एवं अपनी भावना के अनुरूप अन्ततोगत्वा लाडनूं को उनके जन्म शताब्दी वर्ष से पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी घोषित कर दिया गया। इसी प्रकार स्वामी रामनिवास ने लाडनूं में श्री राम आनन्द गौशाला के लिए लगभग अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने गौशाला के लिए अनेक लड़ाइयां लड़ी, सरकार से अनुदान स्वीकृत करवाना हो या सम्पति का संरक्षण, वहां धर्मशाला बनवाकर गौशाला की आमदनी बढानी हो, पशु चिकित्सालय खुलवाकर पशुओं के हित में कार्य करना हो या दानदाताओं से मुक्त हस्त सहयोग जुटाना, सभी के लिए स्वामी रामनिवास हरपल तैयार रहते थे। गौशाला के माध्यम से लागों को शुद्ध दूध-घी उपलब्ध करवाने के कार्य को उन्होंने सफलता पूर्वक करवाया वहीं अकाल के समय समूचे क्षेत्र के पशुधन के लिए चारा उपलब्ध करवाने में भी उनका कार्य महत्वपूर्ण रहा।
दोनों ने किए अपने उत्तराधिकारी घोषित
आचार्य तुलसी ने अपने जीवन काल में केवल एक नहीं दो पीढी के उत्तराधिकारी घोषित कर दिए। उन्होंने अपने जीवन काल में ही मुनि नथमल को युवाचार्य महाप्रज्ञ बना डाला और आगे कोई उत्तराधिकार की लड़ाई न छिड़े इस सोच के कारण उन्होंने स्वयं आचार्य पद त्याग कर महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर पदारूढ कर दिया तथा मुनि मर्यादा कुमार को युवाचार्य महाश्रमण के रूप में घोषित करवा दिया। वे स्वयं एक नए पद गणाधिपति के रूप में कहे जाने लगे और गुरूदेव के रूप में ख्यात हुए। स्वामी रामनिवास ने ग्राम दुजार में बने आर्यसमाजी संन्यासी संत ओमप्रकाश उर्फ स्वामी पूर्णानन्द के साधु आश्रम को अपने कब्जे में लेकर उसे रामस्नेही सम्प्रदाय का आश्रम बना डाला और उनके देवलोक गमन के पश्चात उनके स्थान पर शिष्य के रूप में ज्ञानाराम महाराज की नियुक्ति स्वामी रामनिवास ने की तथा इसी प्रकार अपने शिष्य व गद्दीपति के रूप में रामद्वारा की बागडोर अपने जीवन काल में ही स्वामी अमृत राम को सुपुर्द कर दी।
नसीब नहीं हुई लाडनूं की धरा?
इन दोनों संतों में आचार्य तुलसी लाडनूं के जाए-जन्मे थे और लाडनूं में बड़े हुए, जबकि स्वामी रामनिवास का जन्म तो अवश्य पंजाब में हुआ, परन्तु उनका बचपन लाडनूं में ही बीता और यहीं पले-बढे। इन दोनों में समानता यह रही कि दोनों की ही समाधियाां लाडनूं को नसीब नहीं हुई। आचार्य तुलसी का देहावसान गंगाशहर में हुआ, उनके अंतिम संस्कार लाडनूं में करने की चेष्टाएं हुई, परन्तु गंगाशहर के लोगों को यह मंजूर नहीं था, सो उनका समाधि स्थल बना गंगाशहर। और स्वामी रामनिवास का देवलोक गमन तो अवश्य लाडनूं में हुआ, परन्तु उनका समाधि स्थल बना ऋषिकेश। लाडनूं के लोगों को बेमन से उनकी पार्थिव देह को ऋषिकेश भिजवाना पड़ा, यह मात्र श्रीराम आनन्द गौशाला के कारण हुआ। 13 अगस्त 2011 श्रावण शुक्ला पूर्णिमा शनिवार के रोज शाम 7.15 बजे स्वामी रामनिवास महाराज अपने रामद्वारा में ब्रह्मलीन हो गए। उनके ब्रह्मलीन होने के पश्चात लोगों का भारी हुजूम यहां राहूगेट स्थित रामद्वारा की ओर उमड़ पड़ा। लोगों ने उनके उतराधिकारी स्वामी अमृतराम महाराज के समक्ष आग्रह किया कि देवलोकगामी स्वामी रामनिवास का अंतिम संस्कार लाडनूं में ही किया जावे। देर रात्रि तक इसके लिए काफी अनुनय-विनय का दौर चला, जिस पर स्वामी अमृतराम ने बताया कि स्वामी रामनिवास की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार राम आनन्द गौशाला में अथवा फिर ऋषिकेश में गंगा तट पर किया जावे। उनके अन्तिम संस्कार के स्थान को लेकर स्थानीय श्रद्धालुओं में देर रात तक चली जद्दोजहद के पश्चात रात्रि 1.15 बजे उनकी पार्थिव देह को एम्बुलेंस से ऋषिकेश में गंगा तट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। गौशाला के पदाधिकारियों पर आम लोगों द्वारा भारी दबाव डाला जाने के बावजूद उन्होंने इसके लिए अनुमति प्रदान नहीं की, भागचंद बरडिय़ा आदि कई लोगों ने अपनी निजी भूमि इसके लिए गौशाला को उपलब्ध करवाने का प्रस्ताव भी रखा परन्तु गौशाला के पदाधिकारी टस से मस नहीं हुए। जिसके बाद उनकी पार्थिव देह को ऋषिकेश के लिए ले जाया गया। लाडनूं में उनके शरीर के लिए अंत्येष्टि की भूमि तक उपलब्ध नहीं करवाने को लेकर स्थानीय लोगों में गौशाला के प्रति गहरा आक्रोश देखा गया।
कहां थे इनके वास्तविक श्मशान?
लाडनूं में रामस्नेही सम्प्रदाय के दो रामद्वारा हैं, एक आधी पट्टी में जो बड़ा रामद्वारा कहा जाता है और दूसरा राहूगेट के अन्दर है, जिसे रामद्वारा सत्संग भवन कहा जाता है। इस सत्संग भवन रामद्वारा में सूरदास संत मेवाराम कभी महन्त के रूप में विराजित थे, जिनके चेले स्वामी रामनिवास थे। स्वामी रामनिवास ने गद्दी पर विराजित होने के बाद अपने साधुओं का समाधि-स्थल आनन्द कुटिया, जो तुलसीदास जी के चबूतरे के सामने स्थित थी, को एक व्यापारी के हाथों बेच डाला। अब वहां एक शोरूम है।इस कुटिया में समाधि, पगल्या, शिवलिंग, तुलसी का पौधा आदि थे, जो नष्ट कर दिए गए। ऐसे में श्मशान स्थल की समस्या आनी ही थी।

शुक्रवार, 10 जून 2011

जिला शिक्षक संघ के बने लालाराम वरिष्ठ उपाध्यक्ष--- फिर बने अर्जुनराम अध्यक्ष व किस्तूरमल मंत्री

नागौर (कलम कला न्यूज)। राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत के जिला स्तरीय चुनावों में संरक्षक सम्पतलाल स्वामी, सभाध्यक्ष मोहनलाल कड़वासरा जाणेदा, अध्यक्ष अर्जुनराम लोमरोड नागौर, वरिष्ठ उपाध्यक्ष लालाराम बिडियासर मंगलपुरा लाडनूं, उपाध्यक्ष शहरी नैन मोहम्मद जाटावास, उपाध्यक्ष ग्रामीण विजय कुमार डूकिया पालोट डीडवाना, मंत्री किस्तूरमल वर्मा, महिला मंत्री श्रीमती कान्ता पाराशर जायल, कोषाध्यक्ष रामनिवास देडू फिड़ौद, संगठन मंत्री नरसिंह पिण्डेल फिड़ौद, संयुक्त मंत्री सोहनलाल कटारिया रेगरों की ढाणी, प्रचार मंत्री सुखराम चौधरी केरिया माकड़ा, कार्यालय मंत्री जमील अहमद अंसारी, संगठन मंत्री भीवाराम भाकर मोडियावट डीडवाना, संगठन मंत्री मुक्ताराम मामड़ोली, संगठन मंत्री शहरी रामकिशोर कमेडिय़ा भूरियासणी, संयोजक संघर्ष समिति बहादुरराम खिलेरी, सी.सै. प्रतिनिधि कैलाश चंद काकड़, सैकेंडरी प्रतिनिधि मेघाराम बुगालिया बांसा डीडवाना, उ.प्रा.वि. प्रतिनिधि भूराराम रायका चांदनी, प्रा.वि. प्रतिनिधि शहरी राजेन्द्रसिंह राठौड़, प्रा.वि.प्रतिनिधि ग्रामीण दुर्गाराम गोदारा बड़ी खाटू, संस्कृत प्रतिनिधि सहदेव मंडा ढींगसरी लाडनूं, उर्दू प्रतिनिधि हबीब खां धोलिया लाडनूं, निजी विद्यालय प्रतिनिधि हनुमानराम सारण खिंयाला, शारीरिक शिक्षक प्रतिनिधि ज्ञानाराम महला ध्यावा लाडनूं, प्रबोधक प्रतिनिधि अनवर अली, पंचायत राज प्रतिनिधि सोहनराम आंवला बोरावड़ को चयनित घोषित किया गया। चुनाव अधिकारी मजहर हुसैन व पर्यवेक्षक मो. सद्दीक चेनार की देखरेख में सम्पन्न हुए।

पार्षदों ने बताई पालिका में गड़बडिय़ां-- डीडीआर को सौंपा ज्ञापन

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। अजमेर से निरीक्षण के लिए आए क्षेत्रीय उपनिदेशक राजपालसिंह चौहान ने स्थानीय पालिका में गड़बडिय़ों का भंडार पाया, उन्होंने करीब पांच दर्जन अनियमितताओं को जांच-बिन्दुओं के रूप में दर्ज किया तथा नगरपालिका से गृहकर, भवन-निर्माण, विकास व ठेकों से सम्बंधित पऋावलियों को अपने कब्जे में जांच के लिए लिया तथा उन्हें लेकर जयपुर गए। उन्हें इस अवसर पर अलग-अलग व्यक्तियों ने मिलकर अनेक ज्ञापन सौंपे और नगरपालिका से सम्बंधित अनियमितताओं के बारे में उन्हें अवगत कराया। डीडीआर को पत्रकार लक्ष्मणसिंह चारण व अरिहन्त भंसाली ने करीब एक साल से विज्ञापनों का बकाया भुगतान नहीं देने व विज्ञापन जारी करने में की जा रही धांधली किे बारे में बताया। पीसीसी के पूर्व सदस्य एडवोकेट जगदीश सिंह ने उन्हें अन्य विभिन्न अनियमितताओं व धांधलियों की जानकारी दी। सजग नागरिक मोर्चा के अध्यक्ष व वरिष्ठ पत्रकार जगदीश यायावर ने उन्हें नगरपालिका के स्वामित्व की कब्जा हो चुकी करोड़ों की भूमि के बारे में बताया। सामाजिक कार्यकर्ता महेश सांखला ने नेहरू पार्क और जैन विश्व भारती के भूमि घोटाले के बारे में उन्हें विस्तार से सप्रमाण जानकारी दी। कांग्रेस अभाव अभियोग प्रकोष्ठके जिला उपाध्यक्ष मुश्ताक खां हाथीखानी आदि ने उन्हें काफी जानकारियां दी।
नगरपालिका के उपाध्यक्ष याकूब शेख के नेतृत्व में करीब एक दर्जन पार्षदों ने यहां स्थानीय निकाय के क्षेत्रीय उपनिदेशक राजपाल सिंह से मुलाकात करके उन्हें नगर पालिका में पार्षदों के सम्मान की बजाए अपमान होने की जानकारी दी तथा बताया कि उन्हें अपमानित करने के लिए मानदेय भुगतान को जानबूझकर रोका जा रहा है, उनके द्वारा लिए गए प्रस्तावों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती और मनमर्जी से काम किए जाते हैं। अनेक कार्यों के बारे में तो पार्षदों की राय ली जानी तक उचित नहीं समझी जाती। पार्षदों की ओर से एक लिखित ज्ञापन भी उन्हें सौंपा गया, जिस पर उपाध्यक्ष याकूब शेख, जीवन मल बडज़ात्या, जगदीश प्रसाद दोलावत, फैजूखां, हनुमानमल जोशी, अदरीश खां आदि ने हस्ताक्षर किए। ज्ञापन में युवक परिषद के पास से पहली पट्टी से पांचवीं पट्टी तक सड़क मरम्मत कार्य व स्टेशन रोड का युवक परिषद के एग्रीमेंट के बावजूद सड़क का पुनर्निर्माण, बड़ाबास में जसवंतगढ टंकी के पास नाला बनते-बनते ही टूट जाने, 30 लाख के रिकार्पेट व पेच वर्क का ठेका दिए जाने में की गई धांधली, समितियों के गठन से लेकर अब तक की जा रही मनमर्जी, शहर की बिगड़ी हुई सफाई व्यवस्था और सार्वजनिक रोशनी व्यवस्था की बिगड़ी हालत की ओर मुख्य रूप से ध्यान आकर्षित किया गया है। उपाध्यक्ष शेख के साथ माणक चंद लोहिया, सलीम पंवार आदि भी मौजूद थे। भाजपा के शहर अध्यक्ष व पूर्व पार्षद मुरलीधर सोनी भी पार्षदों के साथ मौजूद थे।

पार्षदों के अधिकारों पर प्रहार: सदस्यों को विश्वास में लिए बिना लाखों का मनमाना खर्च

