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बुधवार, 13 अप्रैल 2011

बिना अपराध बना डाला संगीन मुकदमI, पुलिस की कार्रगुजारियों पर मुखर हुए विधायक गैसावत

मकराना (कलम कला न्यूज)। पुलिस राई को पहाड़ बना सकती है तो पहाड़ को आंखें बंद करके कह सकती है कि यहां तो मैदान है। पुलिस की कार्य-पद्धति बार-बार संदेहों के घेरे में आती है, लेकिन किसे परवाह है? एक तरफ पुलिस व्यवस्था सुधारने के नाम पर कहा जाता है कि राजनेताओं के दबाव के कारण पुलिस इसमें कामयाब नहीं हो पाती और दूसरी तरफ राजनेता चीखते-चिल्लाते रहते हैं औ पुलिस अपनी कार्रगुजारियां अपनी मर्जी से कर डालती है। अपनी पीठ थपथपाने और वाहवाही लूटने का पुलिस को खासा चस्का लग चुका है, इसमें वह अपने कायदों और कानून-व्यवस्था का मखौल उड़ानें मे संकोच नहीं करती। न्याय की जगह अन्याय, अत्याचार और मनगढ़न्त कहानियां गढ़ कर किसी भी निर्दोष को आरोपित करके संगीन आरोपों का मुलजिम बना डालना पुलिस के लिए बाएं हाथ का खेल है। फिर चाहे कोई कूकता रहे कि आमजन में विश्वास और अपराधियों में डर के बजाए पुलिस इससे एकदम उलटा करने पर तुली हुई है। अधिकारियों पर आरोप भी लगते हैं, तो अधिकारी अपने अधिकारी का ही पक्षपात करेंगे, यह तो लगभग हरएक को पता है।
मार्बल नगरी मकराना में बाई-पास रोड पर बंद रेलवे फाटक पर खड़े वाहन से कुछ लोगों को पुलिस ने सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी में पकड़ा और बाद में उन्हें सरासर फर्जी तरीके से एक एकदम अनजान क्षेत्र बोरावड़ के छापर के सूनसान इलाके से डकैती की योजना बनाते हथियारों सहित गिरफ्तारी करना दिखाया गया। इस मामले में मकराना विधायक जाकिर हुसैन गैसावत, जो उस दिन वहां मौजूद थे तथा मामले की पूरी जानकारी उन्हे थी, ने तत्काल पुलिस से सम्पर्क किया तथा इस बारे में दैनिक भास्कर, दैनिक गोल्ड सुख न्यूज, ई-टीवी आदि के पत्रकारों को दी। उसका प्रकाशन-प्रसारण भी हुआ, लेकिन पुलिस ने जो मुकदमा बना दिया सो बना दिया। पुलिस को घटनास्थल बदलने और वाकया बदलने के लगाए जाने वाले आरोपों को कत्तई गंभीरता से नहीं लिया। कुछ अन्य लोगों ने इस बारे में बोलने की चेष्टा की तो उन्हें डरा दिया गया और चुप कर दिया गया। बताया जाता है कि पुलिस ने इस मामले को मात्र इस कारण बदला, क्योंकि इस 16 लाख की लक्जरी गाड़ी में एक व्यक्ति आनन्दपालसिंह सांवराद का सगा भाई भी मौजूद था, जो परबतसर में पम्प-नोजल का व्यवसाय करता है और उस दिन 24 मार्च को वे मकराना क्षेत्र मेंं अपनी खरीदसुदा एक खान का मुहूर्त करके आए थे। मकराना में बिदियाद रोड पर स्थित टोल-नाके पर उनका झगड़ा हुआ था और इस पर पुलिस को सूचित किया गया था। जब पुलिस को इस गाड़ी में रूपेन्द्रपाल सिंह उर्फ विक्की मिला, तो उसकी बांछें खिल गई, और लगा कि जैसे उनकोआनन्दपाल सिंह, जो डीडवाना के जीवणराम गोदारा हत्याकाण्ड में वांछित आरोपी है, वो खुद मिल गया हो। हालांकि पुलिस उनका कई दिनों का रिमाण्ड लेने और पूरी सख्ती बरतने के बावजूद आनन्दपाल का कोई सुराग नहीं लगा पाई, परन्तु इन छह लोगों को बिना अपराध किए संगीन मामले में जेल की हवा खाने को मजबूर होना पड़ा। इनमेें एक विद्यार्थी भी था, जिसकी परीक्षाएं चल रही थी तथा वह केवल लिफ्ट लेकर बैठा था, परन्तु उसे भी धारा 399, 400, 120 बी भारतीय दंड संहिता एवं 3/25 आम्र्स एक्ट के संगीन जुर्म का आरोपी ठहरा दिया गया, चाहे उसका भविष्य खराब ही क्यों ना हो। इस युवक के पास कक्षा 12वीं का परीक्षा प्रवेश-पत्र और राजनीति विज्ञान की एक पुस्तक मिली थी, पर पुलिस ने उसे भी हथियार सहित डकैती की योजना में शामिल बता डाला। इस प्रकार पुलिस ने अपनी ज्यादती से एक सीधे-सादे युवक को जेल में अपराधियों के बीच रहने पर मजबूर किया तथा उसे अपराधी बनने की तरफ धकेल कर सामाजिक अपराध भी किया है। पुलिस ने उनके सामने आनंदपाल को गिरफ्तार करवाने पर पूरा मुकदमा हटा लेने के सौदे का प्रस्ताव भी रखा, पर उस फरार के बारे में बिना पता बताए भी तो कौन? आखिर पूरा षडयन्त्र रचकर भी पुलिस के हाथ घोर असफलता ही लगी।