राजस्थान के लाडनूं शहर से प्रकाशित समाचार पत्र कलम कला की ओर से लाडनूं-न्यूज: कलम कला शीर्षक से क्षेत्रीय समाचारों और विचारों से समाहित इटरनेट पर यह प्रस्तुतिकरण दिया जा रहा है। आप कलम कला को पढकर, अपने दोस्तों को बताकर, अपनी टिप्पणियां दर्ज करवाकर, अपने समाचार आदि हमारे ई-मेल पर भेजकर और कलम कला समाचार पत्र मंगवाकर हमारे सहयोगी बन सकते हैं।- SUMITRA ARYA, EDITOR, LADNUN. Email- kalamkala@gmail.com
Popular Posts
-
प्रकाश माली के भजनों से झूम उठे श्रोता बाबा लादूदास की 22वीं बरसी पर भव्य आयोजन लाडनूं। लोकसंत बाबा लादूदास की 22वीं बरसी पर आ...
-
दो बार सदन से बाहर निकले पार्षद बिना एजेन्डा रखे प्रस्ताव पर हुआ विवाद लाडनूं। नगरपालिका मंडल की साधारण सभा की बैठक भारी हंगामे के ...
-
पत्रकारिता को हमेशा एक आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है। जनता की भावनाओं का खुला पृष्ठ होता था पत्रकारिता। मगर आज लगत...
-
लाडनूं। अभय करण मार्शल आटर््स एशोसियेशन के तत्वावधान में जिले भर में करीब सवा लाख बालिकाओं को जूडो-कराटे आदि मार्शल आर्ट की विधियां स...
-
लाडनूं (कलम कला न्यूज)। अपने घर से राखी बांधने के बहाने से रक्षाबंधन के दिन गई महिला दस दिन बीत जाने के बावजूद न तो अपने पीहर पहुंच...
-
Location: Digambar Jain Bara Mandir is situated in the heart of Ladnun town, dist. Nagur, Rajasthan. Ladnun town is connected by rail via ...
-
ओम बन्ना…जहाँ होती है बुल्लेट मोटरसाइकिल की पूजा जयप्रकाश माली ओम बन्ना, राजस्थान के मारवाड़ इलाके में कम ही लोग हैं जो इस नाम से परि...
-
लाडनूं (कलम कला न्यूज)। पिछले तीन साल से लगातार पुलिस, प्रशासन व अदालतों के चक्कर काटकर परेशान पिता की व्यथा को अब कोई सुनता तक नह...
-
लाडनूं। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जलदाय विभाग द्वारा की जाने वाली पेयजल की आपूर्ति की स्थिति बदतर होने से लोगों में काफी रोष है। मालियों...
बुधवार, 24 अगस्त 2011
प्रख्यात रामस्नेही संत स्वामी रामनिवास महाराज
गौ और राम की सेवा ही था जिनका जीवन लक्ष्य
लाडनूं में न मिली दो गज जमीन
गौशाला के दायित्व को लेकर लोगों में रोष
लाडनूं (कलम कला न्यूज)। प्रख्यात रामस्नेही सम्प्रदाय के संत स्वामी रामनिवास महाराज को लाडनूं क्षेत्र में दो गज जमीन तक नहीं मिलने को लेकर लोगों में गहरा रोष देखा गया।
लाडनूं के दो संतो की साम्यता- तुलसी व रामनिवास
लाडनूं में दो संत विख्यात थे, एक तो आचार्य तुलसी व दूसरे स्वामी रामनिवास। दोनों विपरीत धाराओं- ब्राह्मण संस्कृति व श्रमण संस्कृति से सम्बद्ध थे। इसके बावजूद इन दोनों में जो समानता थी वो यह कि ये लाडनूं के प्रति असीम भावनात्मक आकर्षण रखते थे। आचार्य तुलसी ने पारमार्थिक शिक्षण संस्थान, वृद्ध साध्वी सेवा ककेन्द्र व जैन विश्व भारती एवं जैविभा विश्वविद्यालय जैसे अवदान लाडनूं के लिए दिए एवं अपनी भावना के अनुरूप अन्ततोगत्वा लाडनूं को उनके जन्म शताब्दी वर्ष से पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की राजधानी घोषित कर दिया गया। इसी प्रकार स्वामी रामनिवास ने लाडनूं में श्री राम आनन्द गौशाला के लिए लगभग अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने गौशाला के लिए अनेक लड़ाइयां लड़ी, सरकार से अनुदान स्वीकृत करवाना हो या सम्पति का संरक्षण, वहां धर्मशाला बनवाकर गौशाला की आमदनी बढानी हो, पशु चिकित्सालय खुलवाकर पशुओं के हित में कार्य करना हो या दानदाताओं से मुक्त हस्त सहयोग जुटाना, सभी के लिए स्वामी रामनिवास हरपल तैयार रहते थे। गौशाला के माध्यम से लागों को शुद्ध दूध-घी उपलब्ध करवाने के कार्य को उन्होंने सफलता पूर्वक करवाया वहीं अकाल के समय समूचे क्षेत्र के पशुधन के लिए चारा उपलब्ध करवाने में भी उनका कार्य महत्वपूर्ण रहा।
दोनों ने किए अपने उत्तराधिकारी घोषित
आचार्य तुलसी ने अपने जीवन काल में केवल एक नहीं दो पीढी के उत्तराधिकारी घोषित कर दिए। उन्होंने अपने जीवन काल में ही मुनि नथमल को युवाचार्य महाप्रज्ञ बना डाला और आगे कोई उत्तराधिकार की लड़ाई न छिड़े इस सोच के कारण उन्होंने स्वयं आचार्य पद त्याग कर महाप्रज्ञ को आचार्य पद पर पदारूढ कर दिया तथा मुनि मर्यादा कुमार को युवाचार्य महाश्रमण के रूप में घोषित करवा दिया। वे स्वयं एक नए पद गणाधिपति के रूप में कहे जाने लगे और गुरूदेव के रूप में ख्यात हुए। स्वामी रामनिवास ने ग्राम दुजार में बने आर्यसमाजी संन्यासी संत ओमप्रकाश उर्फ स्वामी पूर्णानन्द के साधु आश्रम को अपने कब्जे में लेकर उसे रामस्नेही सम्प्रदाय का आश्रम बना डाला और उनके देवलोक गमन के पश्चात उनके स्थान पर शिष्य के रूप में ज्ञानाराम महाराज की नियुक्ति स्वामी रामनिवास ने की तथा इसी प्रकार अपने शिष्य व गद्दीपति के रूप में रामद्वारा की बागडोर अपने जीवन काल में ही स्वामी अमृत राम को सुपुर्द कर दी।
नसीब नहीं हुई लाडनूं की धरा?