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। नगरपालिका के सामने से होते हुए स्टेशन तक जाने वाली सीमेंट सड़क का निर्माण युवक परिषद द्वारा किया गया था, जो काफी मजबूत था, पर उसे तोड़कर दुबारा बनाए जाने की शिकायत हो जाने पर जगह-जगह से छोड़ कर उसको इस तरह से बनाया गया है कि देखने में वह मरम्मत कार्य लगे। यह कहना है मुस्लिम महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं कांग्रेस अभाव अभियोग प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष मो. मुश्ताक खां हाथीखानी का, जिन्होंनेे जिला कलेक्टर सहित सभी अधिकारियों को पत्र लिखकर बताया है कि लाडनूं नगर पालिका को करीब 16 लाख की राशि वर्षा से क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत के लिए प्राप्त हुए, जिनका खुला दुरूपयोग किया जा रहा है। हाथीखानी ने अपने पत्र में कार्यवाही की मांग करते हुए बताया है कि 16 लाख से अधिक की इस राशि को खर्च करने के लिए नगरपालिका के 30 पार्षदों में से किसी की भी राय नहीं ली गई और पार्षदों व जन-भावना की खुली अनदेखी की जाकर शहर की सभी क्षतिग्रस्त सड़कों को ठीक करवाने के बजाए सबसे मजबूत सड़क स्टेशन रोड को तुड़वाया जाकर वापस बनवाने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने लिखा है कि यह सड़क नगर की एक संस्था युवक परिषद द्वारा नगरपालिका से 10 वर्षों तक पूर्ण रखरखाव व मरम्मत की शर्तों पर निर्मित करवाई गई थी, जिसकी मियाद अभी तक पूर्ण नहीं हो पाई है। इसके बावजूद उसकी मरम्मत के सम्बंध में जिम्मेदार संस्था को लिखित सूचना दिए जाने के बजाये नगर के लिए प्राप्त राशि का खुला दुरूपयोग किया गया है, जिससें सभी पार्षदों में रोष है तथा समाचार पत्रों में भी इस सम्बंध में प्रकाशन हुआ है। लगभग सभी जिम्मेदार अधिकारियों पर पल्ला झाडऩे का आरोप लगाते हुए लिखा है कि वे एक दूसरे को जिम्मेदार बताने पर तुले हुए हैं। सहायक अभियंता मंगलाराम कहते हैं कि उन्होंने पालिकाध्यक्ष बच्छराज नाहटा व अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा के कहने पर यह कार्य शुरू किया है। अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा का कहना है कि उनको इस मरम्मत या निर्माण कार्य के आदेश के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस प्रकार सब अपनी अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। ऐसा लगता है कि इसमें भारी घोटाला किया गया है, जिसके कारण ये अधिकारी इस तरह के बयान देने में लगे हैं। मुश्ताकखां के अनुसार यह निश्चित है कि कार्यादेश के बिना कोई भी कार्य ठेकेदार करता नहीं और अभियंता करवाता नहीं, तब इस मामले में किसने कार्यादेश (वर्क ऑर्डर) दिया? क्या इसे किसी इशारे पर बिना वर्क-ऑर्डर ही शुरू कर दिया गया। अगर ऐसा किए जाने के कारण ही ये सभी इस प्रकार बयान देकर अपने बचाव की कोशिश कर रहे हैं तो यह काफी गंभीर मामला है तथा इसकी व्यापक व निष्पक्ष जांच की जाना आवश्यक बताई, साथ ही इस बात की पूरी संभावना बताई कि मिलीभगत पूर्वक गुपचुप में ही इसका भगुतान भी किया जाएगा, अत: तुरन्त इस कार्य का भुगतान रूकवाकर किसी लाडनूं से बाहर के उच्च अधिकारी से मामले की जांच करवाने की मांग की गई है।
अवैध निर्माण और मिलीभगत
मुश्ताक हाथीखानी ने अजमेर से यहां पालिका का निरीक्षण करने आए स्थानीय निकाय विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक राजपाल सिंह चौहान को भी एक ज्ञापन सौंप कर आधी पीडब्लूडी की रोड का मरम्मत के नाम पर घोटाला किए जाने और युवक परिषद के बजाए स्वयं निर्मित करवाए जाने के बारे में समस्त जानकारी दी तथा यह भी बताया कि लाडनूं शहर में बड़ी तादाद में अवैध निर्माण कार्य धड़ल्ले से चल रहे हैं। मिलीभगत का आलम यह है कि गत 29 अप्रेल की बैठक में रखी गई निर्माण पत्रावलियों में से अधिकांश में निर्माण किया जा चुका, जिससे उन पर पार्षदों ने आपति जताते हुए पूरी रिपोर्ट लेकर आगामी बैठक में रखे जाने का प्रस्ताव लिया गया, इसके बावजूद अधिकारीगण इन पत्रावलियों पर जुर्माना वसूली के बजाए इजाजतें देने पर आमादा हैं। डीडीआर ने उनकी शिकायत पर मौका देखा और सम्बंधित पत्रावलियों को जांच के लिए वे अपने साथ ले गए।

लाडनूं के साथ भारी भेदभाव---सांसद मिर्धा से जिले के कांग्रेसी असंतुष्ट

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। नागौर क्षेत्र से विजयी रही सांसद ज्योति मिर्धा ने जिले के विकास के लिए मिलने वाली सांसद निधि का उपयोग शही क्षेत्रों के लिए तो बिलकुल ही नहीं किया है, वहीं लाडनूं विधान सभा क्षेत्र में तो उन्होंने कोई धन खर्च करना संभवत: उचित ही नहीं समझा।
जिला परिषद के ग्रामीण विकास प्रकोष्ठ के सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के अन्तर्गत ज्योति मिर्धा ने 2010-11 में डीडवाना पंचायत समिति के अधीन सबसे ज्यादा काम दिए, जहां कुल 63.77 लाख के कार्य दिए गए। मकराना व नागौर में मिलाकर कुल 90 लाख, जायल में 47 लाख व परबतसर में 39 लाख के काम दिए गए। शेष क्षेत्रों के लिए नगण्य काम मंजूर हुए, जिनमें लाडनूं को सबसे उपेक्षित रखा गया। लाडनूं के दो गांवों में सिर्फ एक लाख की राशि कोठे बनाने के लिए दी गई। इनमें मालगांव में रताऊ के रास्ते पर कोठा बनाने व ग्राम झरडिय़ा में टोकी रास्ते पर बिडियासरों की ढाणी में एक कोठा बनाने के कार्य के लिए मात्र 50-50 हजार की राशि इनायत की गई। लाडनूं नगरपालिका क्षेत्र में तो एक पैसा तक खर्च किया जाना उचित नहीं समझा गया। इसी प्रकार कुचामन, नावां, मकराना आदि शहरों की भी उपेक्षा की गई है। कांग्रेस अभाव अभियोग प्रकोष्ठ के जिला उपाध्यक्ष मो. मुश्ताक खां हाथीखानी ने बताया कि सांसद ज्योति मिर्धा की कार्यशैली के कारण पूरे जिले में मतदाताओं में गहरी नाराजगी पैदा हुई है तथा कार्यकर्ताओं के साथ भेदभाव बरतने की उनकी नीति के कारण आगामी लोकसभा व विधान सभा चुनावों में इसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ सकता है। उन्होंने लाडनूं के साथ पक्षपातपूर्ण रवैये की भत्र्सना करते हुए कहा कि विकास में राजनीति को घुसेडऩा सरासर अनुचित है।

सैंकड़ों बीघा जमीन खुर्दबुर्दनगरपालिका की सवा सौ बीघा भूमि पर अवैध निर्माण: रूपान्तरण, नियमन व निर्माण इजाजत के करोड़ों हड़पे: सारे अधिकारी कर रहे हैं लीपापोती:आखिर जांच और तथ्य सामने आने के बावजूद प्रशासन निष्क्रिय क्यों?

लाडनूं (खुफिया कलम)। लाडनूं शहर बुरी तरह भू माफियाओं के चंगुल में फंस चुका है। कीमती जमीनों को हथियाने के लिए तरह-तरह की चालों को अख्तियार करना और गिरोहबद्ध होकर अपनी कार्रगुजारियों को अंजाम देना, ये भू माफिया भलीभंति जानते हैं। मजे की बात तो यह है कि क्षेत्र का समूचा प्रशासन भी इनके कारनामों में कहीं न कहीं भागीदार अवश्य हैं। तालाबों, पायतनों, चारागाहों और सरकारी गैरमुमकिन अगोर की भूमियों पर अंधाधुंध कब्जे हो रहे हैं, मगर कोई भी बोलने और सुनने वाला नहीं है। और तो और जब यह जानकारी सामने आई कि सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह आदि बातों का ढोल पीटने वाले भी इन गलत कुकर्मों से वंचित नहीं है, तो लोगों को घोर आश्चर्य होना स्वाभाविक है।
राहुल जैन नामक एक किसी नागरिक ने इस सम्बंध में आवाज उठाई, जिससे राज्यपाल से लेकर जिला प्रशासन तक सक्रिय हुए और कार्रवाई शुरू हुई, परन्तु यह अति दु:खद पहलु है कि स्थानीय प्रशासन पूरी तरह इस मामले में लीपापोती करने में जुटा है।
महेश सांखला नामक एक समाजसेवी व्यक्ति ने जब मुखर होकर इस सम्बंध में सूचना के अधिकार का सहारा लिया तो उसे पूरी तरह भ्रमित करने वाली और गलत जानकारियां दी गई और कुछ मामलों में तो कोई जानकारी देने से इंकार तक अवैधानिक तौर पर कर दिया गया।
राज्यपाल सचिवालय से शुरू हुई कार्रवाई
जिला कलेक्टर नागौर ने उपखंड अधिकारी लाडनूं को एक पत्र सं. 2412 दिनांक 16.9.2008 भेजकर लिखा जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय द्वारा मनचाहे ढंग से की जा रही नियम विरूद्ध गतिविधियों पर एक सप्ताह में रिपोर्ट मांगी। इस पत्र में बताया गया कि राज्यपाल सचिवालय से प्राप्त शिकायत के आधार पर एक टीम गठित कर वस्तुस्थिति की जांच बिन्दुवार कर स्वयं के निरीक्षण में तैयार करवाकर शिकायत के बिन्दुवार रिपोर्ट एक सप्ताह में भिजवायी जावे। यह आदेश कलेक्टर ने शासन उप सचिव जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग के पत्र क्र. प. 2(25) आरपीजी/पब /बी /2008 दिनांक 15.9.2008 एवं दूरभाष के निर्देशों के आधार पर दिए।
13 खसरों की सवा सौ बीघा जमीन नगरपालिका की
इसके जवाब में तत्कालीन उपखंड अधिकारी अजीत सिंह राजावत ने अपने पत्र सं. सीएम/रीडर/08/42 दिनांक 03.10.2008 में बताया है कि जैन विश्व भारती के भीतर खसरा नं. 497 रकबा 19 बीघा 05 बिस्वा, ख.नं. 507 रकबा 5 बीघा 6 बिस्वा, ख.नं. 510 रकबा 6 बीघा 09 बिस्वा, ख.नं. 511 रकबा 6 बीघा 14 बिस्वा, ख.नं. 512 रकबा 3 बीघा 01 बिस्वा, ख.नं. 513 रकबा 14 बिस्वा, ख.नं. 514 रकबा 13 बीघा 04 बिस्वा, ख.नं. 515 रकबा 5 बीघा 19 बिस्वा, ख.नं. 516 रकबा 9 बीघा 9 बिस्वा, ख.नं. 517 रकबा 19 बीघा 06 बिस्वा, ख.नं. 509 रकबा 8 बीघा 12 बिस्वा, ख.नं. 495/2247 रकबा 13 बीघा 13 बिस्वा- इन सभी कुल 12 खसराओं की करब सवा सौ बीघा भूमि राजस्व रेकर्ड के मुताबिक नगरपालिका लाडनूं के नाम से नामांकन सं. 2220 दिनांक 30.07.2001 द्वारा अंकित है। इसके अलावा खसरा नं. 504 रकबा 13 बीघा 10 बिस्वा की आधी भूमि नगरपालिका और आधी भूमि जैन विश्व भारती के नाम से दर्ज है और जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय के नाम से मात्र खसरा नं. 508 रकबा 13 बिस्वा भूमि ही दर्ज है।
अनेक अन्य खातेदारों की भूमि पर भी कब्जा
इन संस्थाओं ने कुछ अन्य खातेदारों की भूमि खसरा नं. 496, 506, 507, व 508 पर भी अवैध कब्जा कर रखा है। अलग-अलग खसराओं पर निर्मित किए गए भवनों का वर्णन भी इस रिपोर्ट में दिया गया है। इस भूमि के नगरपालिका लाडनूं में निहित होने, संस्थान द्वारा भूमि का रूपांतरण नहीं कराए जाने, निर्माण कार्यों के लिए स्थानीय निकाय से कोई स्वीकृति नहीं ली जाने की जानकारी देते हुए इसके लिए स्थानीय नगरपालिका को कार्यवाही के लिए उत्तरदायी ठहराया था।

नेहरू पार्क को अतिक्रमण से मुक्त करवाने की मांग

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता महेशप्रकाश सांखला ने तहसीलदार सत्यनारायण शर्मा व अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा को पत्र लिखकर जिला कलेक्टर के आदेशों की पालना करने तथा अपनी कार्यवाही पूर्ण कर शीघ्र रिपोर्ट भिजवाने बाबत मांग की है। सांखला ने अपने पत्र में लिखा है कि राजकीय भूमि व सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण कर अनधिकृत रूप से निर्मित धार्मिक पूजास्थलों के सम्बंध में राज्य सरकार द्वारा जारी नीति के अनुसार तुरन्त कार्यवाही की जावे। इस सम्बंध में बताया गया है कि राजस्थान उच्च न्यायालय की एसबी सिविल रिट पिटीशन सं. 2145/2010 एवं उच्चतम न्यायालय की विशेष अनुमति अपील (दीवानी) सं. 8519/2006 में अन्तरिम आदेश दिनांक 29-09-09 की पालना में उन्हें निर्देशित किया गया है, इसके बावजूद प्रकरण में कार्यवाही लम्बित रखी जा रही है। सांखला ने जिला कलेक्टर के पत्र क्रमांक- एफ.12()राजस्व/2010/3880-3888 दिनांक- 19-05-11, क्र. 11878-11897 दिनांक-01-12- 2010, क्र. 13754-13773 दिनांक- 30-12-2010, क्र. 2338-2357 दिनांक- 29-03-2011 एवं क्र. न्याय/2010/9616-46 दिनांक- 10-11-2010 व क्र. 09/6864 दिनांक-28-10-09 का अपने पत्र में हवाला दिया है, जिनकी स्थानीय अधिकारियों द्वारा कोई पालना नहीं की जा रही है।
सांखला ने मांग की है कि नेहरू पार्क परिसर, लाडनूं को अतिक्रमण से मुक्त करावें। आवंटित भूमि खसरा नं. 497 सरहद लाडनूं को जिला कलेक्टर नागौर द्वारा पत्र क्रं. राजस्व राजस्व/86/903 दिनांक- 03-03-1986 द्वारा 30 वर्षों की लीज पर निशुल्क आवंटित किया गया था, परन्तु इसमें लीज शर्तों व नियमों का उल्लंघन किया गया है। यहां निर्मित भवनों के लिए स्थानीय निकायों से निर्माण सम्बंधी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई और न कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही ही की गई। सांखला ने इस सम्बंध में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से जारी पत्र क्रमांक- सीएम/रीडर/08/42 दिनांक- 03-10-2008, क्र. सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक- 04-11-2008, क्र. राज्यपाल सचिवालय/08/1781 व 1782 दिनांक- 16-10-2008 के सम्बंध में कार्यवाही नहीं की जाना बताते हुए तुरन्त कार्यवाही की मांग की है। उन्होंने तहसीलदार कार्यालय से जारी पत्रांक- भू.अ./2011/11/768 दिनांक- 07-04-2011 मेंसंलग्र की गई अतिक्रमियों की सूची के अनुसार अतिक्रमणों को हटाने व समस्त अनधिकृत रूप से बने मकानों को सरकारी तहबील में लेने की मांग भी की है।
इस सम्बंध में अनावश्यक विलम्ब करने, सभा-संस्थाओं के प्रभाव में आकर कत्र्तव्यनिष्ठा में विफल रहने, अपूर्ण सूचनाओं को अग्रेषित करने, रिकार्ड व पत्रावलियों को बिना देखे ही सूचनाएं भिजवाई जाने को गम्भीर व लापरवाही मानते हुए उच्चाधिकारियों व न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने की चेतावनी भी दी है।

