लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय नगर पालिका में आने वाली डाक को आवक रजिस्टर में दर्ज करने के बजाये उसे पूरी तरह गायब कर दिया जाता है। इसी तरह की हालत के शिकार खुद पालिकाध्यक्ष बच्छराज नाहटा भी हुए, जिनके खुद के नाम की डीएलबी से आई डाक को भी गायब कर दिया गया। उन्होंने जब पार्षदों को इससे अवगत करवाया तो सभी पार्षदों को यह बुरा लगा तथा बोर्ड की गत 29 अप्रेल की बैठक में मुखर होकर पार्षदों ने इस मामले में आवाज उठाई।
क्या था मामला
नगर पालिका मंडल में 31 दिसम्बर की बैठक में समितियों का गठन किया गया, जिसमें अधिशाषी अधिकारी ने 60 दिनों में समितियों का गठन नहीं होने को लेकर आपति दर्ज की, उस पर अध्यक्ष ने बार-बार आदेश दिए जाने के बावजूद ई.ओ. द्वारा बैठक नहीं बुलाकर जानबुझकर देरी करने बाबत प्रति-टिप्पणी दर्ज की। इस कार्यवाही की प्रति नियमानुसार डीएलबी, कलेक्टर, उपनिदेशक अजमेर आदि को भेजी गई। इस के बाद सभी कमेटियों के अध्यक्षों ने ईओ को उनकी समिति की बैठक बुलाने का आग्रह किया, परन्तु बिना डीएलबी की स्वीकृति के बिना बैइक बुलाई जाने से इंकार कर दिया गया। नगरपालिका अधिनियम 2009 की धारा-58(1) के अनुसार दो माह के भीतर समिति की बैठक बुलानी जरूरी है। अधिनियम में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि इसके लिए डीएलबी से पूर्व स्वीकृति ली जावे।
इस सम्बंध में श्रीती सुमित्रा आर्य, जो गंदी बस्ती सुधार समिति की अध्यक्ष हैं, ने 14 पॅरवरी को अधिशाषी अधिकारी को एक पत्र बैठक बुलाने बाबत दिया, जो पालिका के आवक रजिस्टर में क्रमांक 1084 पर दिनांक 14-02-11 को दर्ज है। इस पर कोई कार्यवाही नहीं होने पर उन्होंने अधिनियम की धारा - 58 (3) के तहत समिति के अध्यक्ष द्वारा बैठक बुलाने के प्रावधान का उपयोग अपने अधिकारों के तहत करते हुए 11 मार्च को बैठक बुलाने की सूचना जारी कर दी, जिसे नगर पालिका के आवक रजिस्टर में क्रमांक 1153 दिनांक 01-03-11 पर दर्ज किया गया। इसमें अध्यक्ष ने नियमानुसार बैठक बुलाने के लिए ईओ को पाबंद भी किया, परन्तु इस बैठक की कार्यवाही स्वयं लिखने, किसी अन्य कर्मचारी को नियुक्त कर कार्यवाही लिखवाने व बैठक में स्वयं मौजूद रहने से भी मना कर दिया तथा कहा कि जब तक उनके पास डीएलबी की स्वीकृति नहीं आ जाती, तब तक वे कुछ नहीं करेंगे। वे डीएलबी को रिमाण्डर भेज देंगे, बाद में जो होगा देखेंगे।
क्या था पत्र
इसके बाद डीएलबी से पत्र क्रमांक: प.8 (ड़)()बो.प्र./डी एल बी / 10/ 1022 दिनांक 16-3-11
प्राप्त हुआ, जिसमें स्वायत्त शासन विभाग के शासन उप सचिव ने स्पष्ट आदेश दिया कि नगर पालिका लाडनूं की साधारण सभा की बैठक दिनांक 31.12.10 के प्रस्ताव सं. 02 के सम्बंध में अधिशाषी अधिकारी से प्रापत टिप्पणी को राजस्थान नगर पालिका अधिनियम 2009 की धारा 49(4) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार तत्काल प्रभाव से निरस्त करती है। इसके साथ ही अधिशाषी अधिकारी लाडनूं को स्पष्ट निर्देश दिए गए कि मण्डल द्वारा गठित समितियां विधिवत कार्य कर सकेंगी।
