लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता महेशप्रकाश सांखला ने तहसीलदार सत्यनारायण शर्मा व अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा को पत्र लिखकर जिला कलेक्टर के आदेशों की पालना करने तथा अपनी कार्यवाही पूर्ण कर शीघ्र रिपोर्ट भिजवाने बाबत मांग की है। सांखला ने अपने पत्र में लिखा है कि राजकीय भूमि व सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण कर अनधिकृत रूप से निर्मित धार्मिक पूजास्थलों के सम्बंध में राज्य सरकार द्वारा जारी नीति के अनुसार तुरन्त कार्यवाही की जावे। इस सम्बंध में बताया गया है कि राजस्थान उच्च न्यायालय की एसबी सिविल रिट पिटीशन सं. 2145/2010 एवं उच्चतम न्यायालय की विशेष अनुमति अपील (दीवानी) सं. 8519/2006 में अन्तरिम आदेश दिनांक 29-09-09 की पालना में उन्हें निर्देशित किया गया है, इसके बावजूद प्रकरण में कार्यवाही लम्बित रखी जा रही है। सांखला ने जिला कलेक्टर के पत्र क्रमांक- एफ.12()राजस्व/2010/3880-3888 दिनांक- 19-05-11, क्र. 11878-11897 दिनांक-01-12- 2010, क्र. 13754-13773 दिनांक- 30-12-2010, क्र. 2338-2357 दिनांक- 29-03-2011 एवं क्र. न्याय/2010/9616-46 दिनांक- 10-11-2010 व क्र. 09/6864 दिनांक-28-10-09 का अपने पत्र में हवाला दिया है, जिनकी स्थानीय अधिकारियों द्वारा कोई पालना नहीं की जा रही है।
सांखला ने मांग की है कि नेहरू पार्क परिसर, लाडनूं को अतिक्रमण से मुक्त करावें। आवंटित भूमि खसरा नं. 497 सरहद लाडनूं को जिला कलेक्टर नागौर द्वारा पत्र क्रं. राजस्व राजस्व/86/903 दिनांक- 03-03-1986 द्वारा 30 वर्षों की लीज पर निशुल्क आवंटित किया गया था, परन्तु इसमें लीज शर्तों व नियमों का उल्लंघन किया गया है। यहां निर्मित भवनों के लिए स्थानीय निकायों से निर्माण सम्बंधी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई और न कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही ही की गई। सांखला ने इस सम्बंध में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से जारी पत्र क्रमांक- सीएम/रीडर/08/42 दिनांक- 03-10-2008, क्र. सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक- 04-11-2008, क्र. राज्यपाल सचिवालय/08/1781 व 1782 दिनांक- 16-10-2008 के सम्बंध में कार्यवाही नहीं की जाना बताते हुए तुरन्त कार्यवाही की मांग की है। उन्होंने तहसीलदार कार्यालय से जारी पत्रांक- भू.अ./2011/11/768 दिनांक- 07-04-2011 मेंसंलग्र की गई अतिक्रमियों की सूची के अनुसार अतिक्रमणों को हटाने व समस्त अनधिकृत रूप से बने मकानों को सरकारी तहबील में लेने की मांग भी की है।
इस सम्बंध में अनावश्यक विलम्ब करने, सभा-संस्थाओं के प्रभाव में आकर कत्र्तव्यनिष्ठा में विफल रहने, अपूर्ण सूचनाओं को अग्रेषित करने, रिकार्ड व पत्रावलियों को बिना देखे ही सूचनाएं भिजवाई जाने को गम्भीर व लापरवाही मानते हुए उच्चाधिकारियों व न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने की चेतावनी भी दी है।
राजस्थान के लाडनूं शहर से प्रकाशित समाचार पत्र कलम कला की ओर से लाडनूं-न्यूज: कलम कला शीर्षक से क्षेत्रीय समाचारों और विचारों से समाहित इटरनेट पर यह प्रस्तुतिकरण दिया जा रहा है। आप कलम कला को पढकर, अपने दोस्तों को बताकर, अपनी टिप्पणियां दर्ज करवाकर, अपने समाचार आदि हमारे ई-मेल पर भेजकर और कलम कला समाचार पत्र मंगवाकर हमारे सहयोगी बन सकते हैं।- SUMITRA ARYA, EDITOR, LADNUN. Email- kalamkala@gmail.com