mission kuldevi: Members in Rajasthan

mission kuldevi: Members in Rajasthan

शनिवार, 28 मई 2011

नेहरू पार्क को अतिक्रमण से मुक्त करवाने की मांग

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता महेशप्रकाश सांखला ने तहसीलदार सत्यनारायण शर्मा व अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा को पत्र लिखकर जिला कलेक्टर के आदेशों की पालना करने तथा अपनी कार्यवाही पूर्ण कर शीघ्र रिपोर्ट भिजवाने बाबत मांग की है। सांखला ने अपने पत्र में लिखा है कि राजकीय भूमि व सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण कर अनधिकृत रूप से निर्मित धार्मिक पूजास्थलों के सम्बंध में राज्य सरकार द्वारा जारी नीति के अनुसार तुरन्त कार्यवाही की जावे। इस सम्बंध में बताया गया है कि राजस्थान उच्च न्यायालय की एसबी सिविल रिट पिटीशन सं. 2145/2010 एवं उच्चतम न्यायालय की विशेष अनुमति अपील (दीवानी) सं. 8519/2006 में अन्तरिम आदेश दिनांक 29-09-09 की पालना में उन्हें निर्देशित किया गया है, इसके बावजूद प्रकरण में कार्यवाही लम्बित रखी जा रही है। सांखला ने जिला कलेक्टर के पत्र क्रमांक- एफ.12()राजस्व/2010/3880-3888 दिनांक- 19-05-11, क्र. 11878-11897 दिनांक-01-12- 2010, क्र. 13754-13773 दिनांक- 30-12-2010, क्र. 2338-2357 दिनांक- 29-03-2011 एवं क्र. न्याय/2010/9616-46 दिनांक- 10-11-2010 व क्र. 09/6864 दिनांक-28-10-09 का अपने पत्र में हवाला दिया है, जिनकी स्थानीय अधिकारियों द्वारा कोई पालना नहीं की जा रही है।
सांखला ने मांग की है कि नेहरू पार्क परिसर, लाडनूं को अतिक्रमण से मुक्त करावें। आवंटित भूमि खसरा नं. 497 सरहद लाडनूं को जिला कलेक्टर नागौर द्वारा पत्र क्रं. राजस्व राजस्व/86/903 दिनांक- 03-03-1986 द्वारा 30 वर्षों की लीज पर निशुल्क आवंटित किया गया था, परन्तु इसमें लीज शर्तों व नियमों का उल्लंघन किया गया है। यहां निर्मित भवनों के लिए स्थानीय निकायों से निर्माण सम्बंधी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई और न कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही ही की गई। सांखला ने इस सम्बंध में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से जारी पत्र क्रमांक- सीएम/रीडर/08/42 दिनांक- 03-10-2008, क्र. सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक- 04-11-2008, क्र. राज्यपाल सचिवालय/08/1781 व 1782 दिनांक- 16-10-2008 के सम्बंध में कार्यवाही नहीं की जाना बताते हुए तुरन्त कार्यवाही की मांग की है। उन्होंने तहसीलदार कार्यालय से जारी पत्रांक- भू.अ./2011/11/768 दिनांक- 07-04-2011 मेंसंलग्र की गई अतिक्रमियों की सूची के अनुसार अतिक्रमणों को हटाने व समस्त अनधिकृत रूप से बने मकानों को सरकारी तहबील में लेने की मांग भी की है।
इस सम्बंध में अनावश्यक विलम्ब करने, सभा-संस्थाओं के प्रभाव में आकर कत्र्तव्यनिष्ठा में विफल रहने, अपूर्ण सूचनाओं को अग्रेषित करने, रिकार्ड व पत्रावलियों को बिना देखे ही सूचनाएं भिजवाई जाने को गम्भीर व लापरवाही मानते हुए उच्चाधिकारियों व न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने की चेतावनी भी दी है।

धड़ल्ले से हुआ बाल विवाह : धरी रह गई शिकायत

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। प्रथमदृष्टया नाबालिग एवं विवाह के अयोग्य साबित हो जाने के बावजूद पुलिस व प्रशासन ने केवल लाचारगी ही नहीं दर्शाई बल्कि बाल विवाह को सम्पन्न करवाने में सहायक की भूमिका भी निभाई। स्थानीय तेली रोड़ पर गली नं. 27 के रहवासी मोहम्मद सलाम सिलावट की पुत्री साबिया बानो की शादी 15 मई को बीदासर के मो. वहीद पुत्र हाजी मो. बल्खी के साथ तय की, जिसकी शिकायत मो. रफीक सौरगर ने पुख्ता सबूतों के साथ उपखण्ड मजिस्ट्रेट के समक्ष करके बताया कि साबिया बानो नाबालिग है व विवाह के लिए योग्य आयु प्राप्त नहीं है। शिकायतकर्ता रपुीक ने अपनी शिकायत के साथ साबिया का जन्मतिथि प्रमाण पत्र, जो नगर पालिका से जारी था, तथा भारत के विदेश विभाग व दूतावास सहिम मस्कत सरकार द्वारा भी प्रमाणित थे। साबिया के पासपोर्ट की प्रति भी पेश की, जिससे वो मस्कट की विदेश यात्रा कर चुकी तथा मस्कट की अदालत में भी ये सभी दस्तावेजात प्रस्तुत किए जा चुके।
धड़ल्ले से भरा गया मायरा
उपखण्ड अधिकारी के पास शिकायत पहुंचने और लड़की के पिता को पाबंद करने के बावजूद इस विवाह ाके आयोजकों को राजनैतिक व अन्य समर्थन मिला,तथा उन्होंने अपने लाडनूं के मायरदारों से सार्वजनिक तौर पर मायरा लिया तथा पुलिस व प्रशासन को बालविवाह हर हाल करने की चेतावनी दे डाली।
शिकायतकर्ता को धमकाया व दबाया
इस शिकायत पर हालांकि उपखण्ड अधिकारी ने पुलिस व तहसीलदार को पाबंद किया, परन्तु दूसरी तरफ राजनैतिक, आर्थिक और अन्य दृष्टियों से दबाव डालकर अपने वैवाहिक आयोजन को हर हाल करने पर उतारू सलाम ने अनेक लोगों का सहारा लिया और शिकायतकर्ता को बुरी तरह डराया-धमकाया और उसे शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर तक किया, लेकिन जो बालविवाह की जानकारी एक बार प्रशासन की जानकारी में आ गई, उसे वापस दबा पाना मुश्किल होता है, और प्रशासन दवाब में आने के बावजूद खानापूर्ति कर फाईल को बंद करना तो आवश्यक समझता ही है।
निकाला मेडिकल जांच का रास्ता
जिस पिता ने मस्कत देश में बेटी के मुकदमें में उसकी उम्र के लिए जिस जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट का सहारा लिया, उसी ने उसे पूरी तरह झुठलाते हुए अपनी पुत्री की वास्तविक आयु 16 साल की जगह 19 साल बताते हुए पुलिस व प्रशासन की सलाह पर मेडिकल जांच करवाने का प्रस्ताव रखा। मेडिकल जांच में चिकित्सक ने न तो किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित समझा और न स्त्री रोग विशेषज्ञ या डेझिटस्ट की सलाह ही ली, जो इस तरह के प्रकरण में मायने रखती है। आखिर यह तो मिलीभगत पूर्वक खानापूर्ति करने का मामला जो ठहरा, इसलिए आनन-फानन में मेडिकल प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया , ताकि बाल विवाह में कोई अड़चन न पैदा हो। जब प्रशासन व पुलिस सहायक बन जावे तो कौन बाधा पैदा करेगा। मेडिकल रिपोर्ट को देखा जावे तो वह पमरी तरह प्रायोजित की प्रतीत होती है, जिसमें लड़की की आयु का निर्धारण करने में सारी खानापूर्तियां मात्र ही की गई। अगर कोई निष्पक्ष मेडिकल बोर्ड बैठाकर यह जांच अब भी की जावे तो यह रिपोर्ट पूरी तरह झूठ निकल सकती है।
कौन जिम्मेदार है इस बाल विवाह का?
राज्य सरकार ने आदेश निकाल कर उपखण्ड कार्यालयों पर बाल विवाह नियन्त्रण केन्द्र स्थपित करवाए तथा बाल विवाह के लिए एसडीओ को जिम्मेदार ठहराने की घोषणा की, पर यहां सभी आदेशों की खुली धज्जियां उड़ी, और सब देखते रहे, आखिर कहा जाता है कि समरथ को नहीं दोष गुसांईं।
नियमानुसार जिस काजी ने इस बाल विवाह की निकाह पढाई, जिस हलवाई ने बारातियों या वैवाहिक भोज के लिए खाना बनाया और जितने लोग वर व वधु पक्ष के इस शादी में शामिल हुए , गवाह बने वे सभी बराबर के मुलजिम होने चाहिए, पर वो तो तब ना जब प्रशासन इसके लिए कार्रवाई करने की इच्छा रखे।
खड़े रह गए सवाल
बाल विवाह तो सम्पन्न हो गया, परन्तु अनेक सवाल खड़े रह गए। इस मामले में पूरी जांच करने में प्रशासन ने पूरी कोताही बरती है।
-क्या जिस जन्म प्रमाण पत्र को उपखण्ड अधिकारी के समक्ष शपथ पत्र देकर बनवाया गया तथा उसके लिए एसडीओ की अनुज्ञा ली गई हो, वो झूठा हो सकता है?
- अगर वो झूठा है तो लड़की के परिजनों के विरूद्ध झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत करने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
- पासपोर्ट को लड़की अवयस्कता में उसके अभिभावक ने बनवाया, उसके समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किए, क्या वो झूठे है? अगर गलत हैं तो उनके लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जावे?
-मस्कत की अदालत में जिन दस्तावेजों का उसके पिता ने उम्र को साबित करने के लिए किया, क्या वो भी झूठे साबित किए जा सकते हैं?
- क्या पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्यों को नकार कर केवल अन्दाजन आयु का अनुमान बताने वाले डाक्टर के प्रमाण पत्र को सही माना जाना जायज कहा जा सकता है?
और भी अनेक सवाल हैं, पर जहां कानून को ताक पर रख दिया जावे तो वहां ये बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज है।

डेगाना तक हो रानीखेत एक्सप्रेस

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। सजग नागरिक मोर्चा ने रानीखेत से रतनगढ तक चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को बढाकर डेगाना तक करने की मांग की है। मोर्चा के अध्यक्ष जगदीश यायावर ने रेलमंत्री सहित महाप्रबंधक उत्तर रेलवे, चैयरमेन रेलवे बोर्ड, महाप्रबंधक उत्तर पश्चिम रेलवे एवं सभी सम्बंधित रेलवे अधिकारियों व सांसदों को पत्र लिखकर बताया है कि यह गाड़ी रतनगढ सुबह 11 बजे आती है और शाम 4 बजे वापस रानीखेत के लिए रवाना होती है। इस बीच के 5 घंटों के समय को डेगाना तक गाड़ी को बढाकर उपयोग में लिया जा सकता है। इससे इस क्षेत्र के लोगों, प्रवासियों, व्यापारियों और अन्य लोगों को भी लाभ मिल सकेगा तथा दिल्ली तक सीधा साधन उपलब्ध हो जाएगा। पत्र में बताया गया है कि सुजानगढ, लाडनूं, डीडवाना आदि से बड़ी तादाद में लोग दिल्ली, आसाम, बंगाल आदि विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं। रानीखेत एक्सप्रेस को डेगाना तक बढाए जाने से उन सबको इस ट्रेन से आवागमन का साधन उपलब्ध होने के साथ ही रेलवे को भारी राजस्व स्रोत मिलेगा।

शुक्रवार, 13 मई 2011

सेन समाज ने किया एकता का प्रदर्शन-- सामूहिक रूप से मनाई सेन जयंती: शोभायात्रा निकाली

लाडनूं (जीतमल टाक)। स्थानीय सेन समाज द्वारा पहली बार सेन जयन्ती के अवसर पर पूर्वी तरफ बसे और पश्चिमी तरफ बसे दोनों की तरफ से सामूहिक रूप से विशाल आयोजन किया गया। इस अवसर पर हालांकि सेन बगीची व सेन मंदिर दोनों में अलग-अलग हवन व पूजा-पाठ का आयोजन किया गया, लेकिन सेन मंदिर से सेन बगीची तक शहर के विभिन्न मार्गों से निकाली गई शोभायात्रा ने समूचे शहर को सेन समाज की एकता का परिचय दिया। इस अवसर पर भक्त शिरोमणि सेन महाराज की विशाल फोटो के साथ विभिन्न झांकियों, मोटर साईकिल रैली, नगाड़ा-निशान व बैंड-बाजों के साथ समाज के बड़ी संख्या में महिला-पुरूषों ने गाते व नारे लगाते शरीक होकर यात्रा की शोभा बढाई। सेन मंदिर में यज्ञ में यजमान के रूप में लालचंद सेन बैठे व सेन बगीची में हुए यज्ञ में भंवरलाल निर्वाण, राजकुमार निर्वाण, विजयकुमार टोकसिया, सुमेरमल मोयल व सज्जन कुमार मोयल यजमान बने। सभी आयोजनों में सेन मंदिर के मंत्री कुन्दनमल टाक, मांगीलाल सोनगरा, अमरचंद टाक, जीतमल टाक, नथमल फूलभाटी, बद्रीलाल फूलभाटी, केशरीचंद टाक, गिरधारीलाल सेन, पोकरमल निर्वाण, ललित वर्मा, लूणकरण फूलभाटी, रामेश्वर सेन, गणेशमल सोनगरा, जगदीश सेन आदि प्रमुख लोगों ने आगे आकर सफल बनाया। इस दिन सभी सेन समाज के लोगों ने अपनी अपनी दुकानें व प्रतिष्ठान बंद रखकर सेन जयंती में एकता की भावना को बल दिया।

शहर मंडल में प्रवीण जोशी व ताजू खां बने महामंत्री

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। भारतीय जनता पार्टी की शहर मंडल अध्यक्ष मुरलीधर सोनी ने भी प्रतीक्षित अपनी टीम की घोषणा कर दी है। शहर मंडल की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष पद पर श्रीमती निर्मला जांगिड़, पूनमचंद टाक, सुखदेव सिंह, लादूराम गुर्जर, श्रीमती गायत्री देवी शर्मा व अली अकबर रिजवी को मनोनीत किया गया है। महामंत्री के रूप में प्रवीण कुमार जोशी व ताजू खां मोयल को नियुक्ति दी गई है। मंत्री पद पर रूगाराम मौर्य, नानूराम चिंडालिया, भंवरू खां टाक, श्रीमती परमेश्वरी देवी राठी, श्रीमती सुशीला दूगड़ व श्रीमती दर्शन देवी सेन को लिया गया है। कोषाध्यक्ष फूलचंद जालान को बनाया गया है। कार्यकारिणी में अंतरंग सदस्यों के रूप में कु. एलिजा पीपावत, श्रीमती सुमित्रा आर्य, श्रीमती जुबेदा खान, श्रीमती किस्तूरी देवी सोनी, श्रीमती मुजू देवी जालान, श्रीमती शकुन्तला पांडय़ा, श्रीमती मुन्नी देवी चौहान, श्रीमती हौलासी देवी जांगिड़, श्रीमती संतोष देवी ढोली, श्रीमती वन्दना जांगिड़, श्रीमती दिलभर माथुर, श्रीमती रमाकान्ता शर्मा, श्रीमती मंजूदेवी सोनी, श्रीमती रूकमणी देवी पारीक, भीकमचंद बैद, द्वारका प्रसाद शर्मा, नारायणसिंह चौहान, महेन्द्रकुमार अग्रवाल, दानाराम जांगिड़, मोहनलाल वर्मा, मनीर खां, भैराराम माली, ओमप्रकाश सोनी, गंगाराम रेगर, शौकतअली सिलावट, ललित कुमार वर्मा, गुलाबचंद चौहान, फतूखां मलवाण, नन्दकिशोर वर्मा, जगदीश प्रसाद दौलावत, सुभाष टेलर, मदनगोपाल शर्मा, गोविन्दसिंह जोधा, जगदीश प्रसाद माहेश्वरी, ओमप्रकाश प्रजापत, रामेश्वरलाल सांखला, अनवर सोरगर, मईनुदीन पडि़हार, सुरेश कुमार जडिय़ा, प्रेमप्रकाश प्रजापत, बजरंगलाल पारीक, ताराचंद वर्मा, दीन मोहम्मद सोलंकी व लालचंद सोनी को शामिल किया गया है।
कार्यकारिणी में अन्य आमंत्रित सदस्यों के रूप में पूर्व विधायक मनोहरसिंह, पूर्वअध्यक्ष गोविन्दचंद माथुर, उमेश पीपावत, श्रीचंद पारीक व हनुमानमल जांगिड़, पालिकाध्यक्ष बच्छराज नाहटा, उपाध्यक्ष याकूब शेख, पूर्व पालिकाध्यक्ष गुलाबरानी भोजक स्थाई आमंत्रित सदस्य व पार्षद छत्तरसिंह, अदरीश खां, बीरबल स्वामी, हनुमानमल जोशी, भंवरलाल प्रजापत, दीपक चौरडिय़ा, कल्याण सिंह चौहान, फैजूखां, नेमाराम भानावत, बिदाम व्यौपारी व श्रीमती आचूकी बानो को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में रखा गया है।

भाजपा की कार्यकारिणी घोषित-- तनसुख शर्मा व लादूसिंह बने ग्रामीण मंडल के महामंत्री

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। लम्बे समय से प्रतीक्षित भारतीय जनता पार्टी की ग्रामीण व शहर मंडल की कार्य कारिणियां जिलाध्यक्ष हरीश कुमावत के निर्देशानुसार घोषित कर दी गई है। ग्रामीण मंडल अध्यक्ष नाथूराम कालेरा की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष के रूप में इन्द्रसिंह रावणा राजपूत, राजकंवर राठौड़, डालूराम मेघवाल, रामप्यारी गूजर, भंवरलाल सैनी व नीलिमा गौड़ को उपाध्यक्ष के रूप में शामिल किया गया है। महामंत्री पद तनसुख शर्मा जैसलाण व लादूसिंह राठौड़ धूडि़ला को दिया गया है। मंत्री के रूप में रामूराम मेघवाल, प्रेमदास स्वामी, भवानीसिंह राठौड़, उच्छब कंवर, सुप्यार कंवर व हनीफ टाईगर को लिया गया है। कोषाध्यक्ष पद का दायित्व हनुमान प्रसाद शर्मा ध्यावा को सौम्पा गया है। कार्यकारिणी में अंतरंग सदस्यों के रूप में पूर्णसिंह राठौड़ खानपुर, पन्नालाल गुर्जर जसवंतगढ,संग्रामसिंह राठौड़ डाबड़ी, रवीन्द्रसिंह राठौड़ कसुम्बी अलीपुर, किरण प्रजापत धोलिया, शिवभगवान पुरोहित लैड़ी, रिछपालसिंह राठौड़ अनेसरिया, रिछपाल शर्मा सारड़ी, खंगाराम चौधरी खींवज, सत्यनारायण शर्मा मीठड़ी, श्रवण धाभाई फिरवासी, सुन्दर देवी प्रजापत रींगण, शिवनारायण घोटिया बाकलिया, मोहनराम बीजारणिया तंवरा, संतोष शर्मा जैसलाण, कीर्ति कंवर राठौड़ हुसैनपुरा, सोहनराम गिंवारिया घिरड़ौदा मीठा, कायम सिंह राठौड़ छपारा, मुकेश जांगिड़ बालसमंद, अमर सिंह सोढा बालसमंद, अर्जुनसिंह शेखावत बाकलिया, नारायणी देवी मेघवाल बाकलिया, उम्मेदसिंह शेखावत मीठड़ी, फेफी मेघवाल सारड़ी, रतनी देवी मेघवाल रोजा, फातमा तेली निम्बी जोधां, कानाराम प्रजापत कसूम्बी, रामेश्वर लाल प्रजापत ध्यावा, ललिता स्वामी छपारा, जुवाना राम प्रजापत बल्दू, प्रताप सिंह राठौड़ कोयल, हेमाराम नायक रताऊ, रामनारायण चोयल सींवा, आसी देवी भाकर सिलनवाद, कालूराम गूजर रोजा, कविता कंवर राठौड़ हुडास, तुलसी देवी गूजर देवरा, हीर सिंह राठौड़ मणूं, प्रभुराम भारी चन्द्राई, किरण देवी सोनी निम्बी जोधां, जुगल किशोर अग्रवाल घिरड़ौदा मीठा, छोटुराम हरिजन निम्बी जोधां व रामकरण शर्मा सिकराली को सम्मिलित किया गया है।
इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्यों में पूर्व विधायक मनोहरसिंह, पूर्व प्रधान श्रीमती इंद्रमणि दायमा, पूर्व उपप्रधान बजरंगसिंह लाछड़ी, पूर्व अध्यक्ष बजरंगलाल दायमा, प्रेमाराम बीडासरिया, हनुमानाराम कालुराम गेनाणा, श्रीमती ममता बागड़ा, चैनसिंह ओड़ींट, पदमसिंह रोड़ु, ओमप्रकाश बागड़ा, राजेन्द्रसिंह धोलिया, गोविन्दसिंह कसूम्बी, अंजनी सारस्वत, भागीरथ पारीक आदि को शामिल किया गया है।

तीसरी बार बने गोदारा अध्यक्ष व घींटाला कार्यालय मंत्री- शिक्षक संघ शेखावत के चुनाव

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। लाडनूं ब्लॉक के सबसे बड़े 700 क्रियाशील सदस्यों वाले शिक्षक संघ शेखावत के चुनाव पर्यवेक्षक नथूराम ईनाणियां व कैलाश कांकड़ की देखरेख में निर्विरोध सम्पन्न हुए। इस अवसर पर जिला उपाध्यक्ष लालाराम बिडिय़ासर भी मौजूद थे। पंचायत समिति सभागार में आयोजित इस बैठक में संरक्षक हरनाथ पूनियां ने कार्यकारिणी की घोषणा की, जिसे सर्वसम्मति से निर्णित करके घोषित किया गया। इसके अनुसार सह संरक्षक घीसाराम चौधरी, अध्यक्ष नानूराम गोदारा गैनाणा, महामंत्री चन्द्राराम मेहरा फिरवासी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सोहन सारण, कोषाध्यक्ष हनुमानराम बुरड़क तिलोटी, सभाध्यक्ष पन्नालाल टाक मंगलपुरा, सह सभाध्यक्ष विजय प्रजापत, उपाध्यक्ष रामप्रताप स्वामी बिठुड़ा, बसंत माली, नसरूद्दीन भाटी, इन्द्र जांगिड़ लाडनूं, रामनिवास, रामावतार, रामनिवास पुरी, विधिमंत्री रामप्रसाद जाखड़ व कार्यालय मंत्री जगदीश प्रसाद घींटाला कसूम्बी जाखला को उबनाया गया है। प्रेरक प्रतिनिधि श्याम पंवार व महिला प्रेरक मंत्री मुजू महला लाछड़ी को नियुक्त किया गया है।
प्रवक्ता नाथूसिंह शेखावत ने बताया कि गोपाल साख बेड़, मदन झूरिया, बालूराम डूडी, भागीरथ पचार, प्रतिभा शर्मा, हनुमानसिंह राजावत, सहदेव मंडा, श्रीराम पावडिय़ा, पदमाराम डोडवानिया, प्रवीण शर्मा, उम्मेदसिंह, राजू बिडिय़ासर, मुस्ताकखां मीठड़ी, भागीरथ मंडा, दीनदयाल ठोलिया मिंडासरी, दलिप सींवा, कालू भूरावत व शहरी उपाध्यक्ष महेन्द्रसिंह राठौड़ सहित दो दर्जन शिक्षकों को जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।

Digambar Jain Bara Mandir Ladnun (Rajasthan)




Location: Digambar Jain Bara Mandir is situated in the heart of Ladnun town, dist. Nagur, Rajasthan. Ladnun town is connected by rail via Delhi-Jodhpur railway rail route. This town is connected by road to most of major cities of Rajasthan. Ladnu is an ancient and historical town.
The Digambar Jain Bara Mandir is a magnificent temple houses several artistic and rare idols of Jain Thirthankara, beautiful images, engraved pillars, rare pieces of art and old jaina dharma manuscripts.
The sixteenth tirthankar Bhagwan Santinath idol is established on the main Vedi. The beautiful and matchless idol of Bhagwan Santnathji is made of marble with a dimension of 94x70 cm. In front of the idol there is a rare piece of artistic door ( Toran-dwar) placed on two marble pillars. On the two pillars, two artful and rare images of godless Sarswati are engraved. There is an inception found on the door which indicate that the temple is build on Ashad Sukla 8, Sanwat 1136. This writing indicate that the temple is more than 1000 years old.
In the second vedica chamber, there is an idol of second Thirthankar Bhagwan Ajitnathji. This idol is 74x60 cm in dimension and made of marble. An inscription found on the the idol written Baisak Sukla 13, Smawat 1209. In front of Baghwan Ajitnathji idol there is also a marble door with two pillars. The two pillars are decorated with artistic Jaina images.

In the art gallary there are 166 marble an idol of Bhwan Risbhadeva made of brown stone, and two idols of Bhagwan Paesvanatn with nine headed serpents.
An beautiful image of Bhagwan Neminathji is also found in the art gallery. Several other images made of metals are found in digging in the nearby areas of Ladnun are placed in this art gallery.
This temple is built and repaired several times but its magnificence, beauty, purity and calmness is preserved through ages.

बुधवार, 11 मई 2011

भारत रत्न का खुला अपमान क्यों?

