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बुधवार, 27 अप्रैल 2011

जगदीश यायावर व सुमित्रा आर्य ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड&़े क्षेत्र के प्रथम व श्रेष्ठ ब्लॉगर बने

लाडनूं (कलम कला न्यूज)। नागौर जिले के प्रमुख इंटरनेट-ब्लॉग निर्माता व प्रसिद्ध पत्रकार दम्पत्ती श्रीमती सुमित्रा आर्य व जगदीश यायावर अब ब्लॉग-मेकर्स के नवगठित अखिल भारतीय संगठन ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएशन से जुड़ गए हैं। हाल ही में गठित हुई इस एसोसिएशन में इन्हें शीघ्र ही बनने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महत्त्वपूर्ण पद सम्भलाए जाने की भी पूर्ण संभावनाएं हैं। पत्रकारिता की उभरती हुई इस नई विधा में उनके विशेष योगदान को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। उनकी सिद्धहस्तता के कारण उनकी इंटरनेट पर हिन्दी भाषा में प्रस्तुति कलम कला न्यूज, लाडनूं-न्यूज, सैनी घोष, करण्ट-यायावर, तहकीकात आदि ब्लॉग-साईटों की लोकप्रियता के कारण देश भर के इस संगठन ने इन्हें महत्व दिया है। नियमित रूप से अपडेट होने के कारण इस दम्पत्ती की इन साईटों का महत्व विशेष रूप से बढ गया है। गूगल सर्च इंजिन पर सर्च करने पर ये साईटें सबसे ऊपर मिलेंगी, जो इनकी लोकप्रियता का द्योतक है। अगर आप केवल कलम कला लिखकर सर्च करेंगे तो अपनी सारी नई पोस्टों सहित कलम कला के ब्लॉग की ढेरों जानकारियां हासिल कर सकेंगे।
इन साईटों में प्रमुख सैनी घोष ब्लॉग को विशेषकर सैनी समाज के लिए बनाया गया है, जिसमें केवल क्षेत्रीय ही नहीं बल्कि देश भर के सैनी समाज की खबरों, ऐतिहासिक विवरण, सामाजिक जागृति, आन्दोलन, प्रमुख व्यक्तियों का जीवन परिचय, व्यक्तित्व व कर्तृत्व, संगठन समाचार, वैवाहिक विवरण आदि विषयों को संजोया गया है। सैनी घोष अल्प समय में ही देश की सबसे प्रमुख साईट बनकर उभरी है। इसमें हिन्दी के साथ कुछ अंग्रेजी के आलेख भी शामिल किए गए हैं।
तहकीकात इनका एक नया ब्लॉग है, जिसमें विश्वप्रसिद्ध वेबसाईट विकीलिक्स ने दुनिया के सत्ताधीशों को हिला दिया और भारत में प्रमुख साईट तहलका डॉट कॉम ने भंडाफोड़ करके अनेक राजनेताओं की नींद हराम कर दी, ठीक उसी तरह राजस्थान प्रदेश ही नहीं देश भर में भ्रष्टाचारियों और अन्य प्रमुख भंडाफोड़ निरन्तर इस साईट तहकीकात द्वारा किए जाते रहेंगे।
कलम कला न्यूज इस दम्पत्ती की सबसे पुरानी साईट है, जिसमें लाडनूं, नागौर व चूरू जिले, राजस्थान प्रांत और देश भर को प्राथमिकता क्रम से महत्व देते हुए शामिल किया गया है। इसी तरह की इनकी अन्य इंटरनेट साईटें कलम कला समाचार पत्र के समाचारों के अलावा अन्य प्रमुख समाचारों को प्रकाशित कर रहे हैं। ये अपने सभी ब्लॉग में नवीनतम तकनीक के नए-नए प्रयोग करें उन्हें अधिक आकर्षक और पाठकों के लिए रूचिकर बना रहे हैं।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

बिना अपराध बना डाला संगीन मुकदमI, पुलिस की कार्रगुजारियों पर मुखर हुए विधायक गैसावत

मकराना (कलम कला न्यूज)। पुलिस राई को पहाड़ बना सकती है तो पहाड़ को आंखें बंद करके कह सकती है कि यहां तो मैदान है। पुलिस की कार्य-पद्धति बार-बार संदेहों के घेरे में आती है, लेकिन किसे परवाह है? एक तरफ पुलिस व्यवस्था सुधारने के नाम पर कहा जाता है कि राजनेताओं के दबाव के कारण पुलिस इसमें कामयाब नहीं हो पाती और दूसरी तरफ राजनेता चीखते-चिल्लाते रहते हैं औ पुलिस अपनी कार्रगुजारियां अपनी मर्जी से कर डालती है। अपनी पीठ थपथपाने और वाहवाही लूटने का पुलिस को खासा चस्का लग चुका है, इसमें वह अपने कायदों और कानून-व्यवस्था का मखौल उड़ानें मे संकोच नहीं करती। न्याय की जगह अन्याय, अत्याचार और मनगढ़न्त कहानियां गढ़ कर किसी भी निर्दोष को आरोपित करके संगीन आरोपों का मुलजिम बना डालना पुलिस के लिए बाएं हाथ का खेल है। फिर चाहे कोई कूकता रहे कि आमजन में विश्वास और अपराधियों में डर के बजाए पुलिस इससे एकदम उलटा करने पर तुली हुई है। अधिकारियों पर आरोप भी लगते हैं, तो अधिकारी अपने अधिकारी का ही पक्षपात करेंगे, यह तो लगभग हरएक को पता है।
मार्बल नगरी मकराना में बाई-पास रोड पर बंद रेलवे फाटक पर खड़े वाहन से कुछ लोगों को पुलिस ने सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी में पकड़ा और बाद में उन्हें सरासर फर्जी तरीके से एक एकदम अनजान क्षेत्र बोरावड़ के छापर के सूनसान इलाके से डकैती की योजना बनाते हथियारों सहित गिरफ्तारी करना दिखाया गया। इस मामले में मकराना विधायक जाकिर हुसैन गैसावत, जो उस दिन वहां मौजूद थे तथा मामले की पूरी जानकारी उन्हे थी, ने तत्काल पुलिस से सम्पर्क किया तथा इस बारे में दैनिक भास्कर, दैनिक गोल्ड सुख न्यूज, ई-टीवी आदि के पत्रकारों को दी। उसका प्रकाशन-प्रसारण भी हुआ, लेकिन पुलिस ने जो मुकदमा बना दिया सो बना दिया। पुलिस को घटनास्थल बदलने और वाकया बदलने के लगाए जाने वाले आरोपों को कत्तई गंभीरता से नहीं लिया। कुछ अन्य लोगों ने इस बारे में बोलने की चेष्टा की तो उन्हें डरा दिया गया और चुप कर दिया गया। बताया जाता है कि पुलिस ने इस मामले को मात्र इस कारण बदला, क्योंकि इस 16 लाख की लक्जरी गाड़ी में एक व्यक्ति आनन्दपालसिंह सांवराद का सगा भाई भी मौजूद था, जो परबतसर में पम्प-नोजल का व्यवसाय करता है और उस दिन 24 मार्च को वे मकराना क्षेत्र मेंं अपनी खरीदसुदा एक खान का मुहूर्त करके आए थे। मकराना में बिदियाद रोड पर स्थित टोल-नाके पर उनका झगड़ा हुआ था और इस पर पुलिस को सूचित किया गया था। जब पुलिस को इस गाड़ी में रूपेन्द्रपाल सिंह उर्फ विक्की मिला, तो उसकी बांछें खिल गई, और लगा कि जैसे उनकोआनन्दपाल सिंह, जो डीडवाना के जीवणराम गोदारा हत्याकाण्ड में वांछित आरोपी है, वो खुद मिल गया हो। हालांकि पुलिस उनका कई दिनों का रिमाण्ड लेने और पूरी सख्ती बरतने के बावजूद आनन्दपाल का कोई सुराग नहीं लगा पाई, परन्तु इन छह लोगों को बिना अपराध किए संगीन मामले में जेल की हवा खाने को मजबूर होना पड़ा। इनमेें एक विद्यार्थी भी था, जिसकी परीक्षाएं चल रही थी तथा वह केवल लिफ्ट लेकर बैठा था, परन्तु उसे भी धारा 399, 400, 120 बी भारतीय दंड संहिता एवं 3/25 आम्र्स एक्ट के संगीन जुर्म का आरोपी ठहरा दिया गया, चाहे उसका भविष्य खराब ही क्यों ना हो। इस युवक के पास कक्षा 12वीं का परीक्षा प्रवेश-पत्र और राजनीति विज्ञान की एक पुस्तक मिली थी, पर पुलिस ने उसे भी हथियार सहित डकैती की योजना में शामिल बता डाला। इस प्रकार पुलिस ने अपनी ज्यादती से एक सीधे-सादे युवक को जेल में अपराधियों के बीच रहने पर मजबूर किया तथा उसे अपराधी बनने की तरफ धकेल कर सामाजिक अपराध भी किया है। पुलिस ने उनके सामने आनंदपाल को गिरफ्तार करवाने पर पूरा मुकदमा हटा लेने के सौदे का प्रस्ताव भी रखा, पर उस फरार के बारे में बिना पता बताए भी तो कौन? आखिर पूरा षडयन्त्र रचकर भी पुलिस के हाथ घोर असफलता ही लगी।

रविवार, 10 अप्रैल 2011

धर्म-निरपेक्ष बनते जा रहे हैँ मुसलमान पढे-लिखों ने तोड़ डाली मजहब की दीवारें हिन्दुओं और गैरमुस्लिमों के साथ बेटी-व्यवहार शुरू

अब इस देश में मुसलमानअपनीे पुरातन-पंथी मान्यताओं को नकारने लगा है। मुसलमान लगातार अपने कथित कट्टरपन से कटते जा रहे हंै और सब धर्मों के प्रति सम्मान की भावना अब उनमें घर करने लगी है। वे भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान की मूल भावना को समझकर अपने आप को राष्ट्र की मुख्य धारा से जाडऩे लगे हैं। पढे-लिखे मुसलमान कट्टरवाद को त्याग कर इंसानियत के असली रिश्ते को महत्व देने लगे हैं। मुसलमान लड़कियां हिन्दू लड़कों से शादियां करके और खुद उनके मुस्लिम अभिभावक उन्हें हिन्दुओं के साथ रिश्तेदारी में बांधकर खुश हैं। कुछ कठमुल्ला इस प्रगतिशील कदम की बुराई करते नहीं थकते, परन्तु समझदार मुसलमान उनकी बातों को कोई तवज्जो नहीं देते। वे राष्ट्रीय एकता, भाईचारे और धर्मनिरपेक्षता को अधिक महत्व देते हैं। इस वर्ग में मुस्लिम जगत का उच्च शिक्षा प्राप्त वर्ग अब खुलकर सामने आ चुका है। फिल्मी कलाकारों के अलावा अब उच्च राजनेता, पत्रकार, समाजसेवी, उद्योगपति, खिलाड़ी, चिकित्सक और अन्य शिक्षित वर्ग भी इसे अपनाने में कोई संकोच नहीं कर रहा तथा दकियानूसी विचारधारा को वे पीछे धकेलकर देश की भावना के साथ बेहिचक आगे बढ रहे हैं। यहां एक मुस्लिम लेखक सालिक धामपुरी द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट के उस हिस्से को प्रकाशित किया जा रहा है, जिसमें मुस्लिमों ने इस प्रकार के धर्मनिरपेक्ष विवाहों को बढावा दिया है तथा समाज को इसके लिए आगे आने का संदेश देकर एक प्रेरणा प्रदान की है। आज समूचे मुस्लिम समाज को उनसे सीख लेकर इस दिशा में आगे आने की जरूरत है। अक्सर एक मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच शादी होने को सारे समाज द्वारा काफी गभीरता से तथा उसे समूचे धर्म के लिए खतरे के रूप में लिया जाता है, जबकि धर्म कभी इतनी संकीर्णता नहीं रखता और अगर उसमें इतनी संकीर्णता हो तो ऐसा धर्म तुरंत त्याग देने योग्य होता है। हमें प्रगतिशीलता और मानवीय एकता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। मजहबी लागों की संकीर्णताओं से हटकर अपनी सोच को परिपक्व बनाना चाहिए।
शेख अब्दुल्ला का परिवार- कश्मीर के शेर कहे जाने वाले शेख अब्दुल्लाह के पुत्र फारूक अब्दुल्ला ने अपनी बेटी सारा की शादी राजेश पायलेट के पुत्र सचिन पायलेट से की। इसी परिवार के कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की से शादी की।
उर्दू दैनिक के सम्पादक की बेटी की शादी- प्रसिद्ध उर्दू दैनिक राष्ट्रीय सहारा के सम्पादक अजीज बर्नी, जो मुसलमानों में इतने लोकप्रिय हैं कि दीनी मदारिस अपने यहां बुलाकर उनके भाषण कराते हैं, इन्होंने अपनी ण्क लड़की की शादी हिन्दू लड़के से की। यही नहीं इन्होंने दिल्ली बम ब्लास्ट से प्रभावित हिन्दुओं के दुख में ईदुल फितर के दिन रोजा रखा और इ्रद की नमाज गांधी जी की समाधि पर पढी, जो शरई दृष्टि से गैर इस्लामी है।
पत्रकार सिद्दीकी बने सत्यवादी- सहारनपुर के प्रसिद्ध पत्रकार खलीक सिद्दीकी, जो आजादी से पहले जमीअतुल उलमा के समाचारपत्र अल जमीअत के सम्पादक थे, ने हरियाणा की एक दलित औरत से शादी की फिर बाद में अपना धर्म बदल कर अपना नाम सत्यवादी रख लिया।
उपराष्ट्रपति ने की पत्नी की दाहक्रिया- पूर्व उपराष्ट्रपति जस्टिस हिदायतुल्ला ने एक हिन्दू औरत से शादी की, यही नहीं मरने के बाद उनकी वसीयत के अनुसार उन्हें दफनाने के बजाए चिता में जलाया गया।
मौलवी फारूकी के घर में लड़का हिन्दू बना -उर्दू पत्रिका खातूने मश्रिक के सम्पादक व मालिक मौलवी अब्दुल्लाह फारूकी के छोटे भाई मुकीमुद्दीन फारूकी ने, जो माकपा के नेता थे, ने एक हिन्दू औरत से शादी की थी। उनका लड़का हिन्दू है और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है।
उर्दू पत्रिका के मालिक की पोती ने स्वीकारा हिन्दू पति-प्रसिद्ध उर्दू पत्रिका शमा के मालिक युसूफ देहलवी की पोती ने भी एक हिन्दू लड़के से शादी की।
इस्लामिक कल्चरल के अध्यक्ष के घर का हाल- इण्डिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के अध्यक्ष सिराजुद्दीन कुरैशी ने भी एक हिन्दू औरत से शादी की ओर उनकी लड़की नक एक सिख से शादी कर ली।
अन्य कुछ मुस्लिम नेताओं के परिवार- हुमायूं कबीर की लड़की लैला कबीर ने प्रमुख ईसाई नेता जार्ज फर्नाडीज से शादी की।
-प्रगतिशील आन्दोलन के नेता सज्जाद जहीर की बेटी नादिरा ने फिल्मी हिन्दू हिरो राज बब्बर से शादी की।
-अकबर अहमद डम्पी, मुख्तार अब्बास नकवीऔर भाजपा दौर में मंत्री रहे सैयद शाहनवाज हुसैन आदि ने भी हिन्दू औरतों सक शादियां की।
-दिल्ली के प्रसिद्ध नेता सिकन्दर बख्त ने एक हिन्दू औरत से शादी की तथा बाद में वे जनता राज में भाजपा में आ गए।
कुछ अन्य प्रमुख पत्रकारों की हकीकत - प्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रकार मीरा मुस्तफा हिन्दू से शादी करने के बाद मुस्तफा से सिंह हो गई।
- बी.बी.सी. से जुड़ी डाक्टर फिरोज ने एक हिन्दू बेरिस्टर मुखर्जी से शादी की।
- दैनिक मश्रिकी आवाज के सम्पादक मुहम्मद जकी ने मंजु गुप्ता से शादी की।
- प्रसिद्ध टी.वी. चैनल आज तक के क्राइम रिपोर्टर शम्स ताहिर, जो जमाअत इस्लामी के सदस्य के बेटे भी हैं, ने भी एक हिन्दू लड़की से शादी की।
- प्रसिद्ध पत्रकार सलामत अली मेंहंदीकी लड़की ने एक हिन्दू दोस्त से शादी की।
मुस्लिम के घर में शुरू हुआ पूजा-पाठ- प्रसिद्ध पत्रकार शाहिद सिद्दीकी, जो नई दुनिया के सम्पादक व मालिक हैं, ने एक हिन्दू औरत से शादी की, जो उनके घर में पूजा-पाठ करती है।
पाकिस्तान के जन्मदाता जिन्ना का परिवार भी पीछे नहीं - पाकिस्तान के जन्मदाता मुहम्मद अली जिन्नाह ने गैर मुस्लिम औरत से शादी की थी तथा उनकी बेटी ने भ एक पारसी नौजवान से शादी की।
कुछ और प्रमुख लोगों की धर्मनिरपेक्षता- जंगे आजादी के हीरो बेरिस्टर आसिफ अली ने अरूणा जी से शादी की।
- प्रोफेसर खलीक अंजुम ने भी एक हिन्दू प्रोफेसर से शादी की।
- मीर मुश्ताक के मुंहबोले बेटे हरिनारायण की शादी एक मुसलमान औरत साबिरा अन्जुम से करवाई गई।
- नफीसा अली ने पोलो के प्रसिद्ध खिलाड़ी आर.एस.सोंधी से शादी की है।
- दरभंगा की एक मुस्लिम लेडी डाक्टर अफरोज ने बड़ी खामोशी से एक हिन्दू डाक्टर से शादी कर ली।
- राष्ट्रीय जनता दल के नेता पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी ने एक हिन्दू महिला से शादी की, जो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के परिवार से थी।
शाबास भंवरी बानो
डीडवाना में भी टूटी मजहब की दीवारें
डीडवाना। नागौेर जिले की डीडवाना
तहसील के गांव छोटी बेरी के उम्मेद खां एजेण्ट की पुत्री भंवरी बानो ने एक गैर मुस्लिम सरकारी अधिकारी से शादी की है। एक छोटी सी जगह से भी यह जागृति की लहर पैदा हुई है, जो निश्चित रूप से समाज में बदलाव की पहचान बन चुकी है। अब समय आ चुका है कि जाति, वर्ग, धर्म और अन्य भेदभावों की दीवारों को ढहाकर सच्चा भारतीय और सच्चा इंसान बना जावे, संकीर्णताओं को अब त्यागना ही होगा। भंवरी बानो ने समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है, जो इस समूचे क्षेत्र को गौरवान्वित करता है।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

यायावर की कलम

नारी उपभोग बन गई
नारी बनकर रह गई, विज्ञापन की चीज।
आजादी के नाम पर, कैसे बोए बीज।।
कैसे बोए बीज, नारी पथभ्रष्ट हो गई।
जिसको पूजा जाता था, उपभोग बन गई।।
कहे यायावर साफ, ये किसकी जिम्मेदारी।
क्यों हुई वो नंगी, है खुद की दुश्मन नारी।।
-जगदीश यायावर, मो. 9571181221

email- yayawer@gmail.com

सूचना का अधिकार अधिनियम, २००५

सूचना का अधिकार अधिनियम संसद द्वारा पारित एक कानून है जो १२ अक्तूबर, २००५ को लागू हुआ (१५ जून, २००५ को इसके कानून बनने के १२० वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है। जम्मू एवं काश्मीर को छोडकर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है।
सूचना के अधिकार पर बारम्बार पूछे जाने वाले प्रश्न

सूचना का अधिकार क्या है?
संविधान के अनुच्छेद १९(१) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद १९(१) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. १९७६ में सर्वोच्च न्यायालय ने "राज नारायण विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार" मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें. इसी कारण सूचना का अधिकार अनुच्छेद १९ में छुपा है. इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है. लोग मालिक हैं. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, क्या कर रहीं हैं? व प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है. यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है.(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में). नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है. इन तीन सिद्धांतों को सर्वोच्च न्यायालय ने रखा कि सूचना का अधिकार हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा हैं.
यदि आरटीआई एक मौलिक अधिकार है, तो हमें यह अधिकार देने के लिए एक कानून की आवश्यकता क्यों है?
ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि आप किसी सरकारी विभाग में जाकर किसी अधिकारी से कहते हैं, "आरटीआई मेरा मौलिक अधिकार है, और मैं इस देश का मालिक हूँ. इसलिए मुझे आप कृपया अपनी फाइलें दिखायिए", वह ऐसा नहीं करेगा. व संभवतः वह आपको अपने कमरे से निकाल देगा. इसलिए हमें एक ऐसे तंत्र या प्रक्रिया की आवश्यकता है जिसके तहत हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकें. सूचना का अधिकार २००५, जो १३ अक्टूबर २००५ को लागू हुआ हमें वह तंत्र प्रदान करता है. इस प्रकार सूचना का अधिकार हमें कोई नया अधिकार नहीं देता. यह केवल उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है कि हम कैसे सूचना मांगें, कहाँ से मांगे, कितना शुल्क दें आदि.
सूचना का अधिकार कब लागू हुआ?
केंद्रीय सूचना का अधिकार १२ अक्टूबर २००५ को लागू हुआ. हालांकि ९ राज्य सरकारें पहले ही राज्य कानून पारित कर चुकीं थीं. ये थीं: जम्मू कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, असम और गोवा.
सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
सूचना का अधिकार २००५ प्रत्येक नागरिक को शक्ति प्रदान करता है कि वो:
सरकार से कुछ भी पूछे या कोई भी सूचना मांगे.
किसी भी सरकारी निर्णय की प्रति ले.
किसी भी सरकारी दस्तावेज का निरीक्षण करे.
किसी भी सरकारी कार्य का निरीक्षण करे.
किसी भी सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले.
सूचना के अधिकार के अर्न्तगत कौन से अधिकार आते हैं?
केन्द्रीय कानून जम्मू कश्मीर राज्य के अतिरिक्त पूरे देश पर लागू होता है. सभी इकाइयां जो संविधान, या अन्य कानून या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बनी हैं या सभी इकाइयां जिनमें गैर सरकारी संगठन शामिल हैं जो सरकार के हों, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित किये जाते हों.
"वित्त पोषित" क्या है?
इसकी परिभाषा न ही सूचना का अधिकार कानून और न ही किसी अन्य कानून में दी गयी है. इसलिए यह मुद्दा समय के साथ शायद किसी न्यायालय के आदेश द्वारा ही सुलझ जायेगा.
क्या निजी इकाइयां सूचना के अधिकार के अर्न्तगत आती हैं?
सभी निजी इकाइयां, जोकि सरकार की हैं, सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्त- पोषित की जाती हैं सीधे ही इसके अर्न्तगत आती हैं. अन्य अप्रत्यक्ष रूप से इसके अर्न्तगत आती हैं. अर्थात, यदि कोई सरकारी विभाग किसी निजी इकाई से किसी अन्य कानून के तहत सूचना ले सकता हो तो वह सूचना कोई नागरिक सूचना के अधिकार के अर्न्तगत उस सरकारी विभाग से ले सकता है.
क्या सरकारी दस्तावेज गोपनीयता कानून १९२३ सूचना के अधिकार में बाधा नहीं है?
नहीं, सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के अनुच्छेद २२ के अनुसार सूचना का अधिकार कानून सभी मौजूदा कानूनों का स्थान ले लेगा.
क्या पीआईओ सूचना देने से मना कर सकता है?
एक पीआईओ सूचना देने से मना उन ११ विषयों के लिए कर सकता है जो सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद ८ में दिए गए हैं. इनमें विदेशी सरकारों से प्राप्त गोपनीय सूचना, देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों की दृष्टि से हानिकारक सूचना, विधायिका के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचनाएं आदि. सूचना का अधिकार अधिनियम की दूसरी अनुसूची में उन १८ अभिकरणों की सूची दी गयी है जिन पर ये लागू नहीं होता. हालांकि उन्हें भी वो सूचनाएं देनी होंगी जो भ्रष्टाचार के आरोपों व मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित हों.
क्या अधिनियम विभक्त सूचना के लिए कहता है?
हाँ, सूचना का अधिकार अधिनियम के दसवें अनुभाग के अंतर्गत दस्तावेज के उस भाग तक पहुँच बनायीं जा सकती है जिनमें वे सूचनाएं नहीं होतीं जो इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन से अलग रखी गयीं हैं.
क्या फाइलों की टिप्पणियों तक पहुँच से मना किया जा सकता है?
नहीं, फाइलों की टिप्पणियां सरकारी फाइल का अभिन्न अंग हैं व इस अधिनियम के तहत भेद प्रकाशन की विषय वस्तु हैं. ऐसा केंद्रीय सूचना आयोग ने ३१ जनवरी २००६ के अपने एक आदेश में स्पष्ट कर दिया है.
मुझे सूचना कौन देगा?
एक या अधिक अधिकारियों को प्रत्येक सरकारी विभाग में जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) का पद दिया गया है. ये जन सूचना अधिकारी प्रधान अधिकारियों के रूप में कार्य करते हैं. आपको अपनी अर्जी इनके पास दाखिल करनी होती है. यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वे उस विभाग के विभिन्न भागों से आपके द्वारा मांगी गयी जानकारी इकठ्ठा करें व आपको प्रदान करें. इसके अलावा, कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर सेवायोजित किया गया है. उनका कार्य केवल जनता से अर्जियां स्वीकारना व उचित पीआईओ के पास भेजना है.
अपनी अर्जी मैं कहाँ जमा करुँ?
आप ऐसा पीआईओ या एपीआईओ के पास कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, ६२९ डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.
क्या इसके लिए कोई फीस है? मैं इसे कैसे जमा करुँ?
हाँ, एक अर्ज़ी फीस होती है. केंद्र सरकार के विभागों के लिए यह १०रु. है. हालांकि विभिन्न राज्यों ने भिन्न फीसें रखीं हैं. सूचना पाने के लिए, आपको २रु. प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देना होता है. यह विभिन्न राज्यों के लिए अलग- अलग है. इसी प्रकार दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए भी फीस का प्रावधान है. निरीक्षण के पहले घंटे की कोई फीस नहीं है लेकिन उसके पश्चात् प्रत्येक घंटे या उसके भाग की ५रु. प्रतिघंटा फीस होगी. यह केन्द्रीय कानून के अनुसार है. प्रत्येक राज्य के लिए, सम्बंधित राज्य के नियम देखें. आप फीस नकद में, डीडी या बैंकर चैक या पोस्टल आर्डर जो उस जन प्राधिकरण के पक्ष में देय हो द्वारा जमा कर सकते हैं. कुछ राज्यों में, आप कोर्ट फीस टिकटें खरीद सकते हैं व अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं. ऐसा करने पर आपकी फीस जमा मानी जायेगी. आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं.
मुझे क्या करना चाहिए यदि पीआईओ या सम्बंधित विभाग मेरी अर्ज़ी स्वीकार न करे?
आप इसे डाक द्वारा भेज सकते हैं. आप इसकी औपचारिक शिकायत सम्बंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद १८ के तहत करें. सूचना आयुक्त को उस अधिकारी पर २५०००रु. का दंड लगाने का अधिकार है जिसने आपकी अर्ज़ी स्वीकार करने से मना किया था.
क्या सूचना पाने के लिए अर्ज़ी का कोई प्रारूप है?
केंद्र सरकार के विभागों के लिए, कोई प्रारूप नहीं है. आपको एक सादा कागज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही अर्ज़ी देनी चाहिए. हालांकि कुछ राज्यों और कुछ मंत्रालयों व विभागों ने प्रारूप निर्धारित किये हैं. आपको इन प्रारूपों पर ही अर्ज़ी देनी चाहिए. कृपया जानने के लिए सम्बंधित राज्य के नियम पढें.
मैं सूचना के लिए कैसे अर्ज़ी दूं?
एक साधारण कागज़ पर अपनी अर्ज़ी बनाएं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा करें. (अपनी अर्ज़ी की एक प्रति अपने पास निजी सन्दर्भ के लिए अवश्य रखें)
मैं अपनी अर्ज़ी की फीस कैसे दे सकता हूँ?
प्रत्येक राज्य का अर्ज़ी फीस जमा करने का अलग तरीका है. साधारणतया, आप अपनी अर्ज़ी की फीस ऐसे दे सकते हैं:
स्वयं नकद भुगतान द्वारा (अपनी रसीद लेना न भूलें)
डाक द्वारा:
*डिमांड ड्राफ्ट से
*भारतीय पोस्टल आर्डर से
*मनी आर्डर से [केवल कुछ राज्यों में]
*कोर्ट फीस टिकट से [केवल कुछ राज्यों में]
* बैंकर चैक से
कुछ राज्य सरकारों ने कुछ खाते निर्धारित किये हैं. आपको अपनी फीस इन खातों में जमा करानी होती है. इसके लिए, आप एसबीआई की किसी शाखा में जा सकते हैं और राशि उस खाते में जमा करा सकते हैं और जमा रसीद अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ लगा सकते हैं. या आप अपनी आरटीआई अर्ज़ी के साथ उस विभाग के पक्ष में देय डीडी या एक पोस्टल आर्डर भी लगा सकते हैं.
क्या मैं अपनी अर्जी केवल पीआईओ के पास ही जमा कर सकता हूँ?
नहीं, पीआईओ के उपलब्ध न होने की स्थिति में आप अपनी अर्जी एपीआईओ या अन्य किसी अर्जी लेने के लिए नियुक्त अधिकारी के पास अर्जी जमा कर सकते हैं.
क्या करूँ यदि मैं अपने पीआईओ या एपीआईओ का पता न लगा पाऊँ?
यदि आपको पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप अपनी अर्जी पीआईओ ष्/श विभागाध्यक्ष को प्रेषित कर उस सम्बंधित जन प्राधिकरण को भेज सकते हैं. विभागाध्यक्ष को वह अर्जी सम्बंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी.
क्या मुझे अर्जी देने स्वयं जाना होगा?
आपके राज्य के फीस जमा करने के नियमानुसार आप अपनी अर्जी सम्बंधित राज्य के विभाग में अर्जी के साथ डीडी, मनी आर्डर, पोस्टल आर्डर या कोर्ट फीस टिकट संलग्न करके डाक द्वारा भेज सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में, ६२९ डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है. अर्थात् आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई पटल पर अपनी अर्जी व फीस जमा करा सकते हैं. वे आपको एक रसीद व आभार जारी करेंगे और यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वो उसे उचित पीआईओ के पास भेजे.
क्या सूचना प्राप्ति की कोई समय सीमा है?
हाँ, यदि आपने अपनी अर्जी पीआईओ को दी है, आपको ३० दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए. यदि आपने अपनी अर्जी सहायक पीआईओ को दी है तो सूचना ३५ दिनों के भीतर दी जानी चाहिए. उन मामलों में जहाँ सूचना किसी एकल के जीवन और स्वतंत्रता को प्रभावित करती हो, सूचना ४८ घंटों के भीतर उपलब्ध हो जानी चाहिए.
क्या मुझे कारण बताना होगा कि मुझे फलां सूचना क्यों चाहिए?
बिलकुल नहीं, आपको कोई कारण या अन्य सूचना केवल अपने संपर्क विवरण (जो हैं नाम, पता, फोन न.) के अतिरिक्त देने की आवश्यकता नहीं है. अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जायेगा.
क्या पीआईओ मेरी आरटीआई अर्जी लेने से मना कर सकता है?
नहीं, पीआईओ आपकी आरटीआई अर्जी लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता. चाहें वह सूचना उसके विभाग/ कार्यक्षेत्र में न आती हो, उसे वह स्वीकार करनी होगी. यदि अर्जी उस पीआईओ से सम्बंधित न हो, उसे वह उपयुक्त पीआईओ के पास ५ दिनों के भीतर अनुच्छेद ६(२) के तहत भेजनी होगी.
इस देश में कई अच्छे कानून हैं लेकिन उनमें से कोई कानून कुछ नहीं कर सका. आप कैसे सोचते हैं कि ये कानून करेगा?
यह कानून पहले ही कर रहा है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार कोई कानून किसी अधिकारी की अकर्मण्यता के प्रति जवाबदेही निर्धारित करता है. यदि सम्बंधित अधिकारी समय पर सूचना उपलब्ध नहीं कराता है, उस पर २५०रु. प्रतिदिन के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है. यदि दी गयी सूचना गलत है तो अधिकतम २५०००रु. तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. जुर्माना आपकी अर्जी गलत कारणों से नकारने या गलत सूचना देने पर भी लगाया जा सकता है. यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है.
क्या अब तक कोई जुमाना लगाया गया है?
हाँ, कुछ अधिकारियों पर केन्द्रीय व राज्यीय सूचना आयुक्तों द्वारा जुर्माना लगाया गया है.
क्या पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि प्रार्थी को दी जाती है?
नहीं, जुर्माने की राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है. हांलांकि अनुच्छेद १९ के तहत, प्रार्थी मुआवजा मांग सकता है.
मैं क्या कर सकता हूँ यदि मुझे सूचना न मिले?
यदि आपको सूचना न मिले या आप प्राप्त सूचना से संतुष्ट न हों, आप अपीलीय अधिकारी के पास सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद १९(१) के तहत एक अपील दायर कर सकते हैं.
पहला अपीलीय अधिकारी कौन होता है?
प्रत्येक जन प्राधिकरण को एक पहला अपीलीय अधिकारी बनाना होता है. यह बनाया गया अधिकारी पीआईओ से वरिष्ठ रैंक का होता है.
क्या प्रथम अपील का कोई प्रारूप होता है?
नहीं, प्रथम अपील का कोई प्रारूप नहीं होता (लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने प्रारूप जारी किये हैं). एक सादा पन्ने पर प्रथम अपीली अधिकारी को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. इस अर्जी के साथ अपनी मूल अर्जी व पीआईओ से प्राप्त जैसे भी उत्तर (यदि प्राप्त हुआ हो) की प्रतियाँ लगाना न भूलें.
क्या मुझे प्रथम अपील की कोई फीस देनी होगी?
नहीं, आपको प्रथम अपील की कोई फीस नहीं देनी होगी, कुछ राज्य सरकारों ने फीस का प्रावधान किया है.
कितने दिनों में मैं अपनी प्रथम अपील दायर कर सकता हूँ?
आप अपनी प्रथम अपील सूचना प्राप्ति के ३० दिनों व आरटीआई अर्जी दाखिल करने के ६० दिनों के भीतर दायर कर सकते हैं.
क्या करें यदि प्रथम अपीली प्रक्रिया के बाद मुझे सूचना न मिले?
यदि आपको प्रथम अपील के बाद भी सूचना न मिले तो आप द्वितीय अपीली चरण तक अपना मामला ले जा सकते हैं. आप प्रथम अपील सूचना मिलने के ३० दिनों के भीतर व आरटीआई अर्जी के ६० दिनों के भीतर (यदि कोई सूचना न मिली हो) दायर कर सकते हैं.
द्वितीय अपील क्या है?
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है. आप द्वितीय अपील सूचना आयोग के पास दायर कर सकते हैं. केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध आपके पास केद्रीय सूचना आयोग है. प्रत्येक राज्य सरकार के लिए, राज्य सूचना आयोग हैं.
क्या द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप है?
नहीं, द्वितीय अपील के लिए कोई प्रारूप नहीं है (लेकिन राज्य सरकारों ने द्वितीय अपील के लिए भी प्रारूप निर्धारित किए हैं). एक सादा पन्ने पर केद्रीय या राज्य सूचना आयोग को संबोधित करते हुए अपनी अपीली अर्जी बनाएं. द्वितीय अपील दायर करने से पूर्व अपीली नियम ध्यानपूर्वक पढ लें. आपकी द्वितीय अपील निरस्त की जा सकती है यदि वह अपीली नियमों को पूरा नहीं करती है.
क्या मुझे द्वितीय अपील के लिए फीस देनी होगी?
नहीं, आपको द्वितीय अपील के लिए कोई फीस नहीं देनी होगी. हांलांकि कुछ राज्यों ने इसके लिए फीस निर्धारित की है.
मैं कितने दिनों में द्वितीय अपील दायर कर सकता हूँ?
आप प्रथम अपील के निष्पादन के ९० दिनों के भीतर या उस तारीख के ९० दिनों के भीतर कि जब तक आपकी प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं.
यह कानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है?
यह कानून कैसे रुके हुए कार्य पूरे होने में सहायता करता है अर्थात् वह अधिकारी क्यों अब वह आपका रुका कार्य करता है जो वह पहले नहीं कर रहा था?

आइए नन्नू का मामला लेते हैं. उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था. लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत अर्जी दी, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया. नन्नू ने क्या पूछा? उसने निम्न प्रश्न पूछे:
१. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए २७ फरवरी २००४ को अर्जी दी. कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं अर्थात् मेरी अर्जी किस अधिकारी पर कब पहुंची, उस अधिकारी पर यह कितने समय रही और उसने उतने समय क्या किया?
२. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड १० दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था. हांलांकि अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है. कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
३. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जायेगी? वह कार्रवाई कब तक की जायेगी?
४. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जायेगा?
साधारण परिस्थितियों में, ऐसी एक अर्जी कूड़ेदान में फेंक दी जाती. लेकिन यह कानून कहता है कि सरकार को ३० दिनों में जवाब देना होगा. यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है. अब ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना आसान नहीं होगा.
पहला प्रश्न है- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं.
कोई उन्नति हुई ही नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है. वरन यह कागज़ पर गलती स्वीकारने जैसा होगा.
अगला प्रश्न है- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया.
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है. एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति काफी सतर्क होता है. इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है.
मुझे सूचना प्राप्ति के पश्चात् क्या करना चाहिए?
इसके लिए कोई एक उत्तर नहीं है. यह आप पर निर्भर करता है कि आपने वह सूचना क्यों मांगी व यह किस प्रकार की सूचना है. प्राय: सूचना पूछने भर से ही कई वस्तुएं रास्ते में आने लगतीं हैं. उदाहरण के लिए, केवल अपनी अर्जी की स्थिति पूछने भर से आपको अपना पासपोर्ट या राशन कार्ड मिल जाता है. कई मामलों में, सड़कों की मरम्मत हो जाती है जैसे ही पिछली कुछ मरम्मतों पर खर्च हुई राशि के बारे में पूछा जाता है. इस तरह, सरकार से सूचना मांगना व प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण चरण है, जो अपने आप में कई मामलों में पूर्ण है.
लेकिन मानिये यदि आपने आरटीआई से किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य का पर्दाफ़ाश किया है, आप सतर्कता एजेंसियों, सीबीआई को शिकायत कर सकते हैं या एफ़आईआर भी करा सकते हैं. लेकिन देखा गया है कि सरकार दोषी के विरुद्ध बारम्बार शिकायतों के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं करती. यद्यपि कोई भी सतर्कता एजेंसियों पर शिकायत की स्थिति आरटीआई के तहत पूछकर दवाब अवश्य बना सकता है. हांलांकि गलत कार्यों का पर्दाफाश मीडिया के जरिए भी किया जा सकता है. हांलांकि दोषियों को दंड देने का अनुभव अधिक उत्साहजनक है. लेकिन एक बात पक्की है कि इस प्रकार सूचनाएं मांगना और गलत कामों का पर्दाफाश करना भविष्य को संवारता है. अधिकारियों को स्पष्ट सन्देश मिलता है कि उस क्षेत्र के लोग अधिक सावधान हो गए हैं और भविष्य में इस प्रकार की कोई गलती पूर्व की भांति छुपी नहीं रहेगी. इसलिए उनके पकडे जाने का जोखिम बढ जाता है. [
क्या लोगों को निशाना बनाया गया है जिन्होंने आरटीआई का प्रयोग किया व भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया?
हाँ, ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिनमें लोगों को शारीरिक हानि पहुंचाई गयी जब उन्होंने भ्रष्टाचार का बड़े पैमाने पर पर्दाफाश किया. लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रार्थी को हमेशा ऐसा भय झेलना होगा. अपनी शिकायत की स्थिति या अन्य समरूपी मामलों की जानकारी लेने के लिए अर्जी लगाने का अर्थ प्रतिकार निमंत्रित करना नहीं है. ऐसा तभी होता है जब सूचना नौकरशाह- ठेकेदार गठजोड़ या किसी प्रकार के माफ़िया का पर्दाफाश कर सकती हो कि प्रतिकार की सम्भावना हो.
तब मैं आरटीआई का प्रयोग क्यों करुँ?
पूरा तंत्र इतना सड- गल चुका है कि यदि हम सभी अकेले या मिलकर अपना प्रयत्न नहीं करेंगे, यह कभी नहीं सुधरेगा. यदि हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमें करना है. लेकिन हमें ऐसा रणनीति से व जोखिम को कम करके करना होगा. व अनुभव से, कुछ रणनीतियां व सुरक्षाएं उपलब्ध हैं.
ये रणनीतियां क्या हैं?
कृपया आगे बढें और किसी भी मुद्दे के लिए आरटीआई अर्जी दाखिल करें. साधारणतया, कोई आपके ऊपर एकदम हमला नहीं करेगा. पहले वे आपकी खुशामद करेंगे या आपको जीतेंगे. तो आप जैसे ही कोई असुविधाजनक अर्जी दाखिल करते हैं, कोई आपके पास बड़ी विनम्रता के साथ उस अर्जी को वापिस लेने की विनती करने आएगा. आपको उस व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए. यदि आप इसे काफी गंभीर मानते हैं, अपने १५ मित्रों को भी तुंरत उसी जन प्राधिकरण में उसी सुचना के लिए अर्जी देने के लिए कहें. बेहतर होगा यदि ये १५ मित्र भारत के विभिन्न भागों से हों. अब, आपके देश भर के १५ मित्रों को डराना किसी के लिए भी मुश्किल होगा. यदि वे १५ में से किसी एक को भी डराते हैं, तो और लोगों से भी अर्जियां दाखिल कराएं. आपके मित्र भारत के अन्य हिस्सों से अर्जियां डाक से भेज सकते हैं. इसे मीडिया में व्यापक प्रचार दिलाने की कोशिश करें. इससे यह सुनिश्चित होगा कि आपको वांछित जानकारी मिलेगी व आप जोखिमों को कम कर सकेंगे.
क्या लोग जन सेवकों का भयादोहन नहीं करेंगे?
आईए हम स्वयं से पूछें- आरटीआई क्या करता है? यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. यह केवल परदे हटाता है व सच जनता के सामने लाता है. क्या वह गलत है? इसका दुरूपयोग कब किया जा सकता है? केवल यदि किसी अधिकारी ने कुछ गलत किया हो और यदि यह सूचना जनता में बाहर आ जाये. क्या यह गलत है यदि सरकार में की जाने वाली गलतियाँ जनता में आ जाएं व कागजों में छिपाने की बजाय इनका पर्दाफाश हो सके. हाँ, एक बार ऐसी सूचना किसी को मिल जाए तो वह जा सकता है व अधिकारी को ब्लैकमेल कर सकता है. लेकिन हम गलत अधिकारियों को क्यों बचाना चाहते है? यदि किसी अन्य को ब्लैकमेल किया जाता है, उसके पास भारतीय दंड संहिता के तहत ब्लैकमेलर के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करने के विकल्प मौजूद हैं. उस अधिकारी को वह करने दीजिये. हांलांकि हम किसी अधिकारी को किसी ब्लैकमेलर द्वारा ब्लैकमेल किये जाने की संभावनाओं को सभी मांगी गयी सूचनाओं को वेबसाइट पर डालकर कम कर सकते हैं. एक ब्लैकमेलर किसी अधिकारी को तभी ब्लैकमेल कर पायेगा जब केवल वही उस सूचना को ले पायेगा व उसे सार्वजनिक करने की धमकी देगा. लेकिन यदि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना वेबसाइट पर डाल दी जाये तो ब्लैकमेल करने की सम्भावना कम हो जाती है.
क्या सरकार के पास आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ जायेगी और यह सरकारी तंत्र को जाम नहीं कर देगी?
ये डर काल्पनिक हैं. ६५ से अधिक देशों में आरटीआई कानून हैं. संसद में पारित किए जाने से पूर्व भारत में भी ९ राज्यों में आरटीआई कानून थे. इन में से किसी सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आई. ऐसे डर इस कल्पना से बनते हैं कि लोगों के पास करने को कुछ नहीं है व वे बिलकुल खाली हैं. आरटीआई अर्ज़ी डालने व ध्यान रखने में समय लगता है, मेहनत व संसाधन लगते हैं.
आईये कुछ आंकडे लें. दिल्ली में, ६० से अधिक महीनों में १२० विभागों में १४००० अर्जियां दाखिल हुईं. इसका अर्थ हुआ कि २ से कम अर्जियां प्रति विभाग प्रति माह. क्या हम कह सकते हैं कि दिल्ली सरकार में आरटीआई अर्जियों की बाढ नहीं आ गई? तेज रोशनी में, यूएस सरकार को २००३- ०४ के दौरान आरटीआई अधिनियम के तहत ३.२ मिलियन अर्जियां प्राप्त हुईं. यह उस तथ्य के बावजूद है कि भारत से उलट, यूएस सरकार की अधिकतर सूचनाएं नेट पर उपलब्ध हैं और लोगों को अर्जियां दाखिल करने की कम आवश्यकता होनी चाहिए. लेकिन यूएस सरकार आरटीआई अधिनियम को समाप्त करने का विचार नहीं कर रही. इसके उलट वे अधिकाधिक संसाधनों को इसे लागू करने में जुटा रहे हैं. इसी वर्ष, उन्होंने ३२ मिलियन यूएस डॉलर इसके क्रियान्वयन में खर्च किये.
क्या आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधन खर्च नहीं होंगे?
आरटीआई अधिनियम के क्रियान्वयन में खर्च किये गए संसाधन सही खर्च होंगे. यूएस जैसे अधिकांश देशों ने यह पाया है व वे अपनी सरकारों को पारदर्शी बनाने पर अत्यधिक संसाधन खर्च कर रहे हैं. पहला, आरटीआई पर खर्च लागत उसी वर्ष पुनः उस धन से प्राप्त हो जाती है जो सरकार भ्रष्टाचार व गलत कार्यों में कमी से बचा लेती है. उदहारण के लिए, इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि कैसे आरटीआई के वृहद् प्रयोग से राजस्थान के सूखा राहत कार्यक्रम और दिल्ली की जन वितरण प्रणाली की अनियमितताएं कम हो पायीं.
दूसरा, आरटीआई लोकतंत्र के लिए बहुत जरुरी है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है. जनता की सरकार में भागीदारी से पहले जरुरी है कि वे पहले जानें कि क्या हो रहा है. इसलिए, जिस प्रकार हम संसद के चलने पर होने वाले खर्च को आवश्यक मानते हैं, आरटीआई पर होने वाले खर्च को भी जरुरी माना जाये.
लेकिन प्राय
लोग निजी मामले सुलझाने के लिए अर्जियां देते हैं?
जैसा कि ऊपर दिया गया है, यह केवल जनता में सच लेकर आता है. यह कोई सूचना उत्पन्न नहीं करता. सच छुपाने या उस पर पर्दा डालने का कोई प्रयास समाज के उत्तम हित में नहीं हो सकता. किसी लाभदायक उद्देश्य की प्राप्ति से अधिक, गोपनीयता को बढावा देना भ्रष्टाचार और गलत कामों को बढावा देगा. इसलिए, हमारे सभी प्रयास सरकार को पूर्णतः पारदर्शी बनाने के होने चाहिए. हांलांकि, यदि कोई किसी को आगे ब्लैकमेल करता है, कानून में इससे निपटने के प्रचुर प्रावधान हैं. दूसरा, आरटीआई अधिनियम के अनुच्छेद ८ के तहत कई बचाव भी हैं. यह कहता है, कि कोई सूचना जो किसी के निजी मामलों से सम्बंधित है व इसका जनहित से कोई लेना- देना नहीं है को प्रकट नहीं किया जायेगा. इसलिए, मौजूदा कानूनों में लोगों के वास्तविक उद्देश्यों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान हैं.
लोगों को ओछी/ तुच्छ अर्जियां दाखिल करने से कैसे बचाया जाए?
कोई अर्ज़ी ओछी/ तुच्छ नहीं होती. ओछा/ तुच्छ क्या है? मेरा पानी का रुका हुआ कनेक्शन मेरे लिए सबसे संकटपूर्ण हो सकता है, लेकिन एक नौकरशाह के लिए यह ओछा/ तुच्छ हो सकता है. नौकरशाही में निहित कुछ स्वार्थों ने इस ओछी/ तुच्छ अर्जियों के दलदल को बढाया है. वर्तमान में, आरटीआई अधिनियम किसी भी अर्ज़ी को इस आधार पर निरस्त करने की इजाज़त नहीं देता कि वो ओछी/ तुच्छ थी. यदि ऐसा हो, प्रत्येक पीआईओ हर दूसरी अर्ज़ी को ओछी/ तुच्छ बताकर निरस्त कर देगा. यह आरटीआई के लिए मृत समाधि के समान होगा.
फाइल टिप्पणियां सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए क्योंकि यह ईमानदार अधिकारियों को ईमानदार सलाह देने से रोकेगा?
यह गलत है. इसके उलट, हर अधिकारी को अब यह पता होगा कि जो कुछ भी वो लिखता है वह जन- समीक्षा का विषय हो सकता है. यह उस पर उत्तम जनहित में लिखने का दवाब बनाएगा. कुछ ईमानदार नौकरशाहों ने अलग से स्वीकारा है कि आरटीआई ने उनकी राजनीतिक व अन्य प्रभावों को दरकिनार करने में बहुत सहायता की है. अब अधिकारी सीधे तौर पर कहते हैं कि यदि उन्होंने कुछ गलत किया तो उनका पर्दाफाश हो जायेगा यदि किसी ने उसी सूचना के बारे में पूछ लिया. इसलिए, अधिकारियों ने इस बात पर जोर देना शुरू कर दिया है कि वरिष्ठ अधिकारी लिखित में निर्देश दें. सरकार ने भी इस पर मनन करना प्रारंभ कर दिया है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा से हटा दी जाएँ. उपरोक्त कारणों से, यह नितांत आवश्यक है कि फाइल टिप्पणियां आरटीआई अधिनियम की सीमा में रहें.
जन सेवक को निर्णय कई दवाबों में लेने होते हैं व जनता इसे नहीं समझेगी?
जैसा ऊपर बताया गया है, इसके उलट, इससे कई अवैध दवाबों को कम किया जा सकता है.
सरकारी रेकॉर्ड्स सही आकार में नहीं हैं. आरटीआई को कैसे लागू किया जाए?
आरटीआई तंत्र को अब रेकॉर्ड्स सही आकार में रखने का दवाब डालेगा. वरन अधिकारी को अधिनियम के तहत दंड भुगतना होगा.
विशाल जानकारी मांगने वाली अर्जियां रद्द कर देनी चाहिए?
यदि मैं कुछ जानकारी चाहता हूँ, जो एक लाख पृष्ठों में आती है, मैं ऐसा तभी करूँगा जब मुझे इसकी आवश्यकता होगी क्योंकि मुझे उसके लिए २ लाख रुपयों का भुगतान करना होगा. यह एक स्वतः ही हतोत्साह करने वाला उपाय है. यदि अर्ज़ी इस आधार पर रद्द कर दी गयी, तो प्रार्थी इसे तोड़कर प्रत्येक अर्ज़ी में १०० पृष्ठ मांगते हुए १००० अर्जियां बना लेगा, जिससे किसी का भी लाभ नहीं होगा. इसलिए, इस कारण अर्जियां रद्द नहीं होनी चाहिए कि:
"लोगों को केवल अपने बारे में सूचना मांगने दी जानी चाहिए. उन्हें सरकार के अन्य मामलों के बारे में प्रश्न पूछने की छूट नहीं दी जानी चाहिए", पूर्णतः इससे असंबंधित है:
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.
आरटीआई अधिनियम का अनुच्छेद ६(२) स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से यह नहीं पूछा जा सकता कि क्यों वह कोई जानकारी मांग रहा है. किसी भी मामले में, आरटीआई इस तथ्य से उद्धृत होता है कि लोग टैक्स/ कर देते हैं, यह उनका पैसा है और इसीलिए उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उनका पैसा कैसे खर्च हो रहा है व कैसे उनकी सरकार चल रही है. इसलिए लोगों को सरकार के प्रत्येक कार्य की प्रत्येक बात जानने का अधिकार है. वे उस मामले से सीधे तौर पर जुड़े हों या न हों. इसलिए, दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति कोई भी सूचना मांग सकता है चाहे वह तमिलनाडु की हो.

भूमि विकास बैंक में नाबार्ड अधिकारियों के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव का प्रयास गरमाए माहौल में बैंक सचिव अड़ा

भूमि विकास बैंक में नाबार्ड अधिकारियों के खिलाफ निन्दा प्रस्ताव का प्रयास
गरमाए माहौल में बैंक सचिव अड़ा
नागौर। नागौर सहकारी भूमि विकास बैंक लिमिटेड की आयोजित वार्षिक सभा में नाबार्ड के अघिकारियों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करने के मसले पर माहौल गरमा गया। सदस्यों ने निंदा प्रस्ताव पारित करने पर जोर दिया, जबकि बैंक सचिव ने इससे इनकार कर दिया।
बेनिवान व सुरेन्द्रसिंह में तकरार
इस पर कुछ देर तक बहस होती रही। वार्षिक अघिवेशन मे नाबार्ड के अघिकारी के नहीं आने पर सदस्यों ने रोष जताया। सदस्य नारायण बेनीवाल ने कहा कि नाबार्ड के अघिकारी सभा में नहीं आए हैं। उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया जाए।
इस पर बैंक सचिव सुरेंद्रसिंह ने कहा कि नाबार्ड अघिकारी से उन्हें पूरा सहयोग मिल रहा हैं। वे साधारण सभा के सदस्य भी नहीं हैं। ऐसे में उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करना उचित नहीं है। इस पर बेनीवाल एवं सचिव के बीच कुछ देर बहस भी हुई। बेनीवाल निंदा प्रस्ताव पर अड़ गए। मगर सचिव ने साफ कह दिया कि नाबार्ड अघिकारी साधारण सभा के सदस्य नहीं हैं, उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित नहीं किया जा सकता। इस दौरान सदस्य रामकरण कमेडिया ने कहा कि आम सभा में नाबार्ड अघिकारी नहीं आते तो हम समझते हैं उनका सहयोग भी नहीं मिल रहा होगा।
सदावत ने किया सहयोग का आग्रह
बैठक में बैंक के अध्यक्ष नंदकिशोर सदावत ने सदस्यों से सहयोग का आग्रह किया। उन्होने कहा कि सदस्य न केवल अपनी मांग राशि समय पर जमा करवाएं, बल्कि अपने क्षेत्र के समस्त ऋणी सदस्यों को भी मांग राशि समय पर जमा कराने के लिए प्रेरित करें। सदस्य बैंक की विभिन्न योजनाओं से भी किसानों को अवगत कराएं। बैंक के सचिव सुरेंद्रसिंह ने कहा कि कहीं से भी कोई ऋण में गड़बड़ी संबंधी शिकायत नहीं मिली है।
ऋणों की राशि बढाई
सदस्य नारायण बेनीवाल ने भैंस के लिए ऋण की राशि 30 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करने का प्रस्ताव रखा। सदन ने इसे सर्वसम्मति से पारित कर प्रस्ताव को नाबार्ड एवं एपेक्स बैंक को भेजने का निर्णय किया। सदस्यों ने किसान क्रेडिट कार्ड ऋण दो करोड़ से बढ़ा कर 10 करोड़ तक करने का भी प्रस्ताव रखा।
उपलब्घियों का बखान
सभा में अध्यक्ष सदावत ने बैंक की उपलब्घियां बताई। उन्होंने बताया कि बैंक ने वर्ष 2009-10 के ऋण वितरण के 1000 लाख रूपए के लक्ष्य के विरूद्ध 853.25 लाख का ऋण वितरण किया गया। चालू वर्ष में फसली ऋण योजना को बैंक में अंगीकार करते हुए 21.15 लाख का अल्पकालीन फसली ऋण वितरण किया गया है।