इन दोनों संतों में आचार्य तुलसी लाडनूं के जाए-जन्मे थे और लाडनूं में बड़े हुए, जबकि स्वामी रामनिवास का जन्म तो अवश्य पंजाब में हुआ, परन्तु उनका बचपन लाडनूं में ही बीता और यहीं पले-बढे। इन दोनों में समानता यह रही कि दोनों की ही समाधियाां लाडनूं को नसीब नहीं हुई। आचार्य तुलसी का देहावसान गंगाशहर में हुआ, उनके अंतिम संस्कार लाडनूं में करने की चेष्टाएं हुई, परन्तु गंगाशहर के लोगों को यह मंजूर नहीं था, सो उनका समाधि स्थल बना गंगाशहर। और स्वामी रामनिवास का देवलोक गमन तो अवश्य लाडनूं में हुआ, परन्तु उनका समाधि स्थल बना ऋषिकेश। लाडनूं के लोगों को बेमन से उनकी पार्थिव देह को ऋषिकेश भिजवाना पड़ा, यह मात्र श्रीराम आनन्द गौशाला के कारण हुआ। 13 अगस्त 2011 श्रावण शुक्ला पूर्णिमा शनिवार के रोज शाम 7.15 बजे स्वामी रामनिवास महाराज अपने रामद्वारा में ब्रह्मलीन हो गए। उनके ब्रह्मलीन होने के पश्चात लोगों का भारी हुजूम यहां राहूगेट स्थित रामद्वारा की ओर उमड़ पड़ा। लोगों ने उनके उतराधिकारी स्वामी अमृतराम महाराज के समक्ष आग्रह किया कि देवलोकगामी स्वामी रामनिवास का अंतिम संस्कार लाडनूं में ही किया जावे। देर रात्रि तक इसके लिए काफी अनुनय-विनय का दौर चला, जिस पर स्वामी अमृतराम ने बताया कि स्वामी रामनिवास की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार राम आनन्द गौशाला में अथवा फिर ऋषिकेश में गंगा तट पर किया जावे। उनके अन्तिम संस्कार के स्थान को लेकर स्थानीय श्रद्धालुओं में देर रात तक चली जद्दोजहद के पश्चात रात्रि 1.15 बजे उनकी पार्थिव देह को एम्बुलेंस से ऋषिकेश में गंगा तट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया। गौशाला के पदाधिकारियों पर आम लोगों द्वारा भारी दबाव डाला जाने के बावजूद उन्होंने इसके लिए अनुमति प्रदान नहीं की, भागचंद बरडिय़ा आदि कई लोगों ने अपनी निजी भूमि इसके लिए गौशाला को उपलब्ध करवाने का प्रस्ताव भी रखा परन्तु गौशाला के पदाधिकारी टस से मस नहीं हुए। जिसके बाद उनकी पार्थिव देह को ऋषिकेश के लिए ले जाया गया। लाडनूं में उनके शरीर के लिए अंत्येष्टि की भूमि तक उपलब्ध नहीं करवाने को लेकर स्थानीय लोगों में गौशाला के प्रति गहरा आक्रोश देखा गया।
कहां थे इनके वास्तविक श्मशान?
लाडनूं में रामस्नेही सम्प्रदाय के दो रामद्वारा हैं, एक आधी पट्टी में जो बड़ा रामद्वारा कहा जाता है और दूसरा राहूगेट के अन्दर है, जिसे रामद्वारा सत्संग भवन कहा जाता है। इस सत्संग भवन रामद्वारा में सूरदास संत मेवाराम कभी महन्त के रूप में विराजित थे, जिनके चेले स्वामी रामनिवास थे। स्वामी रामनिवास ने गद्दी पर विराजित होने के बाद अपने साधुओं का समाधि-स्थल आनन्द कुटिया, जो तुलसीदास जी के चबूतरे के सामने स्थित थी, को एक व्यापारी के हाथों बेच डाला। अब वहां एक शोरूम है।इस कुटिया में समाधि, पगल्या, शिवलिंग, तुलसी का पौधा आदि थे, जो नष्ट कर दिए गए। ऐसे में श्मशान स्थल की समस्या आनी ही थी।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें