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बुधवार, 24 अगस्त 2011

फर्जी संस्था व कूट रचना के आरोप खारिज मैढ स्वर्णकार समाज के पदाधिकारियों के बीच मुकदमा निर्णित-----


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। सामाजिक संस्था की सम्पति को हथियाने के लिए फर्जी संस्था का गठन करके कतिपय कागजातों में कांट-छांट व कूट रचना करने के एक चर्चित मामले में अदालत द्वारा लिए गए प्रसंज्ञान के खिलाफ की गई निगरानी को स्वीकार करते हुए अपर सेशन न्यायाधीश सूर्यप्रकाश काकड़ा ने विचारण अदालत द्वारा लिए गए प्रसंज्ञान को अपास्त कर दिने के आदेश जारी किए हैं। मालचंद डांवर वगैरह बनाम मैढ स्वर्णकार समाज सभा के मामले में मंत्री पुखराज सोनी ने आरोप लगाए थे कि सन 1946 से स्थापित व रजिस्टर्ड संस्था मैढ स्वर्णकार समाज सभा के पास खुद का भवन, बरतन, बिस्तर , नकद राशि आदि सामान मौजूद था। परन्तु आरोपियों मालचंद डांवर, मुरलीधर सोनी, ओमप्रकाश डांवर, हेमराज जांगलवा, बजरंग लाल सिठावत व लालचंद डांवर द्वारा बदनियति से सम्पति को हड़पने के लिए अपना कार्यकाल पूरा हो जाने के बावजूद संस्था के दस्तावेजातों, शील, मोहरों में कांट-छांट करके श्रीमैढ स्वर्णकार समाज सेवा समिति के नाम से एक फर्जी संस्था का गठन करके अपना कब्जा नहीं छोड़ा व उनका आपराधिक दुर्विनियोग करने एवं आपराधिक न्यासभंग करने के अवैध कार्यों द्वारा धारा 420, 120 बी, 406, 467, 469, 471, 494 भा.दं.सं. का अपराध किया है, जिसका प्रसंज्ञान लिया गया था। इसके विरोध में आरोपियों ने प्रसंज्ञान को प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त मानते हुए खारिज करने के लिए निगरानी प्रस्तुत की, इसमें अधीनस्थ न्यायालय द्वारा साक्ष्यों का सही विश£ंषण नहीं करने व कांट-छांट के बारे में विशेषज्ञों की राय नहीं लेने व दस्तावेजों की जांच नहीं कराए जाने को भूल बताया। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की बहस सुनने व पत्रावली का अवलोकन करने पर पाया कि कांट-छांट का आरोप कूटरचना की श्रेणी में नहीं आता तथा सभा के स्थान पर समाज सेवा शब्द प्रस्थापित करने के पीछे किसी व्यक्ति या लोक को क्षति कारित होना स्पष्ट नहीं होता। अपर एवं सेशन न्यायाधीश काकड़ा ने प्रसंज्ञान लिए जाने को अविधिक एवं एवं अनुचित मानते हुए उसे अपास्त कर दिया।

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