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शनिवार, 28 मई 2011
धड़ल्ले से हुआ बाल विवाह : धरी रह गई शिकायत
लाडनूं (कलम कला न्यूज)। प्रथमदृष्टया नाबालिग एवं विवाह के अयोग्य साबित हो जाने के बावजूद पुलिस व प्रशासन ने केवल लाचारगी ही नहीं दर्शाई बल्कि बाल विवाह को सम्पन्न करवाने में सहायक की भूमिका भी निभाई। स्थानीय तेली रोड़ पर गली नं. 27 के रहवासी मोहम्मद सलाम सिलावट की पुत्री साबिया बानो की शादी 15 मई को बीदासर के मो. वहीद पुत्र हाजी मो. बल्खी के साथ तय की, जिसकी शिकायत मो. रफीक सौरगर ने पुख्ता सबूतों के साथ उपखण्ड मजिस्ट्रेट के समक्ष करके बताया कि साबिया बानो नाबालिग है व विवाह के लिए योग्य आयु प्राप्त नहीं है। शिकायतकर्ता रपुीक ने अपनी शिकायत के साथ साबिया का जन्मतिथि प्रमाण पत्र, जो नगर पालिका से जारी था, तथा भारत के विदेश विभाग व दूतावास सहिम मस्कत सरकार द्वारा भी प्रमाणित थे। साबिया के पासपोर्ट की प्रति भी पेश की, जिससे वो मस्कट की विदेश यात्रा कर चुकी तथा मस्कट की अदालत में भी ये सभी दस्तावेजात प्रस्तुत किए जा चुके।
धड़ल्ले से भरा गया मायरा
उपखण्ड अधिकारी के पास शिकायत पहुंचने और लड़की के पिता को पाबंद करने के बावजूद इस विवाह ाके आयोजकों को राजनैतिक व अन्य समर्थन मिला,तथा उन्होंने अपने लाडनूं के मायरदारों से सार्वजनिक तौर पर मायरा लिया तथा पुलिस व प्रशासन को बालविवाह हर हाल करने की चेतावनी दे डाली।
शिकायतकर्ता को धमकाया व दबाया
इस शिकायत पर हालांकि उपखण्ड अधिकारी ने पुलिस व तहसीलदार को पाबंद किया, परन्तु दूसरी तरफ राजनैतिक, आर्थिक और अन्य दृष्टियों से दबाव डालकर अपने वैवाहिक आयोजन को हर हाल करने पर उतारू सलाम ने अनेक लोगों का सहारा लिया और शिकायतकर्ता को बुरी तरह डराया-धमकाया और उसे शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर तक किया, लेकिन जो बालविवाह की जानकारी एक बार प्रशासन की जानकारी में आ गई, उसे वापस दबा पाना मुश्किल होता है, और प्रशासन दवाब में आने के बावजूद खानापूर्ति कर फाईल को बंद करना तो आवश्यक समझता ही है।
निकाला मेडिकल जांच का रास्ता
जिस पिता ने मस्कत देश में बेटी के मुकदमें में उसकी उम्र के लिए जिस जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट का सहारा लिया, उसी ने उसे पूरी तरह झुठलाते हुए अपनी पुत्री की वास्तविक आयु 16 साल की जगह 19 साल बताते हुए पुलिस व प्रशासन की सलाह पर मेडिकल जांच करवाने का प्रस्ताव रखा। मेडिकल जांच में चिकित्सक ने न तो किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित समझा और न स्त्री रोग विशेषज्ञ या डेझिटस्ट की सलाह ही ली, जो इस तरह के प्रकरण में मायने रखती है। आखिर यह तो मिलीभगत पूर्वक खानापूर्ति करने का मामला जो ठहरा, इसलिए आनन-फानन में मेडिकल प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया , ताकि बाल विवाह में कोई अड़चन न पैदा हो। जब प्रशासन व पुलिस सहायक बन जावे तो कौन बाधा पैदा करेगा। मेडिकल रिपोर्ट को देखा जावे तो वह पमरी तरह प्रायोजित की प्रतीत होती है, जिसमें लड़की की आयु का निर्धारण करने में सारी खानापूर्तियां मात्र ही की गई। अगर कोई निष्पक्ष मेडिकल बोर्ड बैठाकर यह जांच अब भी की जावे तो यह रिपोर्ट पूरी तरह झूठ निकल सकती है।
कौन जिम्मेदार है इस बाल विवाह का?
