लाडनूं (कलम कला न्यूज)। प्रथमदृष्टया नाबालिग एवं विवाह के अयोग्य साबित हो जाने के बावजूद पुलिस व प्रशासन ने केवल लाचारगी ही नहीं दर्शाई बल्कि बाल विवाह को सम्पन्न करवाने में सहायक की भूमिका भी निभाई। स्थानीय तेली रोड़ पर गली नं. 27 के रहवासी मोहम्मद सलाम सिलावट की पुत्री साबिया बानो की शादी 15 मई को बीदासर के मो. वहीद पुत्र हाजी मो. बल्खी के साथ तय की, जिसकी शिकायत मो. रफीक सौरगर ने पुख्ता सबूतों के साथ उपखण्ड मजिस्ट्रेट के समक्ष करके बताया कि साबिया बानो नाबालिग है व विवाह के लिए योग्य आयु प्राप्त नहीं है। शिकायतकर्ता रपुीक ने अपनी शिकायत के साथ साबिया का जन्मतिथि प्रमाण पत्र, जो नगर पालिका से जारी था, तथा भारत के विदेश विभाग व दूतावास सहिम मस्कत सरकार द्वारा भी प्रमाणित थे। साबिया के पासपोर्ट की प्रति भी पेश की, जिससे वो मस्कट की विदेश यात्रा कर चुकी तथा मस्कट की अदालत में भी ये सभी दस्तावेजात प्रस्तुत किए जा चुके।
धड़ल्ले से भरा गया मायरा
उपखण्ड अधिकारी के पास शिकायत पहुंचने और लड़की के पिता को पाबंद करने के बावजूद इस विवाह ाके आयोजकों को राजनैतिक व अन्य समर्थन मिला,तथा उन्होंने अपने लाडनूं के मायरदारों से सार्वजनिक तौर पर मायरा लिया तथा पुलिस व प्रशासन को बालविवाह हर हाल करने की चेतावनी दे डाली।
शिकायतकर्ता को धमकाया व दबाया
इस शिकायत पर हालांकि उपखण्ड अधिकारी ने पुलिस व तहसीलदार को पाबंद किया, परन्तु दूसरी तरफ राजनैतिक, आर्थिक और अन्य दृष्टियों से दबाव डालकर अपने वैवाहिक आयोजन को हर हाल करने पर उतारू सलाम ने अनेक लोगों का सहारा लिया और शिकायतकर्ता को बुरी तरह डराया-धमकाया और उसे शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर तक किया, लेकिन जो बालविवाह की जानकारी एक बार प्रशासन की जानकारी में आ गई, उसे वापस दबा पाना मुश्किल होता है, और प्रशासन दवाब में आने के बावजूद खानापूर्ति कर फाईल को बंद करना तो आवश्यक समझता ही है।
निकाला मेडिकल जांच का रास्ता
जिस पिता ने मस्कत देश में बेटी के मुकदमें में उसकी उम्र के लिए जिस जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट का सहारा लिया, उसी ने उसे पूरी तरह झुठलाते हुए अपनी पुत्री की वास्तविक आयु 16 साल की जगह 19 साल बताते हुए पुलिस व प्रशासन की सलाह पर मेडिकल जांच करवाने का प्रस्ताव रखा। मेडिकल जांच में चिकित्सक ने न तो किसी हड्डी रोग विशेषज्ञ की सलाह लेना उचित समझा और न स्त्री रोग विशेषज्ञ या डेझिटस्ट की सलाह ही ली, जो इस तरह के प्रकरण में मायने रखती है। आखिर यह तो मिलीभगत पूर्वक खानापूर्ति करने का मामला जो ठहरा, इसलिए आनन-फानन में मेडिकल प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया , ताकि बाल विवाह में कोई अड़चन न पैदा हो। जब प्रशासन व पुलिस सहायक बन जावे तो कौन बाधा पैदा करेगा। मेडिकल रिपोर्ट को देखा जावे तो वह पमरी तरह प्रायोजित की प्रतीत होती है, जिसमें लड़की की आयु का निर्धारण करने में सारी खानापूर्तियां मात्र ही की गई। अगर कोई निष्पक्ष मेडिकल बोर्ड बैठाकर यह जांच अब भी की जावे तो यह रिपोर्ट पूरी तरह झूठ निकल सकती है।
कौन जिम्मेदार है इस बाल विवाह का?
राज्य सरकार ने आदेश निकाल कर उपखण्ड कार्यालयों पर बाल विवाह नियन्त्रण केन्द्र स्थपित करवाए तथा बाल विवाह के लिए एसडीओ को जिम्मेदार ठहराने की घोषणा की, पर यहां सभी आदेशों की खुली धज्जियां उड़ी, और सब देखते रहे, आखिर कहा जाता है कि समरथ को नहीं दोष गुसांईं।
नियमानुसार जिस काजी ने इस बाल विवाह की निकाह पढाई, जिस हलवाई ने बारातियों या वैवाहिक भोज के लिए खाना बनाया और जितने लोग वर व वधु पक्ष के इस शादी में शामिल हुए , गवाह बने वे सभी बराबर के मुलजिम होने चाहिए, पर वो तो तब ना जब प्रशासन इसके लिए कार्रवाई करने की इच्छा रखे।
खड़े रह गए सवाल
बाल विवाह तो सम्पन्न हो गया, परन्तु अनेक सवाल खड़े रह गए। इस मामले में पूरी जांच करने में प्रशासन ने पूरी कोताही बरती है।
-क्या जिस जन्म प्रमाण पत्र को उपखण्ड अधिकारी के समक्ष शपथ पत्र देकर बनवाया गया तथा उसके लिए एसडीओ की अनुज्ञा ली गई हो, वो झूठा हो सकता है?
- अगर वो झूठा है तो लड़की के परिजनों के विरूद्ध झूठा शपथ पत्र प्रस्तुत करने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
- पासपोर्ट को लड़की अवयस्कता में उसके अभिभावक ने बनवाया, उसके समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किए, क्या वो झूठे है? अगर गलत हैं तो उनके लिए मुकदमा क्यों नहीं चलाया जावे?
-मस्कत की अदालत में जिन दस्तावेजों का उसके पिता ने उम्र को साबित करने के लिए किया, क्या वो भी झूठे साबित किए जा सकते हैं?
- क्या पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्यों को नकार कर केवल अन्दाजन आयु का अनुमान बताने वाले डाक्टर के प्रमाण पत्र को सही माना जाना जायज कहा जा सकता है?
और भी अनेक सवाल हैं, पर जहां कानून को ताक पर रख दिया जावे तो वहां ये बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज है।
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