भारतवर्ष क्रिकेट प्रतियोगिता में विजयी हुआ। यह विजय बहुत संघर्ष के बाद प्राप्त हुई। कप्तान महेन्द्रसिंह धोनी, विराट कोहली, गौतम गम्भीर और युवराज सिंह विशेष बधाई के पात्र हैं।
यदि हम क्रिकेट के कथित भगवान के भरोसे रहते तो कभी नहीं जीत सकते थे। इस विश्व कप प्रतियोगिता में क्रिकेट के भगवान की भूमिका कुछ अच्छी नहीं रही। वह एक शतक भी नहीं बना सके। वस्तुत: जब से मीडिया ने श्रीमान को क्रिकेट का भगवान कहना शुरू कर दिया है, तब से उनकी क्रिकेट में गिरावट आई है। भगवान शब्द बहुत गम्भीर और गूढ अर्थों वाला है। यह धरती के किसी जीवित प्राणी के लिए प्रयोग करना उचित नहीं है। भारत की जनता में यह अक्सर देखा गया है कि वह किसी को भी भगवान कहने लगती है। और यहां तरह-तरह के उपनाम भी दे दिए जाते हैं, जैसे- फिल्मों में बिग-बी, मिस्टर परफैक्ट आदि तथा क्रिकेट में- मास्टर ब्लास्टर तथा मिस्टर भरोसेमंद आदि। ऐसे उपनाम उस व्यक्ति को भ्रमित कर देते हैं, जिसको इनसे पुकारा जाता है। हम व्यक्ति को व्यक्ति ही रहने दें तो अच्छा है। उसे भगवान जैसे विशेषणों से सुशोभित न करें। मीडिया के ही कुछ लोगों ने इस कथित भगवान के लिए भारत रत्न देने की मांग उठाई। भारत रत्न जैसी उपाधि उन व्यक्तियों को दी जाती है, जिन्होंने देश पर अपना तन-मन-धन बलिदान कर दिया। भारत रत्न की उपाधि के वह लोग कदापि अधिकारी नहीं है, जो एक खेल में एक करोड़ रूपये प्राप्त करते हैं। जो देश में करोड़ों रूपये हर साल कमा रहे हैं, उनको भारत रत्न की उपाधि देना कत्तई अनुचित है। और उनकी यह कमाई देश के राजकोष की वृद्धि नहीं करती, वह उद्योगपति भी नहीं है कि वे बेरोजगारों को रोजगार दे सके। वह व्यक्तिगत स्वार्थ में खेलते हैं और धन कमाते हैं। अत: उनके खेल का प्रतिफल उनको प्राप्त हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों के लिए भारत रत्न की मांग उठाना भारत रत्न जैसी उपाधि का नहीं बल्कि उन सभी का अपमान है, जिन्हें यह उपाधि उनके बलिदान के कारण दी गई।
अत: हमें ऐसी उपाधियां दिए जाने की मांग करने से पहले सोचना चाहिए। और, वर्तमान में मेरी सलाह है कि क्रिकेट के भगवान अब क्रिकेट से अन्तध्र्यान हो जाएं। क्रिकेट के सम्बंध में वर्तमान परिस्थ्िितयां परिवर्तित हुई हैं। पहले यह खेल के रूप में खेला जाता था, अब यह युद्ध के रूप में खेला जाता है। इसीलिए हेलमेट, मुखौटा आदि पहनने पड़ते हैं।- Hitesh kumar Sharma, Bijnour

बुधवार, 4 मई 2011

नगर पालिका से गायब हो रहे पत्रों को लेकर पार्षद मुखर हुए---- कमेटियों के गठन की स्वीकृति से सम्बंधित डाक हुई गायब

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय नगर पालिका में आने वाली डाक को आवक रजिस्टर में दर्ज करने के बजाये उसे पूरी तरह गायब कर दिया जाता है। इसी तरह की हालत के शिकार खुद पालिकाध्यक्ष बच्छराज नाहटा भी हुए, जिनके खुद के नाम की डीएलबी से आई डाक को भी गायब कर दिया गया। उन्होंने जब पार्षदों को इससे अवगत करवाया तो सभी पार्षदों को यह बुरा लगा तथा बोर्ड की गत 29 अप्रेल की बैठक में मुखर होकर पार्षदों ने इस मामले में आवाज उठाई।
क्या था मामला
नगर पालिका मंडल में 31 दिसम्बर की बैठक में समितियों का गठन किया गया, जिसमें अधिशाषी अधिकारी ने 60 दिनों में समितियों का गठन नहीं होने को लेकर आपति दर्ज की, उस पर अध्यक्ष ने बार-बार आदेश दिए जाने के बावजूद ई.ओ. द्वारा बैठक नहीं बुलाकर जानबुझकर देरी करने बाबत प्रति-टिप्पणी दर्ज की। इस कार्यवाही की प्रति नियमानुसार डीएलबी, कलेक्टर, उपनिदेशक अजमेर आदि को भेजी गई। इस के बाद सभी कमेटियों के अध्यक्षों ने ईओ को उनकी समिति की बैठक बुलाने का आग्रह किया, परन्तु बिना डीएलबी की स्वीकृति के बिना बैइक बुलाई जाने से इंकार कर दिया गया। नगरपालिका अधिनियम 2009 की धारा-58(1) के अनुसार दो माह के भीतर समिति की बैठक बुलानी जरूरी है। अधिनियम में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि इसके लिए डीएलबी से पूर्व स्वीकृति ली जावे।
इस सम्बंध में श्रीती सुमित्रा आर्य, जो गंदी बस्ती सुधार समिति की अध्यक्ष हैं, ने 14 पॅरवरी को अधिशाषी अधिकारी को एक पत्र बैठक बुलाने बाबत दिया, जो पालिका के आवक रजिस्टर में क्रमांक 1084 पर दिनांक 14-02-11 को दर्ज है। इस पर कोई कार्यवाही नहीं होने पर उन्होंने अधिनियम की धारा - 58 (3) के तहत समिति के अध्यक्ष द्वारा बैठक बुलाने के प्रावधान का उपयोग अपने अधिकारों के तहत करते हुए 11 मार्च को बैठक बुलाने की सूचना जारी कर दी, जिसे नगर पालिका के आवक रजिस्टर में क्रमांक 1153 दिनांक 01-03-11 पर दर्ज किया गया। इसमें अध्यक्ष ने नियमानुसार बैठक बुलाने के लिए ईओ को पाबंद भी किया, परन्तु इस बैठक की कार्यवाही स्वयं लिखने, किसी अन्य कर्मचारी को नियुक्त कर कार्यवाही लिखवाने व बैठक में स्वयं मौजूद रहने से भी मना कर दिया तथा कहा कि जब तक उनके पास डीएलबी की स्वीकृति नहीं आ जाती, तब तक वे कुछ नहीं करेंगे। वे डीएलबी को रिमाण्डर भेज देंगे, बाद में जो होगा देखेंगे।
क्या था पत्र
इसके बाद डीएलबी से पत्र क्रमांक: प.8 (ड़)()बो.प्र./डी एल बी / 10/ 1022 दिनांक 16-3-11
प्राप्त हुआ, जिसमें स्वायत्त शासन विभाग के शासन उप सचिव ने स्पष्ट आदेश दिया कि नगर पालिका लाडनूं की साधारण सभा की बैठक दिनांक 31.12.10 के प्रस्ताव सं. 02 के सम्बंध में अधिशाषी अधिकारी से प्रापत टिप्पणी को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 49(4) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार तत्काल प्रभाव से निरस्त करती है। इसके साथ ही अधिशाषी अधिकारी लाडनूं को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि मण्डल द्वारा गठित समितियां विधिवत कार्य कर सकेंगी।
इस पत्र की प्रतियां जिला कलेक्टर, उपनिदेशक क्षेत्रीय अजमेर, अध्यक्ष नगरपालिका लाडनूं आदि को भेजी गई। यह पत्र नगर पालिका के रिकार्ड से गायब होगया। अध्यक्ष व अधिशाषी अधिकारी दोनों की डाक को इंद्राज नहीं किया गया।
इसके बाद डीएलबी से पत्र क्रमांक: प.8 (ड़)()बो.प्र./डी एल बी / 10/ 1029 दिनांक 30-3-11 को एक आदेश जारी करके पूर्व समसंख्यक आदेश 1022 दिनांक 16.03.2011 की क्रियान्विति को अग्रिम आदेशों तक स्थगित कर दिया गया। साथ ही ईओ को बोर्ड बैठक दिनांक 31.12.2010 के प्रस्ताव सं. 02 के सम्बंध में सम्पूर्ण रिकॉर्ड लेकर शीघ्र विभाग के पास उपस्थित होने के आदेश दिए।
इस आदेश की प्रति अध्यक्ष को उपलब्ध करवा दी गई, जिससे पूर्व पत्र के आने और गायब होने की पोल खुली। सभी पार्षदों ने इस सम्बंध में बैठक में ईओ से जवाब मांगा तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए तथा यह भी नहीं बताया कि वे रिकार्ड लेकर जयपुर गए या नहीं। पार्षदों ने भविष्य में इस प्रकार डाक गायब नहीं करने की हिदायत अधिशाषी अधिकारी को बैठक में दी।

लोकप्रिय हो रहे हैं कलम कला ग्रुप के इंटरनेट ब्लॉग: नया ब्लॉग तहकीकात अवश्य पढें

पाठक बंधुओं,
ब्लॉग इंटरनेट पर एक खास विधाके रूप में बहुत तेजी से लोकप्रिय हुए हैं। तीव्रता से आगे बढने वाले का सदैव सभी तरफ से स्वागत होता आया है। और यही कारण है कि आज कुछ ही सालों में लाखों की संख्या इस ब्लॉग विधा ने पार कर ली। विशेष बात यह है कि हिन्दी माध्यम के ब्लॉग भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय हो पाए हैं। कलम कला ने बर्षों पूर्व अपना एक ब्लॉग इंटरनेट पर उतार दिया था। आज हमारे इस कलम कला ग्रुप के एक दर्जन हिन्दी ब्लॉग इंटरनेट पर मौजूद है। कलम कला के कार्यकारी सम्पादक श्री जगदीश यायावर और मैंने (श्रीमती सुमित्रा आर्य) ने मिलकर इस ब्लॉग विधा पर बहुत कार्य किया, बहुत होम-वर्क किया और घण्टों कम्प्यूटर पर बैठ कर सिर खपाया तथा नई तकनीक के नए-नए प्रयोग किए, तब कहीं जाकर इस ब्लॉग विधा में हमें दक्षता हासिल हुई। हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि आज हमारे द्वारा प्रकाशित ब्लॉग्स देश भर में श्रेष्ठ ब्लॉग के रूप में जाने-पहचाने जाते हैं। इन ब्लॉग में हमने अपनी मातृभूमि, अपने गांव और अपने लोगों को विशेष महत्व दिया है, आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ये क्षेत्र अपनी अहमियत बनाए हुए हैं।
हम चाहते हैं कि आप सभी बंधु भी अगर अभी तक हमारे इन ब्लोग से रूबरू नहीं हुए हैं तो कृपया अपने कम्प्यूटर पर गूगल पर सर्च करें या सीधा ही हमारा वेब-एड्रेस टाईप करके हिट करें। ब्लॉग पढें और अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत करावें। मैंने हाल ही में एक नया ब्लॉग बनाया है, जो तहकीकात के नाम से है। इसमें आप अपराधों, भ्रष्टाचार आदि का खुलासा आध्ेर जानकारियां पा सकेंगे। भंडाफोड़ करने वाले इस ब्लॉग के हमें विशेष लोकप्रियता हासिल करने की उम्मीद है। कृपया यह वेब एड्रेस नोट करें और खोलें हमारा वेब-ब्लॉग- http://tahkikat.blogspot.com/
- सुमित्रा आर्य, सम्पादक Email- editor.sumitra@gmail.com

पेयजल किल्लत पर महिलाओं का प्रदर्शन सहायक अभियंता ने मौका देखकर दिलाया समाधान का भरोसा



लाडनूं। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जलदाय विभाग द्वारा की जाने वाली पेयजल की आपूर्ति की स्थिति बदतर होने से लोगों में काफी रोष है। मालियों के मोहल्ले, नाईयों के बास, मगरा बास, सदर बाजार आदि क्षेत्रों में पानी सही समय पर व पूरे प्रेशर के साथ नहीं खोले जाने से नागरिक परेशान है। इस स्थिति के चलते शहर के वार्ड सं. 16 में मालियों के मोहल्ले में बनी पानी की समस्या से त्रस्त लोगों की आवाज उठाते हुए 19 अप्रेल को पार्षद व जिला आयोजना समिति की सदस्य सुमित्रा आर्य के नेतृत्व में दो दर्जन से अधिक महिलाओं ने जलदाय विभाग पहुंचकर सहायक अभियंता कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया व पानी दिए जाने की मांग की। सहायक अभियंता धीरेन्द्र पचौरी एवं अन्य अभियंता हालांकि उस समय कार्यालय में मौजूद नहीं थे। उन्होंनें बाद में कर्मचारियों के साथ मालियों के मोहल्ले में पहुंचकर पेयजल आपूर्ति की स्थिति का आकलन किया। उन्होंने स्वीकार किया कि पाईप लाईन वर्षों पुरानी होने से ब्लॉक हो चुकी जिससे पानी की पूरी आपूर्ति संभव नहीं हो पा रही है। उन्होंने पार्षद सुमित्रा आर्य को विश्वास दिलाया कि शीघ्र ही विभाग के पास पाईप मिलते ही पूरी लाईन बदल दी जाएगी। उन्होंने तब तक दो कर्मचारियों को लगाकर कुछ पाईपों को निकालकर उन्हें साफ कर दूसरी लाईन में जोड़कर पानी की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया।

10 अरब की जिला वार्षिक योजना पारित

नागौर (कलम कला न्यूज)। जिला आयोजना समिति की बैठक में नागौर जिले की वार्षिक योजना पारित की गई। जिला आयोजना समिति की सदस्य श्रीमती सुमित्रा आर्य ने बताया कि वर्ष 2011-12 के लिए विभागीय प्लान सीलिंग (आयोजना बजट प्रावधान) को ध्यान में रखते हुए जिला वार्षिक योजना के प्रस्तावों को अंतिम रूप दिया गया। इसके अन्तर्गत जिले के लिए कुल 984 करोड़ 77 लाख 77 हजार रूपयों के प्रावधान पारित किए गए हैं। इसमें 389 करोड़ 37 लाख 37 हजार रूपये राज्य योजना मद से व 595 करोड़ 40 लाख 40 हजार रूपये केन्द्रीय प्रवर्तित योजना मद से शामिल किए गए हैं। योजना के आकार के अनुसार इसमें सबसे अधिक प्रावधान जिले की ग्रामीण विकास योजनाओं की राशि 455 करोड़ 92 लाख 68 हजार रूपये रखी गई है, जो जिले की कुल वार्षिक योजना का 46.30 प्रतिशत है। इसमें मुख्य रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना पर खर्च किया जाएगा।
श्रीमती आर्य ने बताया कि नागौर जिले की वार्षिक योजना को राज्य सरकार के निर्देशानुसार विकेन्द्रीकृत योजना तैयार करने को ध्यान में रखते हुए 20 विषयों को सम्मिलित किया गया है। इसके तहत कृषि विभाग को 1 करोड़ 82 लाख 61 हजार, उघान (हॉर्टीकल्चर) विभाग को 11 करोड़ 88 लाख 70 हजार, भू-संरक्षण विभाग को 2 करोड़ 20 लाख 85 हजार, पशुपालन विभाग को 84 लाख 58 हजार, मत्स्य विभाग को बिल्कुल नहीं, ऊर्जा विभाग को 56 करोड़ 50 लाख, जलदाय विभाग को 92 करोड़ 45 लाख 76 हजार, शिक्षा विभाग को 36 करोड़ 73 लाख 43 हजार, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को 55 करोड़ 37 लाख 60 हजार, ग्रामीण विकास विभाग को 4 अरब 55 करोड़ 92 लाख 68 हजार, पंचायती राज विभाग को 1 अरब 33 करोड़ 16 लाख 2 हजार, उद्योग विभाग को 73 लाख 85 हजार, सार्वजनिक निर्माण विभाग को 77 करोड़ 96 लाख, महिला एवं बाल विकास विभाग को 38 करोड़ 33 लाख 98 हजार, स्वायत शासन विभाग को 4 करोड़ 93 लाख 41 हजार, वन विकास के लिए 72 लाख 16 हजार, समाज कल्याण विभाग को 14 करोड़ 19 लाख 78 हजार, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को 60 लाख 74 हजार, जल संसाधन विभाग को 20 लाख एवं पर्यटन विभाग को 15 लाख रूपयों की योजनाएं स्वीकृत की गई है।