राज्य सरकार ने आदेश निकाल कर उपखण्ड कार्यालयों पर बाल विवाह नियन्त्रण केन्द्र स्थपित करवाए तथा बाल विवाह के लिए एसडीओ को जिम्मेदार ठहराने की घोषणा की, पर यहां सभी आदेशों की खुली धज्जियां उड़ी, और सब देखते रहे, आखिर कहा जाता है कि समरथ को नहीं दोष गुसांईं।
नियमानुसार जिस काजी ने इस बाल विवाह की निकाह पढाई, जिस हलवाई ने बारातियों या वैवाहिक भोज के लिए खाना बनाया और जितने लोग वर व वधु पक्ष के इस शादी में शामिल हुए , गवाह बने वे सभी बराबर के मुलजिम होने चाहिए, पर वो तो तब ना जब प्रशासन इसके लिए कार्रवाई करने की इच्छा रखे।
खड़े रह गए सवाल
बाल विवाह तो सम्पन्न हो गया, परन्तु अनेक सवाल खड़े रह गए। इस मामले में पूरी जांच करने में प्रशासन ने पूरी कोताही बरती है।
-क्या जिस जन्म प्रमाण पत्र को उपखण्ड अधिकारी के समक्ष शपथ पत्र देकर बनवाया गया तथा उसके लिए एसडीओ की अनुज्ञा ली गई हो, वो झूठा हो सकता है?
- अगर वो झूठा है तो लड़की के परिजनों के विरूद्ध झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत करने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
- पासपोर्ट को लड़की अवयस्कता में उसके अभिभावक ने बनवाया, उसके समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किए, क्या वो झूठे है? अगर गलत हैं तो उनके लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जावे?
-मस्कत की अदालत में जिन दस्तावेजों का उसके पिता ने उम्र को साबित करने के लिए किया, क्या वो भी झूठे साबित किए जा सकते हैं?
- क्या पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्यों को नकार कर केवल अन्दाजन आयु का अनुमान बताने वाले डाक्टर के प्रमाण पत्र को सही माना जाना जायज कहा जा सकता है?
और भी अनेक सवाल हैं, पर जहां कानून को ताक पर रख दिया जावे तो वहां ये बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज है।
धड़ल्ले से भरा गया मायरा
उपखण्ड अधिकारी के पास शिकायत पहुंचने और लड़की के पिता को पाबंद करने के बावजूद इस विवाह ाके आयोजकों को राजनैतिक व अन्य समर्थन मिला,तथा उन्होंने अपने लाडनूं के मायरदारों से सार्वजनिक तौर पर मायरा लिया तथा पुलिस व प्रशासन को बालविवाह हर हाल करने की चेतावनी दे डाली।
शिकायतकर्ता को धमकाया व दबाया
इस शिकायत पर हालांकि उपखण्ड अधिकारी ने पुलिस व तहसीलदार को पाबंद किया, परन्तु दूसरी तरफ राजनैतिक, आर्थिक और अन्य दृष्टियों से दबाव डालकर अपने वैवाहिक आयोजन को हर हाल करने पर उतारू सलाम ने अनेक लोगों का सहारा लिया और शिकायतकर्ता को बुरी तरह डराया-धमकाया और उसे शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर तक किया, लेकिन जो बालविवाह की जानकारी एक बार प्रशासन की जानकारी में आ गई, उसे वापस दबा पाना मुश्किल होता है, और प्रशासन दवाब में आने के बावजूद खानापूर्ति कर फाईल को बंद करना तो आवश्यक समझता ही है।
निकाला मेडिकल जांच का रास्ता
जिस पिता ने मस्कत देश में बेटी के मुकदमें में उसकी उम्र के लिए जिस जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट का सहारा लिया, उसी ने उसे पूरी तरह झुठलाते हुए अपनी पुत्री की वास्तविक आयु 16 साल की जगह 19 साल बताते हुए पुलिस व प्रशासन की सलाह पर मेडिकल जांच करवाने का प्रस्ताव रखा। मेडिकल जांच में चिकित्सक ने न तो किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित समझा और न स्त्री रोग विशेषज्ञ या डेझिटस्ट की सलाह ही ली, जो इस तरह के प्रकरण में मायने रखती है। आखिर यह तो मिलीभगत पूर्वक खानापूर्ति करने का मामला जो ठहरा, इसलिए आनन-फानन में मेडिकल प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया , ताकि बाल विवाह में कोई अड़चन न पैदा हो। जब प्रशासन व पुलिस सहायक बन जावे तो कौन बाधा पैदा करेगा। मेडिकल रिपोर्ट को देखा जावे तो वह पमरी तरह प्रायोजित की प्रतीत होती है, जिसमें लड़की की आयु का निर्धारण करने में सारी खानापूर्तियां मात्र ही की गई। अगर कोई निष्पक्ष मेडिकल बोर्ड बैठाकर यह जांच अब भी की जावे तो यह रिपोर्ट पूरी तरह झूठ निकल सकती है।
कौन जिम्मेदार है इस बाल विवाह का?