इस पत्र की प्रतियां जिला कलेक्टर, उपनिदेशक क्षेत्रीय अजमेर, अध्यक्ष नगरपालिका लाडनूं आदि को भेजी गई। यह पत्र नगर पालिका के रिकार्ड से गायब होगया। अध्यक्ष व अधिशाषी अधिकारी दोनों की डाक को इंद्राज नहीं किया गया।
इसके बाद डीएलबी से पत्र क्रमांक: प.8 (ड़)()बो.प्र./डी एल बी / 10/ 1029 दिनांक 30-3-11 को एक आदेश जारी करके पूर्व समसंख्यक आदेश 1022 दिनांक 16.03.2011 की क्रियान्विति को अग्रिम आदेशों तक स्थगित कर दिया गया। साथ ही ईओ को बोर्ड बैठक दिनांक 31.12.2010 के प्रस्ताव सं. 02 के सम्बंध में सम्पूर्ण रिकॉर्ड लेकर शीघ्र विभाग के पास उपस्थित होने के आदेश दिए।
इस आदेश की प्रति अध्यक्ष को उपलब्ध करवा दी गई, जिससे पूर्व पत्र के आने और गायब होने की पोल खुली। सभी पार्षदों ने इस सम्बंध में बैठक में ईओ से जवाब मांगा तो वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए तथा यह भी नहीं बताया कि वे रिकार्ड लेकर जयपुर गए या नहीं। पार्षदों ने भविष्य में इस प्रकार डाक गायब नहीं करने की हिदायत अधिशाषी अधिकारी को बैठक में दी।
राजस्थान के लाडनूं शहर से प्रकाशित समाचार पत्र कलम कला की ओर से लाडनूं-न्यूज: कलम कला शीर्षक से क्षेत्रीय समाचारों और विचारों से समाहित इटरनेट पर यह प्रस्तुतिकरण दिया जा रहा है। आप कलम कला को पढकर, अपने दोस्तों को बताकर, अपनी टिप्पणियां दर्ज करवाकर, अपने समाचार आदि हमारे ई-मेल पर भेजकर और कलम कला समाचार पत्र मंगवाकर हमारे सहयोगी बन सकते हैं।- SUMITRA ARYA, EDITOR, LADNUN. Email- kalamkala@gmail.com
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बुधवार, 4 मई 2011
लोकप्रिय हो रहे हैं कलम कला ग्रुप के इंटरनेट ब्लॉग: नया ब्लॉग तहकीकात अवश्य पढें
पाठक बंधुओं,
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- सुमित्रा आर्य, सम्पादक Email- editor.sumitra@gmail.com
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- सुमित्रा आर्य, सम्पादक Email- editor.sumitra@gmail.com
पेयजल किल्लत पर महिलाओं का प्रदर्शन सहायक अभियंता ने मौका देखकर दिलाया समाधान का भरोसा
लाडनूं। शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जलदाय विभाग द्वारा की जाने वाली पेयजल की आपूर्ति की स्थिति बदतर होने से लोगों में काफी रोष है। मालियों के मोहल्ले, नाईयों के बास, मगरा बास, सदर बाजार आदि क्षेत्रों में पानी सही समय पर व पूरे प्रेशर के साथ नहीं खोले जाने से नागरिक परेशान है। इस स्थिति के चलते शहर के वार्ड सं. 