अपनी दिशा न भूले मीडिया: निरंकुश न बने लोकप्रिय होती ब्लॉग पत्रकारिता



पत्रकारिता को हमेशा एक आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है। जनता की भावनाओं का खुला पृष्ठ होता था पत्रकारिता। मगर आज लगता है स्थितियां बदल गई है। पत्रकारिता जहां प्रिण्ट मीडिया के दायरे से निकल कर रेडियो तक पहुंची तब तक तो सब ठीक था, मगर टीवी चैनलों, इंटरनेट पर वेब-साईट और ब्लॉग पत्रकारिता में घुसे लोगों ने इसे ऐसा आयाम दिया है, जो कतई सुखद नहीं कहा जा सकता। इसमें सुधार लाने के लिए प्रयास किए जाने जरूरी है। हमें निश्चित रूप से पत्रकातिा को स्वस्थ स्वरूप प्रदान करने के लिए पहल करनी चाहिए। इसके लिए पत्रकारिता को बदनाम करने वाली हर हरकत का खुलकर विरोध पत्रकारिता जगत से ही होना जरूरी है। इसके लिए हमें आत्म चिंतन करना चाहिए तथा हर स्थ्िित के बारे में गहराई से सोचना चाहिए।
टीवी पत्रकारिता का सच: ख़बरिया चैनलों में काम कर रहे पत्रकार खुद दुखी हैं। ऐसे पत्रकारों का मानना है कि वे ऐसी स्थिति में हैं कि न तो छोड़ सकते और वहां बने रहना उनके लिए दुश्वार हो गया है। अभिमन्युं की तरह इस पत्रकारिता के चक्रव्यूह में फंसे होने पर उनके प्रति दुख प्रकट किया ही जा सकता है, साथ ही उन्हें अपने व्यवहार में सुधार लाने की सलाह दी जानी भी जरूरी है। हालांकि इन्हीं न्यूज़ चैनलों में कुछ ऐसे पत्रकारों की जमात भी मौजूद है, जो योग्यता के मुकाबले कैसे हैं, यह नहीं कहा जा सकता लेकिन वे न्यूज़ चैनल के मंच का, उसके ग्लैमर का, उसकी पहुंच का इस्तेमाल कर अपनी छवि भी चमकाते हैं और जब भी जहां भी सार्वजनिक तौर पर बोलने का मौक़ा मिलता है, वहां न्यूज़ चैनलों को गरियाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। उनका यह रूप और चरित्र वास्तविक पत्रकारिता करने वालों को हमेशा परेशान करता है। यह अपने पेशे से एक तरह का छलात्कार है, जो क्षणिक तो मजा देता है, लेकिन पत्रकारिता का बड़ा नुक़सान कर डालता है। ख़ुद की छवि को चमकाने के लिए पत्रकारिता पर सवाल खड़े करने वाले इन पत्रकारों की वजह से दूसरे लोगों को आलोचना का मौक़ा और मंच दोनों मिल जाता है। टीवी मीडिया के उन फंसे अभिमन्युओं को चाहिए कि वे चक्रव्यूह में फंसकर दम तोडऩे के बजाय युद्ध का मैदान छोड़ दें। अगर न्यूज़ चैनलों में उनका दम घुटता है तो वे वहां से तत्काल आज़ाद होकर अपना विरोध प्रकट करें। ऐसे पत्रकार बंधु व्यवस्था का विरोध करना तो दूर की बात, कभी अपनी नाख़ुशी भी नहीं जतापाते। मालिकों के सामने भीगी बिल्ली बने रहने वाले इन पत्रकारों को सार्वजनिक विलाप से बचना चाहिए। यह उनके भी हित में है और पत्रकारिता के हित में भी। किसी भी चीज की स्वस्थ आलोचना हमेशा से स्वागत योग्य है, लेकिन व्यक्तिगत छवि चमकाने के लिए की गई आलोचना निंदनीय है।
बेलगाम होती ब्लॉग पत्रकारिता: ब्लॉग पत्रकारिता का एक नवीनतम आयाम है। ब्लॉग तेजी से अपना वर्चस्व कायम करते जा रहे हैं। ब्लॉग पाठकों की संख्या में बेतहासा ईजाफा इसकी बढती लोकप्रियता को इंगित करता है। हिंदी में ब्लॉग के माध्यम से बड़ा काम हो रहा है। यह बिल्कुल सही बात है कि ब्लॉग और नेट के माध्यम से हिंदी के लिए बड़ा काम हो रहा है, लेकिन कुछ ब्लॉगर और वेबसाइट जिस तरह से बेलगाम होते जा रहे हैं, वह हिंदी भाषा के लिए चिंता की बात है।् ब्लॉग पर जिस तरह से व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए ऊलजुलूल बातें लिखी जा रही हैं, वह बेहद निराशाजनक है। कई ब्लॉग तो ऐसे हैं,जहां पहले किसी फ र्जी नाम से कोई लेख लिखा जाता है, फि र बेनामी टिप्पणियां छापकर ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू होता है। कुछ कमज़ोर लोग इस तरह की ब्लैकमेलिंग के शिकार हो जाते हैं और कुछ ले-देकर अपना पल्ला छुड़ाते हैं। लेकिन जिस तरह से ब्लॉग को ब्लैकमेलिंग और चरित्र हनन का हथियार बनाया जा रहा है, उससे ब्लॉग की आज़ादी और उसके भविष्य को लेकर ख़ासी चिंता होती है। बेलगाम होते ब्लॉग और वेबसाइट पर अगर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई तो सरकार को इस दिशा में सोचने के लिए विवश होना पड़ेगा। ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है, गाली गलौच और बे सिर-पैर की बातें लिखकर अपने मन की भड़ास निकालने का मंच नहीं।् इस बात पर हिंदी के झंडाबरदारों को गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है। ब्लॉग पर चल रहे इस घटिया खेल पर सभी पत्रकार बंधुओं को विरोध करना चाहिए ताकि हिन्दी पत्रकारिता के इस नए आयाम को एक बेहतर वैश्विक प्रस्तुति के रूप में ताकतवर बनाया जा सके। - सुमित्रा आर्य, सम्पादक
email- editor.sumitra@gmail.com

मंगलवार, 3 मई 2011

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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

जगदीश यायावर व सुमित्रा आर्य ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड&़े क्षेत्र के प्रथम व श्रेष्ठ ब्लॉगर बने

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। नागौर जिले के प्रमुख इंटरनेट-ब्लॉग निर्माता व प्रसिद्ध पत्रकार दम्पत्ती श्रीमती सुमित्रा आर्य व जगदीश यायावर अब ब्लॉग-मेकर्स के नवगठित अखिल भारतीय संगठन ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड़ गए हैं। हाल ही में गठित हुई इस एसोसिएशन में इन्हें शीघ्र ही बनने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महत्त्वपूर्ण पद सम्भलाए जाने की भी पूर्ण संभावनाएं हैं। पत्रकारिता की उभरती हुई इस नई विधा में उनके विशेष योगदान को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। उनकी सिद्धहस्तता के कारण उनकी इंटरनेट पर हिन्दी भाषा में प्रस्तुति कलम कला न्यूज, लाडनूं-न्यूज, सैनी घोष, करण्ट-यायावर, तहकीकात आदि ब्लॉग-साईटों की लोकप्रियता के कारण देश भर के इस संगठन ने इन्हें महत्व दिया है। नियमित रूप से अपडेट होने के कारण इस दम्पत्ती की इन साईटों का महत्व विशेष रूप से बढ गया है। गूगल सर्च इंजिन पर सर्च करने पर ये साईटें सबसे ऊपर मिलेंगी, जो इनकी लोकप्रियता का द्योतक है। अगर आप केवल कलम कला लिखकर सर्च करेंगे तो अपनी सारी नई पोस्टों सहित कलम कला के ब्लॉग की ढेरों जानकारियां हासिल कर सकेंगे।
इन साईटों में प्रमुख सैनी घोष ब्लॉग को विशेषकर सैनी समाज के लिए बनाया गया है, जिसमें केवल क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि देश भर के सैनी समाज की खबरों, ऐतिहासिक विवरण, सामाजिक जागृति, आन्दोलन, प्रमुख व्यक्तियों का जीवन परिचय, व्यक्तित्व व कर्तृत्व, संगठन समाचार, वैवाहिक विवरण आदि विषयों को संजोया गया है। सैनी घोष अल्प समय में ही देश की सबसे प्रमुख साईट बनकर उभरी है। इसमें हिन्दी के साथ कुछ अंग्रेजी के आलेख भी शामिल किए गए हैं।
तहकीकात इनका एक नया ब्लॉग है, जिसमें विश्वप्रसिद्ध वेबसाईट विकीलिक्स ने दुनिया के सत्ताधीशों को हिला दिया और भारत में प्रमुख साईट तहलका डॉट कॉम ने भंडाफोड़ करके अनेक राजनेताओं की नींद हराम कर दी, ठीक उसी तरह राजस्थान प्रदेश ही नहीं देश भर में भ्रष्टाचारियों और अन्य प्रमुख भंडाफोड़ निरन्तर इस साईट तहकीकात द्वारा किए जाते रहेंगे।
कलम कला न्यूज इस दम्पत्ती की सबसे पुरानी साईट है, जिसमें लाडनूं, नागौर व चूरू जिले, राजस्थान प्रांत और देश भर को प्राथमिकता क्रम से महत्व देते हुए शामिल किया गया है। इसी तरह की इनकी अन्य इंटरनेट साईटें कलम कला समाचार पत्र के समाचारों के अलावा अन्य प्रमुख समाचारों को प्रकाशित कर रहे हैं। ये अपने सभी ब्लॉग में नवीनतम तकनीक के नए-नए प्रयोग करें उन्हें अधिक आकर्षक और पाठकों के लिए रूचिकर बना रहे हैं।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

बिना अपराध बना डाला संगीन मुकदमI, पुलिस की कार्रगुजारियों पर मुखर हुए विधायक गैसावत

मकराना (कलम कला न्यूज)। पुलिस राई को पहाड़ बना सकती है तो पहाड़ को आंखें बंद करके कह सकती है कि यहां तो मैदान है। पुलिस की कार्य-पद्धति बार-बार संदेहों के घेरे में आती है, लेकिन किसे परवाह है? एक तरफ पुलिस व्यवस्था सुधारने के नाम पर कहा जाता है कि राजनेताओं के दबाव के कारण पुलिस इसमें कामयाब नहीं हो पाती और दूसरी तरफ राजनेता चीखते-चिल्लाते रहते हैं औ पुलिस अपनी कार्रगुजारियां अपनी मर्जी से कर डालती है। अपनी पीठ थपथपाने और वाहवाही लूटने का पुलिस को खासा चस्का लग चुका है, इसमें वह अपने कायदों और कानून-व्यवस्था का मखौल उड़ानें मे संकोच नहीं करती। न्याय की जगह अन्याय, अत्याचार और मनगढ़न्त कहानियां गढ़ कर किसी भी निर्दोष को आरोपित करके संगीन आरोपों का मुलजिम बना डालना पुलिस के लिए बाएं हाथ का खेल है। फिर चाहे कोई कूकता रहे कि आमजन में विश्वास और अपराधियों में डर के बजाए पुलिस इससे एकदम उलटा करने पर तुली हुई है। अधिकारियों पर आरोप भी लगते हैं, तो अधिकारी अपने अधिकारी का ही पक्षपात करेंगे, यह तो लगभग हरएक को पता है।
मार्बल नगरी मकराना में बाई-पास रोड पर बंद रेलवे फाटक पर खड़े वाहन से कुछ लोगों को पुलिस ने सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी में पकड़ा और बाद में उन्हें सरासर फर्जी तरीके से एक एकदम अनजान क्षेत्र बोरावड़ के छापर के सूनसान इलाके से डकैती की योजना बनाते हथियारों सहित गिरफ्तारी करना दिखाया गया। इस मामले में मकराना विधायक जाकिर हुसैन गैसावत, जो उस दिन वहां मौजूद थे तथा मामले की पूरी जानकारी उन्हे थी, ने तत्काल पुलिस से सम्पर्क किया तथा इस बारे में दैनिक भास्कर, दैनिक गोल्ड सुख न्यूज, ई-टीवी आदि के पत्रकारों को दी। उसका प्रकाशन-प्रसारण भी हुआ, लेकिन पुलिस ने जो मुकदमा बना दिया सो बना दिया। पुलिस को घटनास्थल बदलने और वाकया बदलने के लगाए जाने वाले आरोपों को कत्तई गंभीरता से नहीं लिया। कुछ अन्य लोगों ने इस बारे में बोलने की चेष्टा की तो उन्हें डरा दिया गया और चुप कर दिया गया। बताया जाता है कि पुलिस ने इस मामले को मात्र इस कारण बदला, क्योंकि इस 16 लाख की लक्जरी गाड़ी में एक व्यक्ति आनन्दपालसिंह सांवराद का सगा भाई भी मौजूद था, जो परबतसर में पम्प-नोजल का व्यवसाय करता है और उस दिन 24 मार्च को वे मकराना क्षेत्र मेंं अपनी खरीदसुदा एक खान का मुहूर्त करके आए थे। मकराना में बिदियाद रोड पर स्थित टोल-नाके पर उनका झगड़ा हुआ था और इस पर पुलिस को सूचित किया गया था। जब पुलिस को इस गाड़ी में रूपेन्द्रपाल सिंह उर्फ विक्की मिला, तो उसकी बांछें खिल गई, और लगा कि जैसे उनकोआनन्दपाल सिंह, जो डीडवाना के जीवणराम गोदारा हत्याकाण्ड में वांछित आरोपी है, वो खुद मिल गया हो। हालांकि पुलिस उनका कई दिनों का रिमाण्ड लेने और पूरी सख्ती बरतने के बावजूद आनन्दपाल का कोई सुराग नहीं लगा पाई, परन्तु इन छह लोगों को बिना अपराध किए संगीन मामले में जेल की हवा खाने को मजबूर होना पड़ा। इनमेें एक विद्यार्थी भी था, जिसकी परीक्षाएं चल रही थी तथा वह केवल लिफ्ट लेकर बैठा था, परन्तु उसे भी धारा 399, 400, 120 बी भारतीय दंड संहिता एवं 3/25 आम्र्स एक्ट के संगीन जुर्म का आरोपी ठहरा दिया गया, चाहे उसका भविष्य खराब ही क्यों ना हो। इस युवक के पास कक्षा 12वीं का परीक्षा प्रवेश-पत्र और राजनीति विज्ञान की एक पुस्तक मिली थी, पर पुलिस ने उसे भी हथियार सहित डकैती की योजना में शामिल बता डाला। इस प्रकार पुलिस ने अपनी ज्यादती से एक सीधे-सादे युवक को जेल में अपराधियों के बीच रहने पर मजबूर किया तथा उसे अपराधी बनने की तरफ धकेल कर सामाजिक अपराध भी किया है। पुलिस ने उनके सामने आनंदपाल को गिरफ्तार करवाने पर पूरा मुकदमा हटा लेने के सौदे का प्रस्ताव भी रखा, पर उस फरार के बारे में बिना पता बताए भी तो कौन? आखिर पूरा षडयन्त्र रचकर भी पुलिस के हाथ घोर असफलता ही लगी।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

धर्म-निरपेक्ष बनते जा रहे हैँ मुसलमान पढे-लिखों ने तोड़ डाली मजहब की दीवारें हिन्दुओं और गैरमुस्लिमों के साथ बेटी-व्यवहार शुरू

अब इस देश में मुसलमानअपनीे पुरातन-पंथी मान्यताओं को नकारने लगा है। मुसलमान लगातार अपने कथित कट्टरपन से कटते जा रहे हंै और सब धर्मों के प्रति सम्मान की भावना अब उनमें घर करने लगी है। वे भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान की मूल भावना को समझकर अपने आप को राष्ट्र की मुख्य धारा से जाडऩे लगे हैं। पढे-लिखे मुसलमान कट्टरवाद को त्याग कर इंसानियत के असली रिश्ते को महत्व देने लगे हैं। मुसलमान लड़कियां हिन्दू लड़कों से शादियां करके और खुद उनके मुस्लिम अभिभावक उन्हें हिन्दुओं के साथ रिश्तेदारी में बांधकर खुश हैं। कुछ कठमुल्ला इस प्रगतिशील कदम की बुराई करते नहीं थकते, परन्तु समझदार मुसलमान उनकी बातों को कोई तवज्जो नहीं देते। वे राष्ट्रीय एकता, भाईचारे और धर्मनिरपेक्षता को अधिक महत्व देते हैं। इस वर्ग में मुस्लिम जगत का उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग अब खुलकर सामने आ चुका है। फिल्मी कलाकारों के अलावा अब उच्च राजनेता, पत्रकार, समाजसेवी, उद्योगपति, खिलाड़ी, चिकित्सक और अन्य शिक्षित वर्ग भी इसे अपनाने में कोई संकोच नहीं कर रहा तथा दकियानूसी विचारधारा को वे पीछे धकेलकर देश की भावना के साथ बेहिचक आगे बढ रहे हैं। यहां एक मुस्लिम लेखक सालिक धामपुरी द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के उस हिस्से को प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें मुस्लिमों ने इस प्रकार के धर्मनिरपेक्ष विवाहों को बढावा दिया है तथा समाज को इसके लिए आगे आने का संदेश देकर एक प्रेरणा प्रदान की है। आज समूचे मुस्लिम समाज को उनसे सीख लेकर इस दिशा में आगे आने की जरूरत है। अक्सर एक मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच शादी होने को सारे समाज द्वारा काफी गभीरता से तथा उसे समूचे धर्म के लिए खतरे के रूप में लिया जाता है, जबकि धर्म कभी इतनी संकीर्णता नहीं रखता और अगर उसमें इतनी संकीर्णता हो तो ऐसा धर्म तुरंत त्याग देने योग्य होता है। हमें प्रगतिशीलता और मानवीय एकता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। मजहबी लागों की संकीर्णताओं से हटकर अपनी सोच को परिपक्व बनाना चाहिए।
शेख अब्दुल्ला का परिवार- कश्मीर के शेर कहे जाने वाले शेख अब्दुल्लाह के पुत्र फारूक अब्दुल्ला ने अपनी बेटी सारा की शादी राजेश पायलेट के पुत्र सचिन पायलेट से की। इसी परिवार के कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की से शादी की।
उर्दू दैनिक के सम्पादक की बेटी की शादी- प्रसिद्ध उर्दू दैनिक राष्ट्रीय सहारा के सम्पादक अजीज बर्नी, जो मुसलमानों में इतने लोकप्रिय हैं कि दीनी मदारिस अपने यहां बुलाकर उनके भाषण कराते हैं, इन्होंने अपनी ण्क लड़की की शादी हिन्दू लड़के से की। यही नहीं इन्होंने दिल्ली बम ब्लास्ट से प्रभावित हिन्दुओं के दुख में ईदुल फितर के दिन रोजा रखा और इ्रद की नमाज गांधी जी की समाधि पर पढी, जो शरई दृष्टि से गैर इस्लामी है।
पत्रकार सिद्दीकी बने सत्यवादी- सहारनपुर के प्रसिद्ध पत्रकार खलीक सिद्दीकी, जो आजादी से पहले जमीअतुल उलमा के समाचारपत्र अल जमीअत के सम्पादक थे, ने हरियाणा की एक दलित औरत से शादी की फिर बाद में अपना धर्म बदल कर अपना नाम सत्यवादी रख लिया।
उपराष्ट्रपति ने की पत्नी की दाहक्रिया- पूर्व उपराष्ट्रपति जस्टिस हिदायतुल्ला ने एक हिन्दू औरत से शादी की, यही नहीं मरने के बाद उनकी वसीयत के अनुसार उन्हें दफनाने के बजाए चिता में जलाया गया।
मौलवी फारूकी के घर में लड़का हिन्दू बना -उर्दू पत्रिका खातूने मश्रिक के सम्पादक व मालिक मौलवी अब्दुल्लाह फारूकी के छोटे भाई मुकीमुद्दीन फारूकी ने, जो माकपा के नेता थे, ने एक हिन्दू औरत से शादी की थी। उनका लड़का हिन्दू है और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है।
उर्दू पत्रिका के मालिक की पोती ने स्वीकारा हिन्दू पति-प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका शमा के मालिक युसूफ देहलवी की पोती ने भी एक हिन्दू लड़के से शादी की।
इस्लामिक कल्चरल के अध्यक्ष के घर का हाल- इण्डिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी ने भी एक हिन्दू औरत से शादी की ओर उनकी लड़की नक एक सिख से शादी कर ली।
अन्य कुछ मुस्लिम नेताओं के परिवार- हुमायूं कबीर की लड़की लैला कबीर ने प्रमुख ईसाई नेता जार्ज फर्नाडीज से शादी की।
-प्रगतिशील आन्दोलन के नेता सज्जाद जहीर की बेटी नादिरा ने फिल्मी हिन्दू हिरो राज बब्बर से शादी की।
-अकबर अहमद डम्पी, मुख्तार अब्बास नकवीऔर भाजपा दौर में मंत्री रहे सैयद शाहनवाज हुसैन आदि ने भी हिन्दू औरतों सक शादियां की।
-दिल्ली के प्रसिद्ध नेता सिकन्दर बख्त ने एक हिन्दू औरत से शादी की तथा बाद में वे जनता राज में भाजपा में आ गए।
कुछ अन्य प्रमुख पत्रकारों की हकीकत - प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रकार मीरा मुस्तफा हिन्दू से शादी करने के बाद मुस्तफा से सिंह हो गई।
- बी.बी.सी. से जुड़ी डाक्टर फिरोज ने एक हिन्दू बेरिस्टर मुखर्जी से शादी की।
- दैनिक मश्रिकी आवाज के सम्पादक मुहम्मद जकी ने मंजु गुप्ता से शादी की।
- प्रसिद्ध टी.वी. चैनल आज तक के क्राइम रिपोर्टर शम्स ताहिर, जो जमाअत इस्लामी के सदस्य के बेटे भी हैं, ने भी एक हिन्दू लड़की से शादी की।
- प्रसिद्ध पत्रकार सलामत अली मेंहंदीकी लड़की ने एक हिन्दू दोस्त से शादी की।
मुस्लिम के घर में शुरू हुआ पूजा-पाठ- प्रसिद्ध पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, जो नई दुनिया के सम्पादक व मालिक हैं, ने एक हिन्दू औरत से शादी की, जो उनके घर में पूजा-पाठ करती है।
पाकिस्तान के जन्मदाता जिन्ना का परिवार भी पीछे नहीं - पाकिस्तान के जन्मदाता मुहम्मद अली जिन्नाह ने गैर मुस्लिम औरत से शादी की थी तथा उनकी बेटी ने भ एक पारसी नौजवान से शादी की।
कुछ और प्रमुख लोगों की धर्मनिरपेक्षता- जंगे आजादी के हीरो बेरिस्टर आसिफ अली ने अरूणा जी से शादी की।
- प्रोफेसर खलीक अंजुम ने भी एक हिन्दू प्रोफेसर से शादी की।
- मीर मुश्ताक के मुंहबोले बेटे हरिनारायण की शादी एक मुसलमान औरत साबिरा अन्जुम से करवाई गई।
- नफीसा अली ने पोलो के प्रसिद्ध खिलाड़ी आर.एस.सोंधी से शादी की है।
- दरभंगा की एक मुस्लिम लेडी डाक्टर अफरोज ने बड़ी खामोशी से एक हिन्दू डाक्टर से शादी कर ली।
- राष्ट्रीय जनता दल के नेता पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने एक हिन्दू महिला से शादी की, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के परिवार से थी।
शाबास भंवरी बानो
डीडवाना में भी टूटी मजहब की दीवारें
डीडवाना। नागौेर जिले की डीडवाना
तहसील के गांव छोटी बेरी के उम्मेद खां एजेण्ट की पुत्री भंवरी बानो ने एक गैर मुस्लिम सरकारी अधिकारी से शादी की है। एक छोटी सी जगह से भी यह जागृति की लहर पैदा हुई है, जो निश्चित रूप से समाज में बदलाव की पहचान बन चुकी है। अब समय आ चुका है कि जाति, वर्ग, धर्म और अन्य भेदभावों की दीवारों को ढहाकर सच्चा भारतीय और सच्चा इंसान बना जावे, संकीर्णताओं को अब त्यागना ही होगा। भंवरी बानो ने समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है, जो इस समूचे क्षेत्र को गौरवान्वित करता है।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

यायावर की कलम

नारी उपभोग बन गई
नारी बनकर रह गई, विज्ञापन की चीज।
आजादी के नाम पर, कैसे बोए बीज।।
कैसे बोए बीज, नारी पथभ्रष्ट हो गई।
जिसको पूजा जाता था, उपभोग बन गई।।
कहे यायावर साफ, ये किसकी जिम्मेदारी।
क्यों हुई वो नंगी, है खुद की दुश्मन नारी।।
-जगदीश यायावर, मो. 9571181221

email- yayawer@gmail.com

सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५

सूचना का अधिकार अधिनियम संसद द्वारा पारित एक कानून है जो १२ अक्तूबर, २००५ को लागू हुआ (१५ जून, २००५ को इसके कानून बनने के १२० वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है।
सूचना के अधिकार पर बारम्बार पूछे जाने वाले प्रश्न

सूचना का अधिकार क्या है?
संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद १९(१) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. १९७६ में सर्वोच्च न्यायालय ने "राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार" मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें. इसी कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद १९ में छुपा है. इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है. लोग मालिक हैं. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, क्या कर रहीं हैं? व प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है. यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है.(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में). नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है. इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं.
यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है?
ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, "आरटीआई मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ. इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए", वह ऐसा नहीं करेगा. व संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल देगा. इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र या प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें. सूचना का अधिकार २००५, जो १३ अक्टूबर २००५ को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है. इस प्रकार सूचना का अधिकार हमें कोई नया अधिकार नहीं देता. यह केवल उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है कि हम कैसे सूचना मांगें, कहाँ से मांगे, कितना शुल्क दें आदि.
सूचना का अधिकार कब लागू हुआ?
केंद्रीय सूचना का अधिकार १२ अक्टूबर २००५ को लागू हुआ. हालांकि ९ राज्य सरकारें पहले ही राज्य कानून पारित कर चुकीं थीं. ये थीं: जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और गोवा.
सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
सूचना का अधिकार २००५ प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो:
सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे.
किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले.
किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे.
किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे.
किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले.
सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों.
"वित्त पोषित" क्या है?
इसकी परिभाषा न ही सूचना का अधिकार कानून और न ही किसी अन्य कानून में दी गयी है. इसलिए यह मुद्दा समय के साथ शायद किसी न्यायालय के आदेश द्वारा ही सुलझ जायेगा.
क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं?
सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अर्न्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अर्न्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अर्न्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून १९२३ सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है?
नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के अनुच्छेद २२ के अनुसार सूचना का अधिकार कानून सभी मौजूदा कानूनों का स्थान ले लेगा.
क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है?
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन ११ विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद ८ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन १८ अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों.
क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है?
हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के दसवें अनुभाग के अंतर्गत दस्तावेज के उस भाग तक पहुँच बनायीं जा सकती है जिनमें वे सूचनाएं नहीं होतीं जो इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन से अलग रखी गयीं हैं.
क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है?
नहीं, फाइलों की टिप्पणियां सरकारी फाइल का अभिन्न अंग हैं व इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन की विषय वस्तु हैं. ऐसा केंद्रीय सूचना आयोग ने ३१ जनवरी २००६ के अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है.
मुझे सूचना कौन देगा?
एक या अधिक अधिकारियों को प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद दिया गया है. ये जन सूचना अधिकारी प्रधान अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं. आपको अपनी अर्जी इनके पास दाखिल करनी होती है. यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे उस विभाग के विभिन्न भागों से आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी इकठ्ठा करें व आपको प्रदान करें. इसके अलावा, कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर सेवायोजित किया गया है. उनका कार्य केवल जनता से अर्जियां स्वीकारना व उचित पीआईओ के पास भेजना है.
अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ?
आप ऐसा पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, ६२९ डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.
क्या इसके लिए कोई फीस है? मैं इसे कैसे जमा करुँ?
हाँ, एक अर्ज़ी फीस होती है. केंद्र सरकार के विभागों के लिए यह १०रु. है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने भिन्न फीसें रखीं हैं. सूचना पाने के लिए, आपको २रु. प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देना होता है. यह विभिन्न राज्यों के लिए अलग- अलग है. इसी प्रकार दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी फीस का प्रावधान है. निरीक्षण के पहले घंटे की कोई फीस नहीं है लेकिन उसके पश्चात् प्रत्येक घंटे या उसके भाग की ५रु. प्रतिघंटा फीस होगी. यह केन्द्रीय कानून के अनुसार है. प्रत्येक राज्य के लिए, सम्बंधित राज्य के नियम देखें. आप फीस नकद में, डीडी या बैंकर चैक या पोस्टल आर्डर जो उस जन प्राधिकरण के पक्ष में देय हो द्वारा जमा कर सकते हैं. कुछ राज्यों में, आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं व अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपकी फीस जमा मानी जायेगी. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.
मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे?
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद १८ के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर २५०००रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था.
क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है?
केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है. आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं. आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें.
मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं?
एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें)
मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ?
प्रत्येक राज्य का अर्ज़ी फीस जमा करने का अलग तरीका है. साधारणतया, आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं:
स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
डाक द्वारा:
*डिमांड ड्राफ्ट से
*भारतीय पोस्टल आर्डर से
*मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
*कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
* बैंकर चैक से
कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं.
क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ?
नहीं, पीआईओ के उपलब्ध न होने की स्थिति में आप अपनी अर्जी एपीआईओ या अन्य किसी अर्जी लेने के लिए नियुक्त अधिकारी के पास अर्जी जमा कर सकते हैं.
क्या करूँ यदि मैं अपने पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ?
यदि आपको पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप अपनी अर्जी पीआईओ ष्/श विभागाध्यक्ष को प्रेषित कर उस सम्बंधित जन प्राधिकरण को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी सम्बंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.
क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा?
आपके राज्य के फीस जमा करने के नियमानुसार आप अपनी अर्जी सम्बंधित राज्य के विभाग में अर्जी के साथ डीडी, मनी आर्डर, पोस्टल आर्डर या कोर्ट फीस टिकट संलग्न करके डाक द्वारा भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, ६२९ डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.
क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है?
हाँ, यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको ३० दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना ३५ दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहाँ सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना ४८ घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए.
क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए?
बिलकुल नहीं, आपको कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है. अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा.
क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है?
नहीं, पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास ५ दिनों के भीतर अनुच्छेद ६(२) के तहत भेजनी होगी.
इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा?
यह कानून पहले ही कर रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई कानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता के प्रति जवाबदेही निर्धारित करता है. यदि सम्बंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, उस पर २५०रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गयी सूचना गलत है तो अधिकतम २५०००रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपकी अर्जी गलत कारणों से नकारने या गलत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.
क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है?
हाँ, कुछ अधिकारियों पर केन्द्रीय व राज्यीय सूचना आयुक्तों द्वारा जुर्माना लगाया गया है.
क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है?
नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हांलांकि अनुच्छेद १९ के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है.
मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले?
यदि आपको सूचना न मिले या आप प्राप्त सूचना से संतुष्ट न हों, आप अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद १९(१) के तहत एक अपील दायर कर सकते हैं.
पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है?
प्रत्येक जन प्राधिकरण को एक पहला अपीलीय अधिकारी बनाना होता है. यह बनाया गया अधिकारी पीआईओ से वरिष्ठ रैंक का होता है.
क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है?
नहीं, प्रथम अपील का कोई प्रारूप नहीं होता (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने प्रारूप जारी किये हैं). एक सादा पन्ने पर प्रथम अपीली अधिकारी को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. इस अर्जी के साथ अपनी मूल अर्जी व पीआईओ से प्राप्त जैसे भी उत्तर (यदि प्राप्त हुआ हो) की प्रतियाँ लगाना न भूलें.
क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी?
नहीं, आपको प्रथम अपील की कोई फीस नहीं देनी होगी, कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है.
कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ?
आप अपनी प्रथम अपील सूचना प्राप्ति के ३० दिनों व आरटीआई अर्जी दाखिल करने के ६० दिनों के भीतर दायर कर सकते हैं.
क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले?
यदि आपको प्रथम अपील के बाद भी सूचना न मिले तो आप द्वितीय अपीली चरण तक अपना मामला ले जा सकते हैं. आप प्रथम अपील सूचना मिलने के ३० दिनों के भीतर व आरटीआई अर्जी के ६० दिनों के भीतर (यदि कोई सूचना न मिली हो) दायर कर सकते हैं.
द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. आप द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध आपके पास केद्रीय सूचना आयोग है. प्रत्येक राज्य सरकार के लिए, राज्य सूचना आयोग हैं.
क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है?
नहीं, द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप नहीं है (लेकिन राज्य सरकारों ने द्वितीय अपील के लिए भी प्रारूप निर्धारित किए हैं). एक सादा पन्ने पर केद्रीय या राज्य सूचना आयोग को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. द्वितीय अपील दायर करने से पूर्व अपीली नियम ध्यानपूर्वक पढ लें. आपकी द्वितीय अपील निरस्त की जा सकती है यदि वह अपीली नियमों को पूरा नहीं करती है.
क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी?
नहीं, आपको द्वितीय अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी. हांलांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए फीस निर्धारित की है.
मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ?
आप प्रथम अपील के निष्पादन के ९० दिनों के भीतर या उस तारीख के ९० दिनों के भीतर कि जब तक आपकी प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं.
यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है?
यह कानून कैसे रुके हुए कार्य पूरे होने में सहायता करता है अर्थात् वह अधिकारी क्यों अब वह आपका रुका कार्य करता है जो वह पहले नहीं कर रहा था?

आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अर्जी दी, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. नन्नू ने क्या पूछा? उसने निम्न प्रश्न पूछे:
१. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए २७ फरवरी २००४ को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया?
२. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड १० दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
३. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी?
४. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा?
साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को ३० दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.
मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए?
इसके लिए कोई एक उत्तर नहीं है. यह आप पर निर्भर करता है कि आपने वह सूचना क्यों मांगी व यह किस प्रकार की सूचना है. प्राय: सूचना पूछने भर से ही कई वस्तुएं रास्ते में आने लगतीं हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. कई मामलों में, सड़कों की मरम्मत हो जाती है जैसे ही पिछली कुछ मरम्मतों पर खर्च हुई राशि के बारे में पूछा जाता है. इस तरह, सरकार से सूचना मांगना व प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण चरण है, जो अपने आप में कई मामलों में पूर्ण है.
लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है. [
क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया?
हाँ, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गयी जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना होगा. अपनी शिकायत की स्थिति या अन्य समरूपी मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ प्रतिकार निमंत्रित करना नहीं है. ऐसा तभी होता है जब सूचना नौकरशाह- ठेकेदार गठजोड़ या किसी प्रकार के माफ़िया का पर्दाफाश कर सकती हो कि प्रतिकार की सम्भावना हो.
तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ?
पूरा तंत्र इतना सड- गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा रणनीति से व जोखिम को कम करके करना होगा. व अनुभव से, कुछ रणनीतियां व सुरक्षाएं उपलब्ध हैं.
ये रणनीतियां क्या हैं?
कृपया आगे बढें और किसी भी मुद्दे के लिए आरटीआई अर्जी दाखिल करें. साधारणतया, कोई आपके ऊपर एकदम हमला नहीं करेगा. पहले वे आपकी खुशामद करेंगे या आपको जीतेंगे. तो आप जैसे ही कोई असुविधाजनक अर्जी दाखिल करते हैं, कोई आपके पास बड़ी विनम्रता के साथ उस अर्जी को वापिस लेने की विनती करने आएगा. आपको उस व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए. यदि आप इसे काफी गंभीर मानते हैं, अपने १५ मित्रों को भी तुंरत उसी जन प्राधिकरण में उसी सुचना के लिए अर्जी देने के लिए कहें. बेहतर होगा यदि ये १५ मित्र भारत के विभिन्न भागों से हों. अब, आपके देश भर के १५ मित्रों को डराना किसी के लिए भी मुश्किल होगा. यदि वे १५ में से किसी एक को भी डराते हैं, तो और लोगों से भी अर्जियां दाखिल कराएं. आपके मित्र भारत के अन्य हिस्सों से अर्जियां डाक से भेज सकते हैं. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार दिलाने की कोशिश करें. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपको वांछित जानकारी मिलेगी व आप जोखिमों को कम कर सकेंगे.
क्या लोग जन सेवकों का भयादोहन नहीं करेंगे?
आईए हम स्वयं से पूछें- आरटीआई क्या करता है? यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. यह केवल परदे हटाता है व सच जनता के सामने लाता है. क्या वह गलत है? इसका दुरूपयोग कब किया जा सकता है? केवल यदि किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया हो और यदि यह सूचना जनता में बाहर आ जाये. क्या यह गलत है यदि सरकार में की जाने वाली गलतियाँ जनता में आ जाएं व कागजों में छिपाने की बजाय इनका पर्दाफाश हो सके. हाँ, एक बार ऐसी सूचना किसी को मिल जाए तो वह जा सकता है व अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है. लेकिन हम गलत अधिकारियों को क्यों बचाना चाहते है? यदि किसी अन्य को ब्लैकमेल किया जाता है, उसके पास भारतीय दंड संहिता के तहत ब्लैकमेलर के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करने के विकल्प मौजूद हैं. उस अधिकारी को वह करने दीजिये. हांलांकि हम किसी अधिकारी को किसी ब्लैकमेलर द्वारा ब्लैकमेल किये जाने की संभावनाओं को सभी मांगी गयी सूचनाओं को वेबसाइट पर डालकर कम कर सकते हैं. एक ब्लैकमेलर किसी अधिकारी को तभी ब्लैकमेल कर पायेगा जब केवल वही उस सूचना को ले पायेगा व उसे सार्वजनिक करने की धमकी देगा. लेकिन यदि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना वेबसाइट पर डाल दी जाये तो ब्लैकमेल करने की सम्भावना कम हो जाती है.
क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी?
ये डर काल्पनिक हैं. ६५ से अधिक देशों में आरटीआई कानून हैं. संसद में पारित किए जाने से पूर्व भारत में भी ९ राज्यों में आरटीआई कानून थे. इन में से किसी सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आई. ऐसे डर इस कल्पना से बनते हैं कि लोगों के पास करने को कुछ नहीं है व वे बिलकुल खाली हैं. आरटीआई अर्ज़ी डालने व ध्यान रखने में समय लगता है, मेहनत व संसाधन लगते हैं.
आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, ६० से अधिक महीनों में १२० विभागों में १४००० अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि २ से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को २००३- ०४ के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत ३.२ मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने ३२ मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.
क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे?
आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खर्च किये गए संसाधन सही खर्च होंगे. यूएस जैसे अधिकांश देशों ने यह पाया है व वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने पर अत्यधिक संसाधन खर्च कर रहे हैं. पहला, आरटीआई पर खर्च लागत उसी वर्ष पुनः उस धन से प्राप्त हो जाती है जो सरकार भ्रष्टाचार व गलत कार्यों में कमी से बचा लेती है. उदहारण के लिए, इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि कैसे आरटीआई के वृहद् प्रयोग से राजस्थान के सूखा राहत कार्यक्रम और दिल्ली की जन वितरण प्रणाली की अनियमितताएं कम हो पायीं.
दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.
लेकिन प्राय
लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं?
जैसा कि ऊपर दिया गया है, यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. सच छुपाने या उस पर पर्दा डालने का कोई प्रयास समाज के उत्तम हित में नहीं हो सकता. किसी लाभदायक उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक, गोपनीयता को बढावा देना भ्रष्टाचार और गलत कामों को बढावा देगा. इसलिए, हमारे सभी प्रयास सरकार को पूर्णतः पारदर्शी बनाने के होने चाहिए. हांलांकि, यदि कोई किसी को आगे ब्लैकमेल करता है, कानून में इससे निपटने के प्रचुर प्रावधान हैं. दूसरा, आरटीआई अधिनियम के अनुच्छेद ८ के तहत कई बचाव भी हैं. यह कहता है, कि कोई सूचना जो किसी के निजी मामलों से सम्बंधित है व इसका जनहित से कोई लेना- देना नहीं है को प्रकट नहीं किया जायेगा. इसलिए, मौजूदा कानूनों में लोगों के वास्तविक उद्देश्यों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान हैं.
लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए?
कोई अर्ज़ी ओछी/ तुच्छ नहीं होती. ओछा/ तुच्छ क्या है? मेरा पानी का रुका हुआ कनेक्शन मेरे लिए सबसे संकटपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक नौकरशाह के लिए यह ओछा/ तुच्छ हो सकता है. नौकरशाही में निहित कुछ स्वार्थों ने इस ओछी/ तुच्छ अर्जियों के दलदल को बढाया है. वर्तमान में, आरटीआई अधिनियम किसी भी अर्ज़ी को इस आधार पर निरस्त करने की इजाज़त नहीं देता कि वो ओछी/ तुच्छ थी. यदि ऐसा हो, प्रत्येक पीआईओ हर दूसरी अर्ज़ी को ओछी/ तुच्छ बताकर निरस्त कर देगा. यह आरटीआई के लिए मृत समाधि के समान होगा.
फाइल टिप्पणियां सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह ईमानदार अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
यह गलत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वो लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दवाब बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकारा है कि आरटीआई ने उनकी राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत सहायता की है. अब अधिकारी सीधे तौर पर कहते हैं कि यदि उन्होंने कुछ गलत किया तो उनका पर्दाफाश हो जायेगा यदि किसी ने उसी सूचना के बारे में पूछ लिया. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी लिखित में निर्देश दें. सरकार ने भी इस पर मनन करना प्रारंभ कर दिया है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा से हटा दी जाएँ. उपरोक्त कारणों से, यह नितांत आवश्यक है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा में रहें.
जन सेवक को निर्णय कई दवाबों में लेने होते हैं व जनता इसे नहीं समझेगी?
जैसा ऊपर बताया गया है, इसके उलट, इससे कई अवैध दवाबों को कम किया जा सकता है.
सरकारी रेकॉर्ड्स सही आकार में नहीं हैं. आरटीआई को कैसे लागू किया जाए?
आरटीआई तंत्र को अब रेकॉर्ड्स सही आकार में रखने का दवाब डालेगा. वरन अधिकारी को अधिनियम के तहत दंड भुगतना होगा.
विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए?
यदि मैं कुछ जानकारी चाहता हूँ, जो एक लाख पृष्ठों में आती है, मैं ऐसा तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी क्योंकि मुझे उसके लिए २ लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह एक स्वतः ही हतोत्साह करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में १०० पृष्ठ मांगते हुए १००० अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि:
"लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है:
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.