राज्य सरकार ने आदेश निकाल कर उपखण्ड कार्यालयों पर बाल विवाह नियन्त्रण केन्द्र स्थपित करवाए तथा बाल विवाह के लिए एसडीओ को जिम्मेदार ठहराने की घोषणा की, पर यहां सभी आदेशों की खुली धज्जियां उड़ी, और सब देखते रहे, आखिर कहा जाता है कि समरथ को नहीं दोष गुसांईं।
नियमानुसार जिस काजी ने इस बाल विवाह की निकाह पढाई, जिस हलवाई ने बारातियों या वैवाहिक भोज के लिए खाना बनाया और जितने लोग वर व वधु पक्ष के इस शादी में शामिल हुए , गवाह बने वे सभी बराबर के मुलजिम होने चाहिए, पर वो तो तब ना जब प्रशासन इसके लिए कार्रवाई करने की इच्छा रखे।
खड़े रह गए सवाल
बाल विवाह तो सम्पन्न हो गया, परन्तु अनेक सवाल खड़े रह गए। इस मामले में पूरी जांच करने में प्रशासन ने पूरी कोताही बरती है।
-क्या जिस जन्म प्रमाण पत्र को उपखण्ड अधिकारी के समक्ष शपथ पत्र देकर बनवाया गया तथा उसके लिए एसडीओ की अनुज्ञा ली गई हो, वो झूठा हो सकता है?
- अगर वो झूठा है तो लड़की के परिजनों के विरूद्ध झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत करने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
- पासपोर्ट को लड़की अवयस्कता में उसके अभिभावक ने बनवाया, उसके समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किए, क्या वो झूठे है? अगर गलत हैं तो उनके लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जावे?
-मस्कत की अदालत में जिन दस्तावेजों का उसके पिता ने उम्र को साबित करने के लिए किया, क्या वो भी झूठे साबित किए जा सकते हैं?
- क्या पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्यों को नकार कर केवल अन्दाजन आयु का अनुमान बताने वाले डाक्टर के प्रमाण पत्र को सही माना जाना जायज कहा जा सकता है?
और भी अनेक सवाल हैं, पर जहां कानून को ताक पर रख दिया जावे तो वहां ये बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज है।
डेगाना तक हो रानीखेत एक्सप्रेस
लाडनूं (कलम कला न्यूज)। सजग नागरिक मोर्चा ने रानीखेत से रतनगढ तक चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेन को बढाकर डेगाना तक करने की मांग की है। मोर्चा के अध्यक्ष जगदीश यायावर ने रेलमंत्री सहित महाप्रबंधक उत्तर रेलवे, चैयरमेन रेलवे बोर्ड, महाप्रबंधक उत्तर पश्चिम रेलवे एवं सभी सम्बंधित रेलवे अधिकारियों व सांसदों को पत्र लिखकर बताया है कि यह गाड़ी रतनगढ सुबह 11 बजे आती है और शाम 4 बजे वापस रानीखेत के लिए रवाना होती है। इस बीच के 5 घंटों के समय को डेगाना तक गाड़ी को बढाकर उपयोग में लिया जा सकता है। इससे इस क्षेत्र के लोगों, प्रवासियों, व्यापारियों और अन्य लोगों को भी लाभ मिल सकेगा तथा दिल्ली तक सीधा साधन उपलब्ध हो जाएगा। पत्र में बताया गया है कि सुजानगढ, लाडनूं, डीडवाना आदि से बड़ी तादाद में लोग दिल्ली, आसाम, बंगाल आदि विभिन्न क्षेत्रों में रहते हैं। रानीखेत एक्सप्रेस को डेगाना तक बढाए जाने से उन सबको इस ट्रेन से आवागमन का साधन उपलब्ध होने के साथ ही रेलवे को भारी राजस्व स्रोत मिलेगा।
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