16 में मालियों के मोहल्ले में बनी पानी की समस्या से त्रस्त लोगों की आवाज उठाते हुए 19 अप्रेल को पार्षद व जिला आयोजना समिति की सदस्य सुमित्रा आर्य के नेतृत्व में दो दर्जन से अधिक महिलाओं ने जलदाय विभाग पहुंचकर सहायक अभियंता कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया व पानी दिए जाने की मांग की। सहायक अभियंता धीरेन्द्र पचौरी एवं अन्य अभियंता हालांकि उस समय कार्यालय में मौजूद नहीं थे। उन्होंनें बाद में कर्मचारियों के साथ मालियों के मोहल्ले में पहुंचकर पेयजल आपूर्ति की स्थिति का आकलन किया। उन्होंने स्वीकार किया कि पाईप लाईन वर्षों पुरानी होने से ब्लॉक हो चुकी जिससे पानी की पूरी आपूर्ति संभव नहीं हो पा रही है। उन्होंने पार्षद सुमित्रा आर्य को विश्वास दिलाया कि शीघ्र ही विभाग के पास पाईप मिलते ही पूरी लाईन बदल दी जाएगी। उन्होंने तब तक दो कर्मचारियों को लगाकर कुछ पाईपों को निकालकर उन्हें साफ कर दूसरी लाईन में जोड़कर पानी की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया।
10 अरब की जिला वार्षिक योजना पारित
नागौर (कलम कला न्यूज)। जिला आयोजना समिति की बैठक में नागौर जिले की वार्षिक योजना पारित की गई। जिला आयोजना समिति की सदस्य श्रीमती सुमित्रा आर्य ने बताया कि वर्ष 2011-12 के लिए विभागीय प्लान सीलिंग (आयोजना बजट प्रावधान) को ध्यान में रखते हुए जिला वार्षिक योजना के प्रस्तावों को अंतिम रूप दिया गया। इसके अन्तर्गत जिले के लिए कुल 984 करोड़ 77 लाख 77 हजार रूपयों के प्रावधान पारित किए गए हैं। इसमें 389 करोड़ 37 लाख 37 हजार रूपये राज्य योजना मद से व 595 करोड़ 40 लाख 40 हजार रूपये केन्द्रीय प्रवर्तित योजना मद से शामिल किए गए हैं। योजना के आकार के अनुसार इसमें सबसे अधिक प्रावधान जिले की ग्रामीण विकास योजनाओं की राशि 455 करोड़ 92 लाख 68 हजार रूपये रखी गई है, जो जिले की कुल वार्षिक योजना का 46.30 प्रतिशत है। इसमें मुख्य रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना पर खर्च किया जाएगा।
श्रीमती आर्य ने बताया कि नागौर जिले की वार्षिक योजना को राज्य सरकार के निर्देशानुसार विकेन्द्रीकृत योजना तैयार करने को ध्यान में रखते हुए 20 विषयों को सम्मिलित किया गया है। इसके तहत कृषि विभाग को 1 करोड़ 82 लाख 61 हजार, उघान (हॉर्टीकल्चर) विभाग को 11 करोड़ 88 लाख 70 हजार, भू-संरक्षण विभाग को 2 करोड़ 20 लाख 85 हजार, पशुपालन विभाग को 84 लाख 58 हजार, मत्स्य विभाग को बिल्कुल नहीं, ऊर्जा विभाग को 56 करोड़ 50 लाख, जलदाय विभाग को 92 करोड़ 45 लाख 76 हजार, शिक्षा विभाग को 36 करोड़ 73 लाख 43 हजार, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को 55 करोड़ 37 लाख 60 हजार, ग्रामीण विकास विभाग को 4 अरब 55 करोड़ 92 लाख 68 हजार, पंचायती राज विभाग को 1 अरब 33 करोड़ 16 लाख 2 हजार, उद्योग विभाग को 73 लाख 85 हजार, सार्वजनिक निर्माण विभाग को 77 करोड़ 96 लाख, महिला एवं बाल विकास विभाग को 38 करोड़ 33 लाख 98 हजार, स्वायत शासन विभाग को 4 करोड़ 93 लाख 41 हजार, वन विकास के लिए 72 लाख 16 हजार, समाज कल्याण विभाग को 14 करोड़ 19 लाख 78 हजार, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को 60 लाख 74 हजार, जल संसाधन विभाग को 20 लाख एवं पर्यटन विभाग को 15 लाख रूपयों की योजनाएं स्वीकृत की गई है।
श्रीमती आर्य ने बताया कि नागौर जिले की वार्षिक योजना को राज्य सरकार के निर्देशानुसार विकेन्द्रीकृत योजना तैयार करने को ध्यान में रखते हुए 20 विषयों को सम्मिलित किया गया है। इसके तहत कृषि विभाग को 1 करोड़ 82 लाख 61 हजार, उघान (हॉर्टीकल्चर) विभाग को 11 करोड़ 88 लाख 70 हजार, भू-संरक्षण विभाग को 2 करोड़ 20 लाख 85 हजार, पशुपालन विभाग को 84 लाख 58 हजार, मत्स्य विभाग को बिल्कुल नहीं, ऊर्जा विभाग को 56 करोड़ 50 लाख, जलदाय विभाग को 92 करोड़ 45 लाख 76 हजार, शिक्षा विभाग को 36 करोड़ 73 लाख 43 हजार, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को 55 करोड़ 37 लाख 60 हजार, ग्रामीण विकास विभाग को 4 अरब 55 करोड़ 92 लाख 68 हजार, पंचायती राज विभाग को 1 अरब 33 करोड़ 16 लाख 2 हजार, उद्योग विभाग को 73 लाख 85 हजार, सार्वजनिक निर्माण विभाग को 77 करोड़ 96 लाख, महिला एवं बाल विकास विभाग को 38 करोड़ 33 लाख 98 हजार, स्वायत शासन विभाग को 4 करोड़ 93 लाख 41 हजार, वन विकास के लिए 72 लाख 16 हजार, समाज कल्याण विभाग को 14 करोड़ 19 लाख 78 हजार, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को 60 लाख 74 हजार, जल संसाधन विभाग को 20 लाख एवं पर्यटन विभाग को 15 लाख रूपयों की योजनाएं स्वीकृत की गई है।
अपनी दिशा न भूले मीडिया: निरंकुश न बने लोकप्रिय होती ब्लॉग पत्रकारिता
पत्रकारिता को हमेशा एक आदर्श के रूप में देखा जाता रहा है। जनता की भावनाओं का खुला पृष्ठ होता था पत्रकारिता। मगर आज लगता है स्थितियां बदल गई है। पत्रकारिता जहां प्रिण्ट मीडिया के दायरे से निकल कर रेडियो तक पहुंची तब तक तो सब ठीक था, मगर टीवी चैनलों, इंटरनेट पर वेब-साईट और ब्लॉग पत्रकारिता में घुसे लोगों ने इसे ऐसा आयाम दिया है, जो कतई सुखद नहीं कहा जा सकता। इसमें सुधार लाने के लिए प्रयास किए जाने जरूरी है। हमें निश्चित रूप से पत्रकातिा को स्वस्थ स्वरूप प्रदान करने के लिए पहल करनी चाहिए। इसके लिए पत्रकारिता को बदनाम करने वाली हर हरकत का खुलकर विरोध पत्रकारिता जगत से ही होना जरूरी है। इसके लिए हमें आत्म चिंतन करना चाहिए तथा हर स्थ्िित के बारे में गहराई से सोचना चाहिए।
टीवी पत्रकारिता का सच: ख़बरिया चैनलों में काम कर रहे पत्रकार खुद दुखी हैं। ऐसे पत्रकारों का मानना है कि वे ऐसी स्थिति में हैं कि न तो छोड़ सकते और वहां बने रहना उनके लिए दुश्वार हो गया है। अभिमन्युं की तरह इस पत्रकारिता के चक्रव्यूह में फंसे होने पर उनके प्रति दुख प्रकट किया ही जा सकता है, साथ ही उन्हें अपने व्यवहार में सुधार लाने की सलाह दी जानी भी जरूरी है। हालांकि इन्हीं न्यूज़ चैनलों में कुछ ऐसे पत्रकारों की जमात भी मौजूद है, जो योग्यता के मुकाबले कैसे हैं, यह नहीं कहा जा सकता लेकिन वे न्यूज़ चैनल के मंच का, उसके ग्लैमर का, उसकी पहुंच का इस्तेमाल कर अपनी छवि भी चमकाते हैं और जब भी जहां भी सार्वजनिक तौर पर बोलने का मौक़ा मिलता है, वहां न्यूज़ चैनलों को गरियाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। उनका यह रूप और चरित्र वास्तविक पत्रकारिता करने वालों को हमेशा परेशान करता है। यह अपने पेशे से एक तरह का छलात्कार है, जो क्षणिक तो मजा देता है, लेकिन पत्रकारिता का बड़ा नुक़सान कर डालता है। ख़ुद की छवि को चमकाने के लिए पत्रकारिता पर सवाल खड़े करने वाले इन पत्रकारों की वजह से दूसरे लोगों को आलोचना का मौक़ा और मंच दोनों मिल जाता है। टीवी मीडिया के उन फंसे अभिमन्युओं को चाहिए कि वे चक्रव्यूह में फंसकर दम तोडऩे के बजाय युद्ध का मैदान छोड़ दें। अगर न्यूज़ चैनलों में उनका दम घुटता है तो वे वहां से तत्काल आज़ाद होकर अपना विरोध प्रकट करें। ऐसे पत्रकार बंधु व्यवस्था का विरोध करना तो दूर की बात, कभी अपनी नाख़ुशी भी नहीं जतापाते। मालिकों के सामने भीगी बिल्ली बने रहने वाले इन पत्रकारों को सार्वजनिक विलाप से बचना चाहिए। यह उनके भी हित में है और पत्रकारिता के हित में भी। किसी भी चीज की स्वस्थ आलोचना हमेशा से स्वागत योग्य है, लेकिन व्यक्तिगत छवि चमकाने के लिए की गई आलोचना निंदनीय है।
बेलगाम होती ब्लॉग पत्रकारिता: ब्लॉग पत्रकारिता का एक नवीनतम आयाम है। ब्लॉग तेजी से अपना वर्चस्व कायम करते जा रहे हैं। ब्लॉग पाठकों की संख्या में बेतहासा ईजाफा इसकी बढती लोकप्रियता को इंगित करता है। हिंदी में ब्लॉग के माध्यम से बड़ा काम हो रहा है। यह बिल्कुल सही बात है कि ब्लॉग और नेट के माध्यम से हिंदी के लिए बड़ा काम हो रहा है, लेकिन कुछ ब्लॉगर और वेबसाइट जिस तरह से बेलगाम होते जा रहे हैं, वह हिंदी भाषा के लिए चिंता की बात है।् ब्लॉग पर जिस तरह से व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए ऊलजुलूल बातें लिखी जा रही हैं, वह बेहद निराशाजनक है। कई ब्लॉग तो ऐसे हैं,जहां पहले किसी फ र्जी नाम से कोई लेख लिखा जाता है, फि र बेनामी टिप्पणियां छापकर ब्लैकमेलिंग का खेल शुरू होता है। कुछ कमज़ोर लोग इस तरह की ब्लैकमेलिंग के शिकार हो जाते हैं और कुछ ले-देकर अपना पल्ला छुड़ाते हैं। लेकिन जिस तरह से ब्लॉग को ब्लैकमेलिंग और चरित्र हनन का हथियार बनाया जा रहा है, उससे ब्लॉग की आज़ादी और उसके भविष्य को लेकर ख़ासी चिंता होती है। बेलगाम होते ब्लॉग और वेबसाइट पर अगर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई तो सरकार को इस दिशा में सोचने के लिए विवश होना पड़ेगा। ब्लॉग एक सशक्त माध्यम है, गाली गलौच और बे सिर-पैर की बातें लिखकर अपने मन की भड़ास निकालने का मंच नहीं।् इस बात पर हिंदी के झंडाबरदारों को गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है। ब्लॉग पर चल रहे इस घटिया खेल पर सभी पत्रकार बंधुओं को विरोध करना चाहिए ताकि हिन्दी पत्रकारिता के इस नए आयाम को एक बेहतर वैश्विक प्रस्तुति के रूप में ताकतवर बनाया जा सके। - सुमित्रा आर्य, सम्पादक
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